मेरी भारत की ट्रेवेल अजेंट कणिका ने मुझे सूचना दिया था कि मेरी गाइड आने वाली है जो मुझे प्राग के बारे में जानकारी देगी और शहर दिखलायेगी. मैं होटल से बाहर निकल कर उसका इंतजार कर रही थी, तभी एक 15-16 साल की लड़की मेरी तरफ आती दिखी. पास आकर उसने मुस्करा कर मेरा नाम लिया. इस अंजान शहर के एक अंजान सड़क पर किसी ने मेरा नाम लिया, यह मेरे लिए आश्चर्य की बात थी. मैं उसकी तरफ उत्सुकता से देखने लगी. कौन है यह जो मुझे इस शहर में मेरे नाम से जानती है?

तभी मुझे कणिका द्वारा बताया एक नाम याद आया. मैंने पूछा, एनेस्थीसिया? बच्ची हंस पड़ी. हमने हाथ मिलाया और वह मुझे आगे ले कर चल पड़ी. तो, यह प्राग के लिए मेरी गाइड है. लेकिन यह छोटी सी बच्ची! मैंने उससे उसकी उम्र जानना चाहा. उसने बताया - ‘मैंने हाल में अपना 19 वां जन्म दिन मनाया है.’ मैं अस्वस्त हुई, तब तो ठीक है. नहीं तो मैं वाई-फाई मिलते ही कणिका की क्लास लेने वाली थी.

एनेस्थीसिया एक अच्छी गाइड साबित हुई. उसने बताया कि वह अपनी 12वीं का एक्जाम पास कर कॉलेज में आगे की पढ़ाई के लिए एडमिशन ले चुकी है और यह उसका कुछ घंटों के लिए सप्ताह में पाँच दिन का पार्ट टाइम काम था. उसने आगे बताया कि उसकी माँ गाइड है और जब वह छोटी थी, उस समय उसे घर में देखने वाला कोई नहीं था. तो, उसकी माँ उसे अपने गाइड के काम के समय साथ ले जाया करती थी. माँ को बोलते देख कर उसने भी बोलना सीख लिया और फर्राटे से बोल- बोल कर अपने काम में निपुण हो गई है.

एनेस्थीसिया के साथ मैं अपने प्राग दर्शन के लिए निकल पड़ी. आज के चेकोस्लोवाकिया (चेक) के कल की कहानी, इसका इतिहास, संघर्ष बहुत ही रोमांचक है, जो कई मकामों से गुजरा है. इसने परिवर्तन के कई रूप देखे हैं, जिसे आज के चेक में ढूंढना एक मुश्किल सा काम था. लेकिन मैं, मेरी इच्छा उसे ही हर जगह ढूंढ रही थी. मैं प्राग के विशाल किले के प्रांगण में थी और उसकी साजो सज्जा से अभिभूत हो रही थी. एनेस्थीसिया ने बताया कि 9वीं सदी में बोहेमियन रोमन शासकों के द्वारा इस किले का निर्माण करवाया गया था, जो अपने विभिन्न कालों में सभी शासकों के लिए सत्ता और शक्ति का केंद्र रहा है. यह एक ऐतिहासिक किला है जो विश्व के विशालतम किलों में एक हैं, और यह विश्व भर से आए पर्यटकों के आकर्षण का एक महत्वपूर्ण केंद्र है. किले के बड़े से प्रांगण में ही ‘चर्च ऑफ वर्जिन मेरी’ के साथ-साथ ‘वेसेलिका ऑफ संत विलेस’ था. किले के अंदर कई बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें थी और उसका लैंडस्केप उसकी खूबसूरती को बढ़ा रहा था. किले के एक ऊपरी आँगन से पूरे प्राग का दृश्य देखा जा सकता है. छोटे-छोटे घर की लाल छतें बहुत ही सुंदर लग रहीं थीं. किले के अंदर के चर्च, गोथिक स्टाइल की लम्बी ऊंची नुकीली इमारतें इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रहे थे. यहाँ पानी की विशेष वैज्ञानिक व्यवस्था आश्चर्यचकित कर रही थी. आज भी इस किले के भीतर यहाँ के राष्ट्रपति का निवास स्थान है. चेक प्राकृतिक रूप से एक बहुत ही सुंदर देश है, जिसकी राजधानी प्राग, वल्तावा नदी के दोनों किनारों पर बसा है. प्राग को वहाँ की स्थानीय भाषा में प्राहा कहते हैं, जो सुनने में ज्यादा ही मधुर लगता है. चूंकि प्राग एक छोटा सा देश है तो हमलोगों ने पैदल ही घूमना तय किया. इसके वल्तावा नदी पर बने चार्ल्स ब्रिज के एक किनारे पर ओल्ड सिटी है, तो दूसरा किनारा न्यू सिटी की तरफ जाता है. पुराने प्राग की गलियाँ छोटे-छोटे ईंटों से बिछी थी जो आज भी अपनी मजबूती को बखूबी प्रकट कर रहीं थीं. इन गलियों में बनी खुनसूरत मीनारों वाली बिल्डिंगों को देखते, भटकते, घूमते हमें चार से पाँच घंटे लग गये और मैं पूरी तरह से थक गई थी. इन रास्तों पर गाड़ियों के आवागमन की इजाजत नहीं थी, तो हम बेपरवाह होकर सड़कों पर घूम रहे थे. हाँ, कहीं-कहीं घोड़ा गाड़ी जरूर दिख जा रही थी.

प्राग की खूबसूरती को मैं अपने कैमरे के साथ-साथ आँखों में पूरी तरह भर लेना चाहती थी, तो मैंने वल्तावा नदी के क्रूज से इसे देखना तय किया और क्रूज का टिकट ले लिया. नदी के माध्यम से पूरे शहर को देखना एक अच्छा अनुभव था. वैसे ट्राम से प्राग को देखना इसके स्थानीय लोगो से बात करना, उनके जीवन, रहन-सहन, संस्कृति को जानने का एक अच्छा माध्यम था, जो आनंदाई था. प्राग शहर बहुत ही शांत है. यहाँ की इमारतों का रंग बहुत ही हल्के रंगों का था और यहाँ के फुटपाथ सड़कों से ज्यादा चैड़े थे, जिसके दोनों तरफ गाडियाँ पार्क की गई थी. वैसे तो चेक में यूरो चलते हैं लेकिन वहाँ की अपनी करेंसी है जिसे कोरुना कहते हैं, जो यूरो से कमजोर है. प्राग में पीले रंग के घर और लाल रंग की छत के मकान दिखाई देते हैं. पर्यटन प्राग के अर्थव्यवस्था का एक जरूरी अंग है. कई लोगों की रोजी-रोटी इससे चलती है.

मैं भारत से अकेली यहाँ घूमने आई हूँ, यह सभी को आश्चर्य में डाल रही थी. सभी तरह-तरह कि बात पूछ रहे थे कि मैं अकेले इतनी दूर बिना परिवार के साथ के कैसे आ गई? कि मेरे परिवार का कोई मेरे साथ क्यों नहीं है? मुझे डर नहीं लगता? कुछ भी मेरे साथ हो सकता है और पता नहीं क्या-क्या. हमारी गाइड ने बताया कि वैसे तो पूरा यूरोप लड़कियों के लिए रातों में भी सुरक्षित है, पर विशेष रूप से प्राग महिलाओं के लिए बहुत ही सुरक्षित शहर है. तुम जितनी देर चाहो रात में बाहर रह कर इस शहर का आनंद ले सकती हो. होटल के बेयरा ने यह पुछने पर कि यहाँ रातों में बाहर लड़कियां कितनी सुरक्षित हैं, उसने कहाँ कि आज तक तो उसने ऐसी किसी घटना के बारे में सुना नहीं है. यहाँ बहुत से लोग इंगलिश नहीं बोल पाते, पर उन्हें इस बात पर कोई परेशानी या ग्लानि नहीं होती है.

वल्तावा नदी पर बने चार्ल्स ब्रिज की छटा ही निराली थी. पूरे ब्रिज पर लोग बेफिक्र होकर घूम रहे थे. अपने-अपने कैमरे में तस्वीरें ले रहे थे. कहीं- कहीं स्थानीय चित्रकार लोगों के चित्र बना रहे थे और मुझे यह अहसास हो रहा था मानो मैं कोई आर्ट गैलरी में हूँ. कहीं कोई गाना गा रहा था, तो कोई संगीत बजा रहा था, तो कहीं कोई बुलबुले उड़ाये जा रहा था, जिसके पीछे बच्चे मस्त हो खेल रहे थे. कहीं खाने के स्टॉल बने थे और लोग व्यंजनों का स्वाद चख रहे थे. ब्रिज के किनारों की रेलिंग पर इस देश के संतों की ऊंची-ऊंची प्रतिमाएँ बनी थी, जिनकी अलग-अलग कहानियाँ मशहूर हैं. इनमें से एक प्रतिमा के पैरो को छू कर लोग पुण्य की कामना कर रहे थे. कुल मिला कर एक मेले जैसा दृश्य था, जिसमें लोग आनंद में डूबे थे. गाइड ने बताया कि यह यहाँ के रोज का नजारा है. आज कोई विशेष दिन नहीं. रात अधिक हो रही थी तो नाइट लाइफ का पूरी तरह से आनंद लेकर मैं अपने होटल लौट आई, अपने मन में यह सोचती कि मैं यहाँ बार-बार आना चाहूंगी.

वल्तावा नदी के साथ-साथ चलते हुए मैंने दो दिनों के अंदर पूरे प्राग, इसके राजनीतिक, सांस्कृतिक, अकादमिक, धार्मिक संस्थानों, इसके संग्रहालयों को नजदीक से देखा और जाना की यह देश हर क्षेत्र में हर तरह से समृद्ध और उत्कृष्ट है.