कनक अपनी इहलीला समाप्त कर चली गई। लोग कहते हैं कि जो इस पृथ्वी पर आता है उसे जाना ही है। लेकिन कनक ऐसे अचानक बिना किसी से विदा लिये चली जाएगी, यह बात मेरी कल्पना में भी कभी नहीं आया। अब तो बस यादें ही रह गयीं।
कनक, मेरी प्यारी ‘मुन्नी’, हमारे जीवन में रच बस गई थी। मेरे पति की बहन - ननंद - के नाते ही नहीं, 20 वर्ष हम साथ रहे. साथ जिए, साथ हँसे-रोये हर सुख और दुख में। सुबह टहलने के लिए जाना, साथ में चाय पीना, शाम को ‘मां’ के घर के बालकनी में लगभग रोज घंटे-दो घंटे बैठना, गप्प करना हम दोनों की आदत-सी हो गई थी।
जीवंत महिला. छोटी-छोटी बात पर भी खुश होकर खुलकर जोरों से हंसना! ‘शॉपिंग’ हम दोनों का ‘कॉमन’ शौक था। इसी वर्ष फरवरी महीने में जाते हुए जाड़े में भी हमने ‘सेल’ में ‘कोट’ खरीदी। अपनी इस खरीदारी पर हम बेहद खुश थे। लेकिन घर में जब रूनू ने उसे बड़ा साइज बताया, मैं उदास हुई और कनक दुखी हो गई. पर्व-त्योहार में मां से पैसे लेकर ‘कश्मीर वस्त्रालय’ घंटों साड़ियों की परख करना और सबके लिए पसंद-पसंद की साड़ी चुन कर लेना भी एक शौक था। कनक को नई साड़ी पहनने से ज्यादा खरीदने और दूसरे को पहनाने में मजा आता था।
कनक, कुमुद, किरण और मैं साथ मिलकर ‘संभवा’ (पत्रिका) निकालते थे। संपादक - कनक। संपादन करना, पैसे जुटाना, छपवाना आदि में कनक सबसे ज्यादा समय देती थी। कभी-कभी हम तीनों की ‘निष्क्रियता’ से नाराज भी होती थी। छप कर आई ‘संभवा’ को देखकर खुशी तो होती थी, लेकिन उसे महिलाओं तक पहुंचाना कठिन काम था। हम ‘महिला कार्यक्रमों’ में झोला भर-भरकर ले जाते और महिलाओं में बांटते। यह साझा और रोमांचक अनुभव होता था। बाद में सबों की पारिवारिक जिम्मेदारियां बढ़ गई, तो ‘संभवा’ भी थम गयी। अक्सर हम दोनों, कनक और मैं ‘संभवा’ को ऑनलाइन निकालने की बात सोचते. घंटों इस मीठी कल्पना का स्वाद लेते। लेकिन इस मिठास का स्वाद औरों को चखाना संभव न हो सका।
कनक को घूमने-फिरने का भी बेहद शौक था। साल में एक या दो बार भारत-दर्शन के लिए निकलना होता ही था। इसमें कनक के साथ मुख्यतः मैं या किरण होते थे। ठंड के दिनों में दो या तीन बार ‘पिकनिक’ जैसा कुछ न हो, तो घर या बाहर के किसी काम में जी ना लगे! कश्मीर साथ घूमने की बरसों की इच्छा पूरी भी न हो पाई!
अल्प भाषी, दूसरों को सुनने का धैर्य अपार। बहुधा अपनी समस्या को किसी से शेयर न करने वाली अंतर्मुखी - दूसरों के कष्ट में मदद के लिए तुरंत प्रस्तुत होने वाली सखी! कोरोना नेगेटिव होते हुए भी अपने जीवन-संगी. ‘पॉजिटिव’ श्रीनिवास जी के साथ रही। कोरोना से पीड़ित माता-पिता की सेवा करती रही। जब उसे ‘कोरोना’ ने घेरा, तो बेटी को दूर रखने के लिए उसे डांटती-फटकारती रही! एक स्नेहिल मां, सहृदय नानी और मेरी एकमात्र प्यारी सहेली चली गई! अपार दुख है! उसकी आत्मा की शांति के लिए कामना करती मैं - उसकी भाभी।