गांधी दर्शन सिर्फ बोलने समझाने का नाम नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है. सामाजिक कूरीतियां, आर्थिक गैर बराबरी एवं राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध का नाम है. आजादी के बाद गांधीजी के विचारों के प्रचार प्रसार के लिए कई संस्थाएं बनी. खूब पैसे खर्च हुए, लेकिन आज वह भाषणों, सरकारी आयोजनों में सिमट कर रह गया है. अन्यथा देश की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक परिस्थितियां ऐसी न होती जैस्ी आज दिख रही है. व्यक्तिगत रूप से गांधी दर्शन को अपने जीवन में उतारने वालों की संख्या कम होती गयी. इन गिने चुने नामों में एक नाम है ईला भट्ट, जो ताम झाम से परे, ख्याति की ललक से निरपेक्ष पद की लालसा से दूर गांधी के विचारों को अपने जीवन में उतार कर उपेक्षित महिलाओं के लिए जीवन भर संघर्ष करती रहीं.
1933 ईस्वी में एक संपंन्न घराने में उनका जन्म हुआ. परिवार देश भक्त तथा गांधी के विचारों का समर्थक था. सूरत में ही प्रारंभिक शिक्षा तथा स्नातक की परीक्षा पूरी की. अहमदाबाद में कानून की पढ़ाई के बाद हिंदू कानून में उन्हें स्वर्ण पदक मिला. फिर वे वकालत करने लगी और 1955 में पारिवारिक विरोध के बावजूद रमेश भट्ट के साथ विवाह किया.
उनका सामाजिक जीवन उस समय शुरु हुआ जब वे देश की पहली जन गणना के काम में रमेश भट्ट के साथ दबी कुचली जनता के साथ काम करना शुरु किया. 1951 की जनगणना में शामिल हो कर उन्होंने झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले गरीब लोगों के बीच सर्वे का काम किया और धीरे-धीरे उनकी समस्याओं से जुड़ती चली गयीं. देश में पहली बार कामगारों के बीच संघ बना. अहमदाबाद कपड़ा उद्योग कामगार संघ. 1954 में संध का महिला प्रकोष्ट बनाया गया और 1968 में ईला जी इस प्रकोष्ट की प्रमुख बनायी गयीं.
कामगार संघ से जुड़ने के बाद उन्हें सामाजिक कार्य के लिए बड़ा मंच मिला. सर पर बोझा ढ़ोने वाले, ठेला चलाने वाले, महिला कुलियों को उचित मजदूरी एवे सुरक्षा देने के लिए वे संघर्ष करती रही. 1972 में इन्होंने ‘सेल्फ एमप्लायड वीमेंस एसोसियेशन’ की स्थापना की जो संक्षेप में ‘सेवा’ के नाम से विख्यात हुआ. इसके अंतर्गत महिलाओं को जोड़ने, उन्हें सशक्त बनाने, रोजगार से जुड़ी समस्याओं को दूर करने, खाद्य सुरक्षा एवं सामाजिक सुरक्षा से संबंधित काम वे करने लगी. 1974 में महिलाओं के बीच छोटे ऋण दिलाने के लिए सहकारी बैंक की शुरुआत की. मात्र सात महिलाओं के सहयोग से खोले गये इस बैंक से आज लाखों महिलाएं जुड़ी हैं और इसका लाभ उठा रही हैं.
उनके सामाजिक सरोकार के फलस्वरुप 1977 में उन्हें मैंगसेसे पुरस्कार मिला. 1986 में राईट लाईवलिहुड एवार्ड, 2011 में गांधी पीस प्राईज और फिर भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण पुरस्कार भी दिया गया. वे राज्य सभा की सदस्य भी रहीं. इतने गरिमामय सम्मान एवं उपाधियों के बावजूद वे एक सीधा सरल जीवन जीती रहीं और उपेक्षित महिलाओं के बीच उनके हकों के लिए गांधीवादी तरीके से संधर्ष करती रही जो निश्चय ही सराहनीय व प्रेरणादायक है.