आज कल मैं ‘बिकमिंग मिशेल ओबामा’ पढ़ रही हूं. पेंग्विन रेंडम हाउस द्वारा 2018 में इस पुस्तक को अमेरिका तथा इंग्लैंड में छापा गया. लगभग 421 पेज का तथा विभिन्न कालखंडों के चित्रों के साथ यह पुस्तक पढ़ने में अच्छा लगता है. किताब के नाम से ही स्पष्ट है कि इस किताब में अमेरिका के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति की पत्नि मिशेल का बचपन से लेकर राष्ट्रपति ओबामा के पत्नी बनने तक का सफर है.

किताब के 280 पेज तक जब मैंने पढ़ लिया तो मुझे लगा कि मिशेल का जीवन अमेरिका या भारत ही नहीं, बल्कि विश्व के किसी भी देश की एक पढ़ी लिखी नौकरी पेशा, दो बच्चों की मां और पति की सहयोगी पत्नी के रूप से कोई अलग नहीं है. शायद सभी महिलाओं की फितरत एक सी ही होती है.

विद्यार्थी जीवन से ही प्रखर रही मिशेल स्वयंचेता थीं. वह हर समय अपने काम और सफलता को तौलती थी और इसके लिए कठिन परिश्रम को कूंजी मानती थी. इसी का परिणाम रहा कि अश्वेत विद्यार्थी होने के बावजूद उसे प्रतिष्ठित प्रिंसटन विवि से लाॅ करने का मौका मिला. सिडनी एंड आस्टिन जैसे ख्यातिप्राप्त लाॅ फार्म में काम किया. मोटी तनख्वाह पायी. अपने पढ़ाई के खर्चों को चुकाया और एक आजाद जीवन जीती रही.

लेकिन ओबामा से परिचय, उसके व्यक्तित्व, प्रखर बुद्धि तथा सामाजिक चेतना से प्रभावित भी हुई. उसे ओबामा के साथ काले लोगों के बीच जाकर उनकी त्रासदियों को नजदीकी से जानने का मौका मिला. फिर तो उसने अपने सफल जीवन को त्याग कर एक स्वयंसेवी संस्था में काम करना स्वीकार किया जो अश्वेत लोगों के बीच काम करता था.

लेकिन मिशेल एक औरत भी थी. उसे ओबामा का प्यार भी चाहिए था. उसे पति बनाया और दो बच्चों की मां भी बनी. जहां तक घर की जिम्मेदारी की बात थी, उसका सारा बोझ मिशेल पर ही था, क्योंकि तब तक ओबामा इनोईस के सिनेटर बन चुके थे. उन्हें अपने राजनीतिक कामों के चलते घर की जिम्मेदारियों के लिए समय नहीं था. मिशेल फिर से शिकागो विवि में एसोसियेटेड डीन के पद को स्वीकार करती है.

यह विभाग यूनिविरसीटी, अस्पताल का काम संभालता था. इसका काम था दक्षिणी शिकागो के काले लोगों को इन स्वास्थ सेवाओं से जोड़ना. यह काम मिशेल के मनोनुकूल था, क्योंकि एक निश्चित वेतन के साथ उसे अपने समाज से जुड़े रहने का भी मौका था. नौकरी, घर, बच्चे, हाट-बाजार के काम में डूबी मिशेल को कभी-कभी लगता था कि उसका अपना जीवन निरुद्देश्य खिसकता जा रहा है. निराशा के बावजूद वह अपने पति की सफलता में बाधक बनना नहीं चाहती थी. अंत में जब ओबामा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने तो वह घर बच्चे संभालते हुए भी जी जान से पति के चुनावी प्रचार में लगी.

प्रारंभ से ही राजनीति को अनावश्यक समझने वाली मिशेल उससे दूर ही रहती थी. मिशेल के लिए प्रचार का यह कार्य कठिन था. एक अश्वेत राष्ट्रपति उम्मीदवार रंगभेदी अमेरिका के लिए सहज स्वीकार्य नहीं था. और उतनी ही अस्वीकार्य थी उसकी अश्वेत पत्नी. लेकिन कर्मठ मिशेल ने इस भूमिका में भी अपने को साबित किया. घर में सुबह पांच बजे से बच्चों के स्कूल की तैयारी, उन्हें स्कूल भेज कर 9 बजे तक अपना कार्यालय पहुंचना, अपने काम को समाप्त कर दिन के बारह बजे के बाद से ही अपने दो सहयोगियों के साथ वह प्रचार कार्य में लग जाती थी. प्रचार कार्य के दौरान उसे मोटर, बस और हवाई जहाज तक का अक्सर सफर करना पड़ता था जो थका देने वाला होता था. फिर भी उसका प्रयास यह होता था कि रात के आठ बजे के पहले घर लौट जाये और अपनी बेटियों को सुलाये.

प्रचार का कोई भी मजमून उसके पास नहीं था और न प्रचार का अनुभव भी. उसने अपने जीवन को ही खोल कर लोगों के सामने रख दिया. लोग प्रभावित होते चले गये. यद्यपि विरोधी पार्टी के लोग उसके शब्दों का गलत अर्थ निकाल कर उसे टीबी तथा सोशल मीडिया पर बदनाम करने की कोशिश भी करते रहे. मिशेल को दुख होता था और घबराहट भी होती थी. अब उसने तैयारी के साथ प्रचार कार्य करना शुरु किया. ओबामा की प्रतिष्ठा में चार चांद लगाया.

कभी-कभी प्रचार व्यवस्था में उसे अपनी बेटियों को भी अपने साथ ले जाना पड़ता था. बेटियां भी उसके साथ टीवी इंटरव्यू में शामिल होती थी, जो उसकी अनिच्छा का कारण होता था. बेटियों का जन्म दिन भी उसने भीड़ में मनायी. लड़कियां तो खुश थीं, लेकिन उसे कहीं न कहीं अपनी निजता समाप्त होती दिखती थी. जब लोग उसे मिसेज ओबामा बुलाते तो उसे डर लगता कि वह कब वह मिशेल से मिसेज ओबामा बन गयी. कहीं वह अपनी पहचान तो नहीं खो रही है!

और अंत में जिस दिन ओबामा विजयी घोषित हुए, उनके परिवार को सुरक्षा के घेरे में ले लिया गया और काले शीशे बंद कार में विजयोत्सव की ओड़ ले जाया जा रहा था तो मिशेल सोच में पर गयी कि क्या अब उसे देश की प्रथम महिला बन कर पति के गौरव से गौरवान्वित होना है या मिशेल बन कर समाज के लिए उपयोगी बनना. या फिर अपना एक निजी जीवन भी जीना है.