प्रखर आदिवासी कवयित्री उज्जवला ज्योति तिग्गा का कल रात दिल्ली स्थित आवास में निधन हो गया. यह सूचना उनके भाई विनीत ने दी। पद्मश्री रामदयाल मुंडा की स्मृति में दिए जाने वाले प्रथम राष्ट्रीय आदिवासी साहित्य सम्मान 2013 से सम्मानित उज्जवला ने अपने लेखन की शुरुआत डोरोथी नाम से की थी. संकोची और अंतर्मुखी उज्जवला की रचनाएं लंबे समय तक ओझल रही पर जब वे सामने आईं तो पाठकों ने जाना कि उनकी कविताओं का तेवर क्या है. उन्हें आखिरी जोहार कहते हुए मन बहुत भारी है पर फिर भी कह रही हूं. पुरखे उनको संभालें और हमसब उनके परिवार को संभालें, जो शोक संतप्त हैं.

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आदिवासियत के साथ खड़ी कविता

हालांकि उज्जवला ज्योति तिग्गा अनाम नहीं थीं. उरांव आदिवासी समुदाय की यह बहुचर्चित कवयित्री कल रात नहीं रहीं. 17 फरवरी को जन्मीं उज्जवला ने जीवन के 62 वसंत और पतझड़ देखे. हालांकि उनके हिस्से में वसंत से ज्यादा पतझड़ ही रहा. फिर भी वे कभी भी निराश नहीं रहीं, टूटी नहीं. यह हमें इस बेजोड़ आदिवासी उरांव कवयित्री की कविताओं से पता चलता है. हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर उनकी बढ़िया पकड़ थी इसलिए उन्होंने दोनों में अच्छी-खासी रचनाएं की है. हम चाहते थे उनका कविता संग्रह प्रकाशित हो. क्योंकि उनकी कविताएं अभिव्यक्ति एवं सौंदर्य के स्तर पर अलग पहचान रखती हैं. जो आदिवासी रचनाकार शहरों में स्थायी रूप से बस गए हैं, उनके स्वर में आपको अन्य भारतीय कविता परंपरा का प्रभाव जरूर दिखाई दे सकता है. पर इसके बावजूद शहरी आदिवासियों की कविता का स्वर और उसका संगीत भी अपने आंतरिक चरित्र में आदिवासियत के साथ खड़ा होता है. उज्जवला की कविताएं इसकी बानगी हैं.

धरती के अनाम योद्धा

इतना तो तय है कि

सब कुछ के बावजूद

हम जियेंगे जंगली घास बनकर

पनपेंगेध्खिलेंगे जंगली फूलों सा

हर कहीं, सब ओर

मुर्झाने,सूख जाने, रौंदे जाने

कुचले जाने, मसले जाने पर भी

बार-बार, मचलती है कहीं

खिलते रहने और पनपने की

कोई जिद्दी सी धुन

मन की अंधेरी गहरी

गुफाओं, कन्दराओं मे

बिछे रहेंगे, डटे रहेंगे

धरती के सीने पर

हरियाली की चादर बन

डटे रहेंगे सीमान्तों पर, युद्धभूमि पर

धरती के अनाम योद्धा बन

हम सभी

समय के अंतिम छोर तक…

-उज्जवला ज्योति तिग्गा (1960-2022)