कनक, तुम तो रूठ कर हमेशा के लिए चली गयी. तुमने सबको ठीक किया, अपनी माँ को अस्पताल से वापस लौटाया पर तुम क्यों नहीं लौटी. ये बात बर्दाश्त नहीं हो रही.
जब श्रीनिवास जी ने व्हाट्सप्प मैसेज पर ’कनक थी’ भेजा तो थोड़ देर के लिए मैं निशब्द हो गई. लेकिन कनक तुम्हारे साथ जुड़ी सभी यादें आाँखों के सामने आ गय. कनक से पहली बार मैं शायद 1982 में औरंगाबाद में संघर्ष वाहिनी की बैठक में मिली थी. उस वक़्त मैंने सिर्फ कनक को देखा था पर बात नहीं हो पायी थी. बैठक में करीबन २००-३०० लोग थे. कनक बोध-गया के बारे में बात कर रही थी.
मुझे अभी भी याद है उसके बाल कमर तक लंबे थे और आँखें बड़ी- बड़ी थीं. एक अनोखा व्यक्तित्व लगा. उसके बात करने के लहज़े में काफी स्पष्टता थी, वह कभी मुद्दे से हटकर बात नहीं करती थी.
कनक का यह पहलू मुझे बहुत भा गया. उसका चेहरा मेरे ज़हन में रह गया और उससे मिलने की इच्छा और प्रबल हो गई. हम लोग जब औरंगाबाद से मुम्बई आ रहे थे तो पता चला कि बिहार की टीम अजंता एलोरा जा रही है. मुझे भी जाने की इच्छा हुई और मैंने मुम्बई के साथियों को कहा कि मुझे भी अजंता एलोरा जाना है, क्यों न हम इनके साथ जाएं. इसके पीछे मेरा एक ही मकसद था - मुझे कनक से बात करनी थी. मुझे उसके व्यक्तित्व को और करीब से जानना था. हाँलाकि यह संभव नहीं हो पाया और हम औरंगाबाद से मुम्बई लौट आये. कनक से मिलने की मन में कसक सी रह गई.
उसके बाद मेरी मुलाकात कनक से बोध-गया में हुई और काफी सारी बातें हुईं. मुझे ठीक से याद नहीं पर शायद 1983 में कोटपुतली में एक नाबालिग लड़की का बलात्कार हुआ था जिसकी चर्चा पूरे देश में हो रही थी. संघर्ष वाहिनी से जुड़े हुए विभिन्न राज्यों की महिलाओं को यह बहुत गलत लगा. हमने तय किया कि इस घटना के विरोध में कोटपुतली से दिल्ली तक की पदयात्रा करेंगे. सभी ने तय किया कि इस पदयात्रा में महिलाओं के सवालों को आगे लाएँगे और उन पर हो रहे अत्याचार को रोकने की मांग करेंगे.
यह पदयात्रा करीब 14 दिन तक चली और इसमें शहर और गााँव दोनों की महिलाओं ने भाग लिया. कनक भी इसमें शामिल थी. इस पदयात्रा के दौरान मुझे कनक को करीब से जानने का मौका मिला और वह मेरी बहुत अच्छी सखी बन गई.
कोटपुतली से दिल्ली की पदयात्रा जब खत्म हुई तो दिल्ली के सहेली केंद्र ने एक बड़ा कार्यक्रम किया था जिसके बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी हुई थी. पदयात्रा और प्रेस कॉन्फ्रेंस में हमारे साथ बोध-गया की काफी सारी महिलाएं थीं. मुझे याद है मैं आगे बैठी थी और मेरे लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस को एड्रेस करने का पहला तजुर्बा था. पत्रकार बहुत आक्रामकता से हमसे सवाल पूछ रहे थे जैसे “दिल्ली में पदयात्रा का आपका मकसद क्या है ?“ “अगर आपको महिलाओं के लिए काम करना है तो गांव में काम क्यों नहीं करते?“. मैं उतनी ही आक्रामकता से पत्रकारों को जवाब नहीं दे पा रही थी. तो मैंने कनक की ओर देखा. वो समझ गई कि मैं उसको बोलने का इशारा कर रही थी. कनक ने बहुत अच्छे और सटीक तरीके से पत्रकारों के सवालों का जवाब दिया. मुझे याद है उसने जवाब में कहा - “गााँव में तो हम रोज़ ही काम करते हैं. हम कहाँ दिल्ली में रहने वाले हैं. एक नाबालिग लड़की का बलात्कार हुआ है और आज हम दिल्ली की सल्तनत को यह कहने आ रहे हैं कि महिलाओं पर अत्याचार बंद हो. इस के साथ बोध-गया की महिलाएं दिल्ली में यह कहने आयी हैं कि उनको संपत्ति में अधिकार मिले”. जरूरत पड़ने पर और सही समय पर आत्मविश्वास के साथ ठोस तरीके से नेतृत्व करने का पहलू मैंने कनक में पहली बार देखा था.
उसके बाद कनक बिहार के राँची शहर में थी और मेरा राँची आना-जाना होता ही था, किरण और कनक को मिलने के लिए. मैं और कनक घंटो ढेर सारी बातें करते थे. मेरे बेबाक व्यवहार को देख कर कनक अक्सर मुझे टोकती थी और कहती थी “चेतना, यह बिहार है, मुम्बई नहीं“. मुझे उसका इस हक़ और बड़प्पन से टोकना बहुत अच्छा लगता था. कई बार उसे चिढ़ाने के लिए मैं और किरण जानबूझ कर ऐसा व्यवहार करते थे कि कनक हमें टोके.
जब फरवरी 2020 में मैं राँची गई और कनक से मिली, मैंने उसे मसवड और मानवेशी आने को कहा. मैंने उसे सुझाव दिया कि हम साथ में राँची के आसपास आदिवासी इलाकों में काम करेंगे. मैंने कनक से कहा था कि क्यों न हम राँची में कोसा सिल्क (ककून) बैंक शुरू करें. मुझे याद है राँची में मैंने उससे कहा था “कनक हर चीज़ में तुम पहले बाजी मार लेती हो. शादी भी तुमने पहले की और नानी भी तुम पहले बन गई.“
मैं कनक के म्हसवड आने पर बहुत बात करना चाहती थी, घंटो अकेले में गप्पे मारना चाहती थी. “हम तो बुढ़ापा साथ में काटने वाले थे कनक, तुम तो रूठ कर हमेशा के लिए चली गयी.“