ताशकंद से समरकन्द की यात्रा मैंने बुलेट ट्रेन से की। जब मैं स्टेशन से बाहर निकली, देखा एक प्यारी सी लड़की मेरे नाम की तख्ती लिए खड़ी है। मैंने सोचा, तो इस शहर के लिए यह मेरी गाइड है। इतनी छोटी उम्र और गाइड का काम, एक लड़की और वह भी ऐसे शहर में जहाँ के अधिकांश लोगो इस्लाम के अनुयायी है। मैं सोचने लगी, न जाने कितने भ्रम हम पाले रखते है, धर्मों के बारे में, व्यक्ति के बारे में, देश के बारे में। लेकिन यात्रा इन भ्रमों को तोड़ने का एक अच्छा माध्यम बनती है। हम खुली आँखों से बहुत कुछ देख और सुन पाते है। मैंने उसका नाम पूछा। उसका नाम अलिजे था और वह मात्र 19 वर्ष की थी। मैं इतनी खुश हो गई उसे देख कर कि आगे बढ़ कर उसे गले से ही लगा लिया। उसने भी एक खूबसूरत मुस्कुराहट के साथ मेरा स्वागत किया। मेरे सामने यह शहर अब थोड़ा-थोड़ा खुलने लगा था।

अलिजे अपने काम में माहिर थी, उसने गाड़ी में बैठते ही समरकन्द के बारे में अपनी जानकारी से मुझे अवगत कराना शुरू कर दिया। वह बताती जा रही थी, और मैं सुनती जा रही थी। मैंने सुना वह बता रही थी, समरकन्द, उज्बेकिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण शहर है। यह एक प्रागैतिहासिक शहर होने के साथ-साथ, भौगोलिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि प्राचीन काल में यह सिल्क रूट का एक हिस्सा हुआ करता था। समरकन्द विश्व के सबसे पुराने शहरों में एक है। यह प्राचीन रोम से भी पुराना है। यह 14वीं और 15वीं शताब्दी में सबसे धनाढ्य शहरों में एक था। यहाँ के शासकों ने अपने इस धन को यहाँ के शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर खर्च किया था। इस्लामिक बहुल देश होते हुए भी यह एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, जहां के सभी नागरिकों को संवैधानिक अधिकार एक समान प्राप्त है। जहां संविधान के संरक्षक के रूप में राष्ट्रपति सरकार में है। उज्बेकिस्तान एक धर्मनिरपेक्ष देश है और इसके संविधान में कहा गया है कि धार्मिक संगठन और संघ, राज्य से अलग होंगे और कानून के समक्ष एक समान होंगे। राज्य धार्मिक संघों की गतिविधि में हस्तक्षेप नहीं करेगा। यह सब कुछ बताती वह गर्वित दिख रही थी।

वह वहीं रुकी नहीं, उसने आगे बताना जारी रखा, मैं भी बड़े ही ध्यान से सुनती जा रही थी। 1991 में सोवियत नियंत्रण से उज्बेकिस्तान के अलग होने के बाद समरकन्द का विकास तेजी से हुआ है। लेकिन धर्म से जुड़े कट्टरवाद का कोई उभार नहीं हुआ, बल्कि इस्लामी आस्था के सिद्धांतों के साथ यहाँ के लोगों का इस्लाम से परिचय धीरे-धीरे हुआ और देश में इस्लाम का फिर से पुनरुथान हुआ। एलिजे ने बताया कि 2015 के बाद इस्लामिक गतिविधियों में थोड़ी वृद्धि हुई है। देश में इस्लाम की प्रधानता और इसके समृद्ध इतिहास के बावजूद, यहाँ आस्था के नाम पर किसी भी अत्याचार को कोई स्थान नहीं दिया जाता। हां, यह बात अवश्य है कि सोवियत नियंत्रण से अलग होने के बाद उजबेकों ने इस्लाम के कई संस्करणों का पालन करना शुरू कर दिया जो पहले अनुबंधित था।

मेरी इस देश और इसके धार्मिक भावनाओं को जानने और समझने की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। मैंने देखा, समरकन्द पूरी तरह से तैमूर द्वारा स्थापित और विस्तारित शहर है। तैमूर ने समरकन्द को अपनी राजधानी बनाया था और इसकी विशाल भूमि से कई कारीगरों और विद्वानों को इकट्ठा करके अपने साम्राज्य को एक समृद्ध फारसी-इस्लामी संस्कृति से भर दिया था। उनके शासनकाल और उनके तत्काल वंशजों के शासनकाल के दौरान, समरकंद और अन्य आबादी वाले केंद्रों में धार्मिक और महलनुमा निर्माण कृतियों की एक विस्तृत श्रृंखला बनी, जिससे उनका यह एक रेगिस्तान जैसा शहर समृद्ध होने लगा था। कई मदरसे बना कर शिक्षा का प्रचार प्रसार किया गया, जिसके कारण यह इस्लामी स्वर्ण युग का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया।

वैसे इस शहर ने कई नर संहार भी झेले थे। कई सामूहिक हत्याएँ यहाँ अभूतपूर्व विनाश लाया, कई हिस्से नष्ट हो गए। 13वीं शताब्दी में चंगेज खान के आने के बाद और 14वीं शताब्दी की शुरुआत में, फारसी साम्राज्य अपने घटक भागों में टूटने लगा था। यहाँ आकार ही पता चला कि तैमूर लंग एक आदिवासी सरदार था, जो अपने संघर्षों के कारण एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरा था। 1405 में चीन पर आक्रमण के दौरान, मरने से पहले उसने रूस पर भी आक्रमण किया था। तैमूर अपनी अत्यधिक क्रूरता के लिए भी जाना जाता था।

तैमूर लंग ने चिकित्सा खोजों का आदान-प्रदान भी स्थापित किया और भारत जैसे पड़ोसी क्षेत्रों के चिकित्सकों, वैज्ञानिकों और कलाकारों को संरक्षण दिया। तैमूर की मृत्यु के बाद तैमूर राज्य जल्दी ही दो हिस्सों में विभाजित हो गया था। 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद, उज्बेकिस्तान एक अलग राज्य बना। मुझे लगा अब यहाँ के इतिहास का क्लास खत्म हुआ। यह छोटी सी बच्ची कितना कुछ जानती है। उसने आगे बताया कि समरकन्द एक गर्म, शुष्क, रेगिस्तानी प्रदेश है। आगे मैंने देखा कि कई स्मारकों के पीछे मिट्टी का पहाड़ सा खड़ा था। यहाँ की कोई भी नदी समुद्र तक नहीं जाती है। इसके 10 फीसदी से भी कम क्षेत्र में नदी घाटियां हैं जिसमें सघन रूप से खेती की जाने वाली सिंचित भूमि है, बाकी विशाल रेगिस्तान और पहाड़ हैं। समरकन्ध की जलवायु महाद्वीपीय है, जहाँ सालाना कम वर्षा होती है और यह एक जल संकटग्रस्त देश है। कपास की खेती में यह दुनिया का सातवां सबसे बड़ा देश है।

समरकन्द में इस्लाम प्रमुख धर्म है, उज्बेक भूमि में यहूदी समुदाय भी सदियों तक फलता-फूलता रहा, लेकिन कुछ शासकों के शासनकाल के दौरान इन्हें कभी-कभी कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा। 14वीं शताब्दी में तैमूर के शासन कल के दौरान यहूदियों ने समरकन्द के पुनर्निर्माण के उनके प्रयासों में बहुत योगदान दिया, और वहाँ एक महान यहूदी केंद्र भी स्थापित किया गया। 1868 में इस क्षेत्र के रूसी शासन के अधीन आने के बाद, यहूदियों को स्थानीय मुस्लिम आबादी के साथ समान अधिकार दिए गए।

समरकन्द में उज्बेक, तुर्किक भाषा और रसियन सभी भाषायेँ बोली, समझी जाती है, लेकिन उज्बेक और तुर्किक भाषाओं के मेल से बने कार्लुक भाषा एकमात्र आधिकारिक राष्ट्रीय भाषा है।

यह चीन, फारस और यूरोप के बीच सिल्क रोड पर स्थित है। चीन और भारत के व्यापार मार्गों पर स्थित होने के कारण यहाँ 1888 में रेलवे का आगमन हुआ। उन दिनों शराब, सूखे ( मावे) और ताजे फल, कपास, चावल रेशम और चमड़े के निर्यात के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र था। यहाँ के सूखे मेवे बहुत मशहूर हैं, जिनका निर्यात बड़े पैमाने पर होता है। मैंने एलिजे से कहा, बहुत हो गई इतिहास की बातें चलो थोड़ा वर्तमान के शहर को देखते हंै। वह फिर से मुसकुरा पड़ी थी। और मुझे रेजीस्टान स्क्वायर ले कर गई जो एक विश्व धरोहर है। जहां तीन मदरसे एक साथ बनाए गए हैं, जो अपने आप में कमाल का दिखता है। इसका निर्माण तैमूर के पोते उज्बेक बेक के द्वारा कराया गया था, जो एक वैज्ञानिक था, और शिक्षा को महत्व देने वाला था। यह स्मारक एक बार टूट गया था लेकिन इसका निर्माण बाद में फिर से कराया गया, क्योंकि एलिजे के अनुसार ऐसे स्मारकों का निर्माण आज कल नहीं होता है। मैं उसकी इस बात से सहमत हो रही थी। उसने आगे बताया, यहाँ पहले एक नदी हुआ करती थी। उसके सूखने के बाद, उसके बालू से इसका निर्माण करवाया गया था। दिन में तो यह बहुत खूबसूरत लग ही रहा था, लेकिन मैं इसे रात में देखना चाहती थी। एलिजे मुझे वहाँ सूरज ढलने के बाद अंधेरा होने पर लेकर गई, और मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब मैंने चांद की दूधिया रौशनी में नहाई हुई इन खूबसूरत इमारतों को देखा। रात के अंधेरे में, चमकीली रौशनी में ये स्मारक बहुत ही सुंदर लग रहे थे, इन्हें सजाया भी बहुत सलीके से था कि इसकी खूबसूरती निखार कर आ रही थी। वैसे रात में यहाँ बहुत ठंड थी, तो मैं ज्यादा देर तक रुक नहीं पाई।

यहाँ बने पहले मदरसे से दूसरे मदरसों को दो मीटर ऊंचा बनवाया गया था। इसके आँगन के बिचो बीच एक कब्र है, जिसके बारे में कोई भी सहज ही अनुमान लगा सकता है कि किसी राजा या रईस या किसी बड़े आदमी का होगा, लेकिन यह कब्र एक कसाई की है। जब इस मदरसे का निर्माण हो रहा था उस समय यह कसाई मदरसों के निर्माण में लगे मजदूरों को खिलाने के लिए एक भेड़ प्रतिदिन लेकर आता था। उसने वहाँ के लोगों के बीच अपनी यह इच्छा जाहिर की थी कि उसके मरने के बाद इन तीन मदरसों के बीच के आँगन में उसे दफनाया जाए। और वहाँ के लोगों ने ऐसा ही किया गया।

आगे हम दोनों “सिलिया कोरी” मदरसा देखने गए जिसका अर्थ है, ‘सूर्य की तरह’। सूर्य की किरनें जब यहाँ पड़ती हैं तो एक सुनहरी आभा सी छा जाती है। एक तरह का 3डी इफेक्ट दिखने लगता है, जबकि है यह समतल ध् फ्लैट, लेकिन इसकी कारीगरी कुछ ऐसी है कि इस गुंबदनुमा संरचना पर गोल्ड प्लेटिंग की कारीगरी कुछ ऐसी की गई है कि सूर्य की रौशनी के पड़ते ही यह सुनहरे रंगों की तरह चमकने लगती है। इस मदरसे का प्रांगण गर्मी में ठंढा तो सर्दी में गरम का अहसास दे जाता है।

ठीक इसके सामने एक म्यूजियम था जिसमें लड़ाई के हथियारों के साथ ही 15वीं शताब्दी के सामानों के टुकड़े और उस समय मदरसों या यहाँ के इमारतों में हुए बदलाव को सँजो कर रखा गया है। यह म्यूजियम स्थापतीय संरचना और जानकारियों का खजाना प्रतीत होता है, एक बहुत ही सम्पन्न स्थान, जहां उज्बेकि संस्कृति को सँजो कर रखा गया है।
इसके बाद हम एक इस्लामिक तीर्थ स्थान देखने गए जिसका नाम था, शाही जिंदा नेक्रोपोलिस जिसकी संरचना बहुत खूबसूरत थी। इसका निर्माण 17वीं शताब्दी में करवाया गया था। यहाँ के ज्यादातर स्मारक ब्लू और फिरोजी रंग की कारीगरी से स्मृध दिखते थे। ब्लू और फिरोजी रंगों की छटा देखते ही बनती थी। बहुत ही खूबसूरत। इन रंगों ने मेरे मन को कुछ ऐसा आकर्षित किया कि मुझे लगाने लगा आज तक मैंने ऐसा कुछ क्यों नहीं देखा, यही तो मेरे फेब्रेट रंग हैं। अगले दिन एलिजे मुझे एक ऐसी जगह लेकर गई, जहां समरकन्द के लोगों ने अपनी संस्कृति, घरों, जीवन अपने पुराने जीवन के रहन सहन के तरीकों को एक स्मृति चिन्ह की तरह संभाल कर रखा है। वहाँ आज भी पेड़ों के तानो से बनने वाले पेपर की मशीन थी। उन पुराने काल में वे जिस तरह से पेपर बनाया कराते थे उसका एक डेमों वे अभी भी पर्यटकों को देते हैं। वही पुरानी मशीनें, वही पुराने तरीके सब कुछ वैसे ही। यहाँ तक कि उस जगह पर वे पेड़ जिनसे वे कागज बनाया करते थे आज भी उस प्रांगण में लगे हुये हैं। खाना बनाने वाला वही पुराना तंदूर और वही किचन।

एलिजे मुझे यहाँ का पारंपरिक खाना पुलाव खिलाने ले गई जो मुझे बहुत ही स्वादिष्ट लगा। जिसमें चावल, सब्जियाँ, प्याज, मीट और कई तरह के मसालों में इसे देर तक पकाने के कारण इसका स्वाद बहुत ही अच्छा बन पड़ा था। इसमें इन लोगों ने कोयल के अंडों को भी उबाल कर डाला था। यहाँ के लोग कोई भी खाना जल्दी बिना मीट के नहीं खाते है, घोड़ों का मीट भी यहाँ खाया जाता है।

उज्बेक बेक जो तैमूर के पोते थे, और एक वैज्ञानिक भी थे, ने यहाँ एक ओब्जेर्बेटरी का निर्माण करवाया था। अभी यह थोड़ा टूट फुट गया है। ओब्जेर्बेटरी का ऊपरी हिस्सा ढह गया है, और केवल निचला भाग बचा है। आज इसे देख कर अनुमान लगाना मुश्किल है कि उज्बेक बेक ने कैसे यहाँ काम किया होगा। चाँद सितारों को देखने की इस जगह पर उज्बेक बेक बहुत सारा समय बिताया करते थे। ओब्जेर्बेटरी के नीचे जाकर वे चाँद और सितारे देखा करते थे। भारत में मुगल राज की स्थापना करने वाले बाबर, तैमूर लंग के ही वंशज थे, वे तैमूर लंग के परपोता थे, अर्थात बाबर के परदादा।.

वहाँ जाकर मैंने जाना कि जिस तैमूर लंग कि चर्चा हमारे यहाँ एक आक्रमणकारी, एक आततायी के रूप में होती है, उसी तैमूर लंग कि चर्चा के बगैर समरकन्द क्या, उज्बेकिस्तान की भी चर्चा अधूरी है। समरकन्द के ज्यादातर इमारतों का इतिहास इनसे जुड़ा हुआ है। लोग अपने बच्चों का नाम इनके नाम पर रखते है। तैमूर की ख्वाइश थी कि उन्हें उनकी मृत्यु के बाद ‘शहर- ए- सब्ज’, में दफनाया जाए, जहां उनका जन्म हुआ था, जो उज्बेकिस्तान में है, लेकिन चीन के साथ युद्ध कर लौटते समय उनकी मृत्यु आत्रार में हो गई, (जो कजाकिस्तान में है) और सर्दियों की बर्फबारी के कारण उनको ‘शहर- ए- सब्ज’ लाना संभव नहीं हो पाया। आज भी उनका मकबरा ‘गुर-ए-आमिर’ कजाकिस्तान में है। आमिर तैमूर के साथ इनके दो बेटों, पोतों, गुरुओं को भी यहाँ ही दफनाया गया है। आमिर तैमूर एक महान योद्धा थे। उनका प्रभाव आज भी यहाँ बहुत है, बहुत ही सम्मान से उन्हें याद किया जाता है।