हमारी आदिम संस्कृति एक है, ग्लोबल स्तर पर हम एक हैं. हमारी आशा, भावनायें, सोच, सब कुछ एक सा लगता है. यह एहसास इंग्लैण्ड, जिसका साम्राज्य कई राज्यों में फैला था, जिसने सैंकड़ों सालों तक विश्व के विभिन्न देशों पर शासन किया, के एक विश्व धरोहर स्थल पर आने पर हुआ. वहां हमें हमारे झारखंड के पत्थरगढ़ी की छाप दिखाई दी.

गाइड ने जैसे ही कहा- ‘वेलकम टू द लैंड आफ मिस्टरीज’ हम सभी सुखद आश्चर्य से उसकी बात सुनने लगे. साथ ही हमारे सामने कभी कम्प्यूटर पर देखा दृश्य आंखों के सामने था. स्टोनहंज, प्रागऐतिहासिक पत्थरों का एक चक्र. स्टोनहंज क्या है? पत्थरों की एक गोलाकार संरचना. हमे एहसास होता है कि दुनिया पृथ्वी के बाहर नहीं है, इसके अंदर भी है. ये पत्थर प्रागैतिहासिक काल के हैं. पुरातत्व विभाग के अनुसार यह एक मंदिर भी हो सकता है.

यह एक तरह की कब्रगाह है, ऐसा भी विद्वानों का मानना है. खेतों में अपने आत्मीय को दफनाने, अपने पुरखों को अपने दिल के पास ही रखने की परंपरा सुदूर इंग्लैंड में भी है, यह आश्चर्य से भरने वाला था.

एक रहस्य यह भी है कि इतने बड़े बड़े पत्थर यहां आये कैसे? इन्हें कौन लाया? किस तकनीक से इस ढाई मीटर ऊंचे- ऊंचे पत्थरों के ऊपर लिटाया गया होगा. सब कुछ सहेजने की आदतों ने आदि काल के घरों के प्रतिरूप का निर्माण कर रखा है.

इन पत्थरों के नीचे मानव अस्थियां मिली है, जिनकी उम्र पुरातात्विक विभाग के अधिकारियों के अनुसार 3000 ईसा पूर्व की है. जब यहां पहली खुदाई शुरू हुई, यह सिलसिला 500 वर्षों तक चलती रही. इससे ही अनुमान लगाया जा सकता है कि कितनी पुरानी यह जगह है और कितने पुरखों को इस जगह ने अपने क्षेत्र में स्थान दिया है.

एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके गोलाकार चक्र के बाहर एक और गोलाकार है, जो इस विश्वास, इस मान्यता का द्योतक है कि इस पृथ्वी के अंदर एक और धरती है. पृथ्वी के गर्भ में एक और पृथ्वी पलती है. मृत्यु के साथ सृजन भी, इसी पृथ्वी पर है. हमारे पूर्वजों का हमारे बीच रूप बदल कर बार- बार आना होता है.

कानूनी रूप से इसके संरक्षण की जिम्मेवारी ऐतिहासिक महत्व के रूप में पुरातात्विक कानूनों के तहत की जाती है. स्टोनहंज का स्वामित्व इंग्लैंड के राज घरानों का है, तो इसकी देखभाल की जिम्मेदारी इंग्लिश हेरिटेज को है. इसके आसपास की जमीन को एक राष्ट्रीय ट्रस्ट बना कर की जाती है.

पुरातात्विक विभाग के अनुमान के अनुसार इसका निर्माण 3000 से 2000 ईसा पूर्व हुआ होगा. यहां का पहला पत्थर 2400 से 2200 ईसा पूर्व के समय का है, जबकि इसके आसपास के धरोहरों की उम्र लगभग 3100 बीसी की मानी जाती है. 1986 में इसे जब से विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया, इसका संरक्षण विश्व स्तर पर किया जाता है.

यह एक विश्व धरोहर स्थल है. स्टोनहंज के आसपास दूर तक हरियाली फैली थी, जिस पर सफेद रंग के बत्तख दाना चुग रहे थे, तो सफेद रंग के ही भेड़ हरे रंग की धरती पर चारों तरफ फैले चरवाहों के बगैर चर रहे थे.

जो भी हो मानव सभ्यताओं के इस विश्व धरोहर स्थल, हमारी संस्कृति, हमारे विश्वास हमारी आस्था के एक होने की धारणा, हमे बहुत करीब लाती है.