मेरी नायिका नहीं है

फूल जैसी कोमल

वह है कुछ कुछ

सूरज जैसी

शीतल और प्रचण्ड़

जो समय के हिसाब से

धारण करती रूप

वह नहीं है

छुईमुई जैसी

मेहनत से पके तन में

अनंत तारों जैसे चुभे कांटे

छालों से बहता लहू

ही उसका श्रृंगार हैं

मेरी नायिका नहीं है

तितली जैसी

वह है कुछ कुछ

मधुमक्खी जैसी

जो उनकी भूखी आंखों पर

करती है वार ड़ंक का

मेरी नायिका नहीं है

ऊंचे महलों की रानी

वह तो रहती

पहाड़ों के साये में

जिसकी साथिन प्रकृति

सदा हाथ थामें रहती
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मेरी नायिका नहीं है

आदमी के साथ खड़ी

वह है अकेली

परंतु मुस्कुराती हुई

मेरी नायिका नहीं है

मखमली बिस्तर पर सोती परी

वह है

रातों जाग कर

लहलहाती फसल में

पानी मोड़ने वाली

लावणी करने वाली

मेरी नायिका नहींं है

गाय,भैस जैसी

वह है कुछ कुछ

कैद से परे हवा जैसी

शीतल और प्रचण्ड़

जो समय के हिसाब से

धारण करती रूप

मेरी नायिका नहीं है

मदद की आश लगाए बैठी

वह स्वयं भरोटा ऊच

धरती को थपथपाती

लौट आती है घर

इस थपथपाहट में छिपे हैं अनंत स्वर

जैसे प्रकृति में ध्वनियां