फादर स्वामी हमारी हमारे अनुमान से भी ज्यादा जनतांत्रिक व्यक्ति थे. जनतांत्रिक बने रहना कितने अधिक दुस्साहस का काम है यह झारखंड के मानवाधिकार कर्मी और पीयूसीएल जैसी संस्था के लोग स्वामी से सीख सकते हैं. फादर स्टैंड स्वामी इसकी कीमत देते थे.

वह रांची जेसुईस सोसाइटी के सदस्य तथा नामकुम में बगाईचा स्थिति मिशन के बहुत बड़े संस्थान के कर्ताधर्ता होकर के भी, अपने को, और पूरे संस्थान को आम लोगों के प्रति कमिटेड बनते थे. इसके पहले की सरकारों में भी उनकी गतिविधियों के बारे में काफी जासूसी होती थी.

परंतु यह सब एकदम से पलट गया, जब दिल्ली में शासन बदल गया. दिल्ली में शासन में बदलाव और गैर कांग्रेसवाद उस समय की जरूरत थी, क्योंकि शासन चलाने के तरीके में इतना अधिक भ्रष्टाचार घर कर गया था.

परंतु यह बदलाव कितने बुरे के लिए था, इस बारे में पहले भी शंका रहती थी. परंतु या कोई सोच भी नहीं सकता था, की स्टैंन स्वामी जैसे जनतांत्रिक व्यक्ति निहायत झूठे आरोपों में, निहायत झूठे आरोपों में जेल के अंदर डाल दिए जाएंगे और उन्हें जान से मार देने तक की परिस्थिति बनाई जाएगी.