मिशेल ओबामा की आत्मकथा‘ बिकमिंग मिशेल ओबामा’ में केवल मिशेल की अब तक की जीवनी ही नहीं है बल्कि अमेरिका के अश्वेत समाज की भी अच्छी जानकारी मिल जाती है. अमेरिका का अश्वेत समाज हमेशा से ही वहां के श्वेत लोगों की घृणा और अत्याचार का शिकार रहा है. इस किताब के पहले भी मैंने अमेरिकी अश्वेतों से संबंधित दो किताबें पढ़ी है. एक है ‘कलर वाईलेट’ और दूसरा ‘अंकल टाॅम्स केबिन’. ये दोनों ही किताबें अश्वेतों के उस समय के समाज को चित्रित करते हैं जब काले लोग गुलाम थे. उनकी त्वचा का काला रंग, नाक नक्श और केश विन्यास गोरे लोगों से अलग थे. वे तो अफ्रीकी मूल के थे. उन्हें गुलाम बना कर अमेरिका लाया गया था. उन लोगों को दक्षिण अमेरिका के दलदली जमीन पर कपास की खेती करने के लिए रखा जाता था. इसके अलावा धनाढ़्य जमींदारों की बड़ी-बड़ी कोठियों के रख रखाव करने, उनके अस्तबल की देख रेख का काम भी वे करते थे. काली महिलायें परिचारिका बन कर गोरे बच्चों को पालती थीं. उनका भोजन बनाती थीं और कभी-कभी मालिक का हमबिस्तर भी बनती थीं. संक्षेप में कहा जाये कि दो जून भोजन और सर छुपाने के लिए थोड़ी सी जगह के लिए उन्हें नारकीय जीवन बिताना पड़ता था. उनके रूप रंग के कारण उन्हें हृदय और मस्तिष्क विहीन समझा जाता था. तरह-तरह के अत्याचारों से उनकी संवेदनाओं को, भावनाओं को कुचला जाता था.
मिशेल की आत्मकथा में जिस समाज का चित्रण है वह 1964 के ‘सिविल राइट वार’ के बाद का समाज है. इस आंदोलन के जरिये अश्वेत लोगों ने अपने नागरिक अधिकारों को पाया. अब उन्हें रंग, रूप, धर्म आदि के भेदभाव के बिना श्वेतों के बराबर वोट देने का, शिक्षा प्राप्त करने का, नौकरी करने का तथा अमेरिका में कहीं भी बसने व सार्वजनिक स्थलों पर विचरण का अधिकार प्राप्त हुआ. यही कारण है कि कुशाग्र मिशेल को आईवी लीग के स्कूल में श्वेत बच्चों के साथ पढ़ने का मौका मिला. प्रिंसटन जैसे विवि से वकालत की पढ़ाई कर कारपोरेट लाॅ फार्म में काम भी किया. ओबामा से शादी करने के बाद प्रथम महिला बन कर अपना योगदान भी दिया. फिर भी मिशेल को हमेशा से यह लगता रहा कि सारे अधिकारों को पा कर भी अमेरिका में अश्वेत अभी भी गोरे लोगों की घृणा के पात्र हैं और यही घृणा अश्वेत लोगों को अपशब्द कहने या उन्हें मार देने तक में दिखता है. इसके कई उदाहरण इस किताब में दिखते हैं.
अश्वेत लोग सदियों पहले अफ्रीका से अमेरिका लाये गये थे. कई पीढ़ियां अमेरिका में ही रही और नई पीढ़ी अपने को अमेरिकन मानता है और अमेरिका से प्यार करता है. लेकिन वे अभी भी अफ्रीकन अमेरिकन कहलाते हैं. सारे अधिकार प्राप्त कर भी यह समाज अपने में सिमटा हुआ है. मिशेल के माता पिता जब शिकागो के दक्षिणी हिस्से में आकर बसे तो उनके पड़ोस में गोरे भी रहते थे और उनकी संख्या लगभग 96 फीसदी थी. मिशेल जब दस साल की हुई और पार्क में खेलने जाती थी तो गोरी लड़कियां उनके साथ नहीं खेलती थी. डीडी नाम की एक गोरी लड़की हमेशा मिशेल को चिढ़ाया करती थी. एक दिन मिशेल उससे भिड़ गयी. उसके बाद मिशेल को संतोष मिला कि वह किसी से डरती नहीं है. अपनी चचेरी बहनों के साथ वह पूरे आत्मविश्वास के साथ बात करती थी, तो वे लोग आश्चर्य करती थी कि कैसे यह लड़की किसी गोरी लड़की की तरह बात करती है. मिशेल के माता- पिता यही चाहते थे. वे जानते थे कि अमेरिका में अपने अस्तित्व को बचाना है तो अपनी शारीरिक और मानसिक शक्ति के द्वारा ही जिया जा सकता है.
शेष अगले अंक में..