न सिर्फ झारखंड में, बल्कि पूरे मुल्क में मुसलमानों पर कोरोना वाइरस के फैलाने का ठीकरा फोड़ा जा रहा है. एक सामान्य परिदृश्य यह है कि मुस्लिम फल विक्रेताओं से लोग फल खरीदने में परहेज कर रहे हैं. सब्जी के ठेले वालों से लोग नाम पूछ कर सब्जियां खरीदते हैं. उनके साथ मारपीट की घटनाएं हो रही हैं. हत्या की भी कुछ घटनाएं हो चुकी हैं.

भाजपा और वर्तमान केंद्रीय राजनीतिक नेतृत्व ने मरकज को झारखंड सहित पूरे देश में सांप्रदायिक-राजनीतिक ध्रुवीकरण का उपक्रम बनाने की पूरी तैयारी कर ली प्रतीत होती है. पिछले एक माह से मरकज चर्चा में है और कई दिनों से इस बात की आधिकारिक जानकारी दी जा रही है कि देश में मरकज के संपर्क से संक्रमित मरीजों की सख्या कितनी है, कुल संक्रमित मरीजों की संख्या में उनका अनुपात क्या है. 18 अप्रैल को केंद्रीय स्वास्थ मंत्रालय ने इस ब्योरे को एक बार फिर सार्वजनिक किया. केंद्रीय संयुक्त स्वास्थ सचिव लव अग्रवाल ने प्रेस को जानकारी दी कि देश में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 14378 पहुंच गयी है और इसमें 4291 संक्रमित मरीज वे हैं जिनका संपर्क मरकज से रहा है.

वैसे, उनका यह कहना है कि यह जानकारी वे इस रूप में इसलिए मीडिया से शेयर कर रहे हैं, ताकि लोग समझे कि यदि एक व्यक्ति भी सामाजिक दूरी का पालन नहीं करता है और लाॅक डाउन के नियमों का उल्लंधन करता है तो उसका परिणाम पूरे देश को किस तरह भुगतना पड़ता है.

लेकिन उनसे किसी ने नहीं पूछा और न उन्होंने स्वयं बताया कि कुल संक्रमित मरीजों में से 4291 तो मरकज के संपर्क से पैदा हुए, लेकिन शेष 10 हजार से भी अधिक कोरोना संक्रमित मरीजों के संक्रमण के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या इसकी भी जांच पड़ताल हो रही है?

इसी तरह रांची के अखबार लगातार यह जानकारी प्रमुखता से दे रहे हैं कि झारखंड में संक्रमित मरीजों में अधिकांश मरकज से संपर्क में आये मरीज हैं. सिर्फ झारखंड की राजधानी रांची के मुस्लिम मोहल्ले हिंदपीढ़ी में कुल संक्रमित मरीजों में से आधे से अधिक हैं. शनिवार के अखबारों के अनुसार झारखंड में संक्रमित मरीजों की संख्या 34 है तो उनमें से 18 हिंदपीढ़ी में. रांची के बाद बोकारो और हजारीबाग में संक्रमित मरीजों का भी मरकज रिश्ता खोजा जा रहा है. यही नहीं, यह भी लगातार चर्चा में है कि हिंदपीढ़ी के लोग लाॅकडाउन का पालन ठीक से नहीं कर रहे हैं. सफाईकर्मियों और स्वास्थकर्मियों का अपमान कर रहे हैं. किसी दिन हिंदपीढ़ी की किसी गली में किसी ने स्वास्थकर्मियों पर थूक दिया, तो कोई नोटों पर थूक कर यहां वहां फेंक रहा है. वगैरह.. .वगैरह.

यह महज इत्तफाक की बात है कि रांची नगर निगम पर भाजपा का कब्जा है. हिंदपीढ़ी के लोगों ने स्थानीय प्रशासन से मांग की है कि उपरोक्त घटनाओं की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए. अब इन घटनाओं की निष्पक्ष जांच का काम तो स्थानीय प्रशासन का है, जो परिणाम सामने आ रहे हैं वह यह कि मुसलमानों के प्रति एक आक्रोश जहां तहां दिखाई पड़ रहा है. न सिर्फ झारखंड में, बल्कि पूरे मुल्क में मुसलमानों पर कोरोना वाइरस के फैलाने का ठीकरा फोड़ा जा रहा है. एक सामान्य परिदृश्य यह है कि मुस्लिम फल विक्रेताओं से लोग फल खरीदने में परहेज कर रहे हैं. सब्जी के ठेले वालों से लोग नाम पूछ कर सब्जियां खरीदते हैं. उनके साथ मारपीट की घटनाएं हो रही हैं.

किसी भी धर्मनिरपेक्ष जनतांत्रिक व्यवस्था के लिए यह सब क्षोभ का विषय होना चाहिए. लेकिन जब सत्ता में बैठे लोग, जिम्मेदार अधिकारी ही विस्तार से इस बात की जानकारी मीडिया को दे रहे हों कि किसी धर्म विशेष के लोग की लापरवाही से यह वायरस पूरे देश में फैल रहा है तो इसे सत्ता में बैठे लोगों का कुत्सित अभियान ही माना जायेगा.

विरोधाभास देखिये कि लाॅक डाउन को कड़ाई से लागू करते हुए लाखों प्रवासी मजदूरों को घर लौटने का अवसर न दे कर त्रासद परिस्थितियों में जीने को मजबूर किया गया, बांद्रा सहित जहां तहां उन पर लाठियां बरसायी गयी. हिंदपीढ़ी के अनेकानेक लोगों पर लाॅक डाउन की अवहेलना का मुकदमा किया गया, वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार की अनुमति और सहयोग से कोटा, राजस्थान, में पढ़ रहे तीन हजार से अधिक विद्यार्थियों को लग्जरी बसे भेज कर वापस उत्तर प्रदेश लाया गया.

विरोधाभास यह भी कि मरकज के संक्रमित मरीजों में से अनेकों में संक्रमण के लक्षण नहीं पाये जा रहे, जबकि जांच के क्रम में वे कोरोना पाजिटिव पाये गये, दूसरी तरफ रांची में एक वृद्ध की मृत्यु तो ब्रेन हैमरेज से हुई लेकिन उसे कोरोना पाजिटिव भी बताया जा रहा है.

यह पूरा तमाशा खुले रूप में हो रहा है और इसमें संदेह की बहुत कम गुंजाईश रह गयी है कि कोरोना भाजपा के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का एक नया औजार बन चुका है. देखना है धर्मनिरपेक्ष ताकतें इसका मुकाबला कैसे करती हैं.