मैं जून 1978 में पटना को अलविदा कहकर दक्षिण भारत की शरण में आ गया था । इसलिए कनक- मणिमाला से तब खास संपर्क नहीं हो पाया था । लेकिन एक अच्छा अवसर शीघ्र ही आया जब हमने गोवा में वाहिनी का राष्ट्रीय शिविर का आयोजन अगस्त 1978 में किया था। उस शिविर में मणिमाला और कनक की जोड़ी आज भी चित्ररूप याद है । खासकर गोवा घूमने के दिन का अनुभव । शिविर में दोनों की बौद्धिक प्रखरता तथा सक्रिय भागीदारी सबों को प्रभावित की थी।

दस दिवसीय शिविर समाप्त होने के दूसरे दिन हम सब गोवा भ्रमण पर निकले थे । दोपहर का भोजन पणजी में एक रेस्तरां में हुआ था । भोजन के बाद कनक, मणिमाला तथा दो तीन और युवतियां, नाम याद नहीं है, मेटाडोर में गप्पे लगा रही थीं । दोपहर में खुली गाड़ी में गैर कोंकणी युवतियों को देख रोड- रोमियो आसपास मडड़ाने लगे थे। पांच छह रोमियो साइकिल पर थे और मेटाडोर की परिक्रमा करने लगे थे । शायद मणिमाला को स्थिति का भान पहले हुआ। तब क्या रोड रोमियो को देख जोड़ जोड़ से सीटी मारने लगी । कनक तथा अन्य युवतियों ने भी मणिमाला को साथ देते हुए ज़ोर जोर से सीटी बजाते हुए गाड़ी से उतर आयीं और रोमियो को पास बुलाने लगीं ।

रोमियो समूह के लिए यह सब बड़ा ही अप्रत्याशित था । वे सब युवतियों को अपने ऊपर भारी पड़ते देख भाग खड़े हुए । गोवा शिविर के बाद कनक से बस चलते चलते ही दो तीन बार मिलना हुआ था। कनक सपरिवार जून 2009 में गोवा आयी थी और हमारी संस्था में ही रूकी थी । लेकिन मैं उस अवसर का भी सदुपयोग नहीं कर पाया था। शायद हम आधे घंटे के लिए ही मिल पाए थे और मैं प्रवास पर निकल गया था । सच कहें तो कनक - कुमुद - विनोद जी के पारिवारिक रिश्तों, रांची में एक ही प्लाट पर तीनों बहन भाई के परिवार का बसेरा, कनक की शिक्षा, नौकरी, निवृत्ति, नानी की भूमिका आदि कोई दो माह पहले ही ठीक ठीक जान पाया था जब रूनु अपनी बिटिया के साथ कोई 12-13 घंटे हमारे साथ गोवा में ठहरी थी ।

दरअसल में मैं यह अवसर खींच लाया था । अन्यथा ऐसे विचारशील तथा मूल्यनिष्ठ परिवार के बारे में मैं जान नहीं पाता । धन्यवाद रूनु ‌। तब दूर दूर तक यह आहट भी नहीं थी कि शीघ्र ही कनक स्मृतियों में समा जाएगी । एक बार फिर वाहिनी की वीरांगना साथी को हार्दिक श्रद्धांजलि 🙏🙏।