कनक जी का यूं अचानक चले जाना अब भी समझ में नहीं आता। यह तो बहुत बड़ी क्षति है, ऐसा बार-बार मन में आता है। मैं उनके सहवास में (साथ) ज्यादा नहीं रही और ना ही मेरी उनसे कभी ज्यादा बातचीत हुई. लेकिन मैने उन्हें हमेशा एक आदर्श के रुप में देखा। उनके व्यक्तित्व ने हमेशा मुझे प्रभावित किया। सत्तर के दशक में युवा आंदोलन में जिस तरह से बिहार की लड़कियां उभर कर सामने आई, डट कर खड़ी हुईं, वह पूरे भारत के लिए एक मिसाल थी। नूतन और कनक दी उनमें अग्रणी थी, खास कर संघर्ष वाहिनी में। और भी होंगी, पर मैं उन सबको नहीं जानती।

महाराष्ट्र एक ऐसा प्रांत है, जहां सुधारवादी आंदोलन का ठोस इतिहास रहा है। वहां की लड़कियों को भी बिहार की इन लडकियों ने प्रभावित किया। नूतन, कनक दी, मणिमाला जी, कंचन जी, किरण, कुमुद.. कितने नाम गिनायें? कनक दी का व्यक्तित्व बहुत शांत, गहरा और दृढ़ था। ऐसा कि कोई भी उनके प्रति विश्वास महसूस कर सके। युवा आंदोलन से विकसित वैचारिक स्पष्टता, जिससे उन्होंने कोई समझौता नहीं किया। इन सब बातों के साथ उनके व्यक्तित्व में वह भारतीयता थी, जो सर्वसमावेशक थी। मैं यह जरूर महसूस करती हूं, खास तौर से संघर्ष वाहिनी की महिला साथी के रूप में उनका प्रभाव हम पर है, और इसी रूप में वे जिंदा हैं।

जीवन तो निरंतर बहता रहता है, कभी थमता नहीं और ना नष्ट होता है। वे हैं और रहेंगी।