8 मार्च अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस, महिलाओं के संघर्ष के इतिहास में एक ऐसा प्रतीक दिवस बन गया हैं जिसे वह अपना दिन कह कर मनाती हैं. विश्व भर की महिलाए आज के दिन को अपने संघर्षों को याद करने, स्वमूल्यांकन, चिंतन, विचार करने, खुशियां मनाने के रूप में मनाती हैं. दुनिया भर की लाखों संघर्षरत महिलाएं इस प्रेरक दिवस को कुछ नया करने, आगे बढ़ने के आह्वान के रूप में लेती हैं. शोषण अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाती औरतें समानता के लिए संघर्षरत हैं और इस दिन को फिर से अपनी ताकत संजोनें के प्रेरणादायी दिवस के रूप में त्योहारों के समान मनाती है.

8 मार्च दिवस का अंतरास्ट्रीय स्तर पर एक एतिहासिक पृष्ठभूमि रहा है. इस दिन का ऐतिहासिक महत्व इसलिए भी हैं कि यह महिलाओं के संघर्ष की दास्तान कहता है. 8 मार्च 1857 को वेस्जिका के सूती वस्त्र उद्योग में कार्यरत हजारों महिलाओं ने काम के 16 घंटो को घटा कर 10 घंटे करने और मजदूरी बढ़ाने की मांग को लेकर व्यापक संघर्ष की शुरुआत की थी. जिसकी सफलता उन्हें 8 मार्च 1908 को ही मिली. इस लंबे संघर्ष में महिलाओं ने अपने अधिकारों को हासिल करने की सामूहिक ताकत को और आगे बढ़ाया.

फ्रान्स की महिलाओं ने 8 मार्च 1870 में जब पेरिस कम्यून का जन्म हुआ, उस संघर्ष में अपने जुझारूपन का परिचय दिया, अपनी लड़ाई को मुखर बनाया. 8 मार्च 1908 को न्यूयार्क के कपड़ा मिल की हजारों महिला श्रमिकों ने अपनी मांगों के साथ न्यूयार्क की सड़कों पर विशाल प्रदर्शन किया. इस तरह यह न केवल महिलाओं के शोषण-अत्याचार का विरोध दिवस बना, वरन श्रमिक वर्गीय चेतना के साथ महिलाओं की लड़ाई का प्रतीक भी बना.

8 मार्च दिवस की ऐतिहासिक घटनाओं को मद्देनजर रखते हुए 1910 के 8 मार्च को एक विशाल रैली को संबोधित करने के दरम्यान महिला नेत्री क्लारा जेटकिन कापेनहेगेन में नेशनल सोशालिस्ट कन्फ्रेंस में इस दिवस को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव रखा ताकि आगे आने वाले समयों में यह दिवस महिलाओं के लिए एक प्रतीक दिवस बने जो महिलाओं को अपने संघर्षो को याद करने, आगे बढ़ने की प्रेरणा दें, तबतक जब तक समतामूलक समाज की स्थापना नहीं हो जाती. दुनिया भर में क्लारा जेटकिन के इस प्रस्ताव का स्वागत हुआ और 1911 में पहली बार 8 मार्च महिला दिवस के रूप में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया गया. उस दिन से जो शुरुआत हुई आज तक जारी है.

1915 के 8 मार्च को ही ओस्लों की महिलाओं ने प्रथम विश्व युद्ध के खिलाफ आवाज उठाया था. 1917 में 8 मार्च को रुसी महिलाओं ने शांति और अमन का नारा बुलंद किया. मास्को शहर की सड़कों पर निकला औरतों के जुलुस ने रुस को एक क्रांति का शहर बना दिया.

1937 में स्पेन की महिलाओं ने फ्रेंची तानाशाही और दमन के खिलाफ प्रदर्शन किया. 1943 में इटली की महिलाओं ने मुसोलिनी के फासिस्ट शासन के खिलाफ प्रदर्शन किया. 1979 में इरानी औरतों ने खुमैनी शासन के महिला विरोधी नीतिओं के विरोध में जुलूस निकला और अपना विरोध दर्ज करवाया.

8 मार्च 1981 के दिन यूरोप के विभिन्न देशों में हजारों औरतों ने निशुल्क और सुरक्षित गर्भपात की व्यवस्था और कानूनी तौर पर गर्भपात की छुट की मांग को लेकर मोर्चे बनाये और प्रदर्शन किये.

भारत में भी महिलायें अपने ऊपर होनेवाले शोषण अत्याचार समाज के पितृसतात्मक चरित्र के विरोध में निरंतर मुखर है, अपने संघर्षों को आगे बढ़ाने में जुटी हैं. न केवल महिला मुद्दे बल्कि हिंसा, युद्ध के खिलाफ भेदभाव की राजनीति के विरोध में, साम्प्रदायिकता, विस्थापन, पर्यावरण, तानाशाही, दलितों आदिवासियों के सवालों की भी महिलाओं ने अपने संघर्ष का मुद्दा बनाया है.

कल को महिला श्रमिकों का अपने काम के घंटों को निर्धारित करने, बेहतर जीवन जीने की मांग से शुरू हुआ संघर्ष आज कई पायदानों को पार कर चूका हैं. और यह दिन महिलाओं के संघर्षपूर्ण जीवन का एक विशेष दिन बन गया हैं. अपने सामूहिक शक्ति को पहचानने, अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने, अपनी एकजुटता को प्रदर्शित करने का दिन. महिलाओं के संघर्ष का विगुल फूुक चुका हैं, सफर आरम्भ हो चुका हैं. लेकिन मंजील अभी दूर हैं और तब तक हमें चलते रहना हैं. जबतक कि हम महिलाओं को बराबरी का हक नही मिल जाता. समानता का अधिकार नहीं मिल जाता.