धनाबुरु के खोइच्छा में

बहती, कोईल नदी उफान पे

जंगलों में बहुत शोर है.

कभी देखा?

गांव के राजा को प्रजा के साथ

कारी मुण्डा तुमने कोशिश की

कभी नहीं!

मुरुम रोड से

चलकर बस्ती जाने की

नहीं ना

उलगुलान की घरती

लहू से लथपथ हो गयी

नीले गायों का झुंड

एक बार फिर दमन कर रहा

खेतों के खुशहाली पर

प्रहार कर रहा हैं.

कभी देखा था वीर के गांव में

जंगल के खेतों में बेग साग

उठाने गयी थी गांव के गांव

साग घर कभी नहीं आया

कभी खोजने गये तुम उनको

जिसकी होने का मतलब था

तुम्हारा होना, व्यवस्था का होना

ताकने तक नहीं गया

जिसने चुना था तुमको

टोला-टोला, बस्ती बस्ती

जहाँ पुरखा के गांव हैं

पर तूने

कभी पडो़सी के आंगन पर

मिश्र टोला का झंडा लगाया

जब जब देखा तुझे अपना सोचकर

देशी अगुआ

का ग्राफ गिर जाता है जमीन पे

हम लड़ लेगे जीत लेगे

आग बन कर दहक जाएगे

एक बार उलगुलान की धरती

आबाद कर जाएगे

पर तेरे जैसा को

तीर, कमान दिखाएंगे.

याद रखना

अबकी बार हूल के फूल से

लिखेगे उलगुलान का नया इतिहास..