हम जो तारीक राहों में मारे गए

(ईथल और जूलियस रोज़न्बर्ग के ख़ुतूत से मुतास्सिर होकर)

तेरे होंटों के फूलों की चाहत में हम

दार की ख़ुश्क टहनी पे वारे गए

तेरे हाथों की शम्म’ओं की हसरत में हम

नीमतारीक राहों में मारे गए

सूलियों पर हमारे लबों से परे

तेरे होंटों की लाली लपकती रही

तेरी ज़ुल्फ़ों की मस्ती बरसती रही

तेरे हाथों की चाँदी चमक़ती रही

जब धुली तेरी राहों में शामे-सितम

हम चले आए, लाए जहाँ तक क़दम

लब पे हर्फ़े-ग़जल, दिल में क़दीले-ग़म

अपना ग़म था गवाही तेरे हुस्न की

देख क़ायम रहे इस गवाही पे हम

हम जो तारीक राहों में मारे गए

नारसाई अगर अपनी तक़दीर थी

तेरी उल्फ़त तो अपनी ही तदबीर थी

किसको शिकवा है गो शौक के सिलसिले

हिज्र की क़त्लगाहों से सब जा मिले

क़त्लगाहों से चुन कर हमारे अलम

और निकलेंगे उश्शाक़ के क़ाफ़िले

जिनकी राहे तलब से हमारे क़दम

मुख़्तसर कर चले दर्द के फ़ासिले

कर चले जिनकी ख़ातिर जहाँगीर हम

जाँ गँवा कर तेरी दिलबरी का भरम

हम जो तारीक राहों में मारे गए