(जो भगवान को नहीं मानते, इस तरह की कठिन घड़ी में वे यह कह कर कोई सहूलियत नही पा सकते कि भगवान ने बुला लिया. हमारे लिए मृत्यु हमेशा ही कठिन मसला है. इसी तरह मृत्यु के बाद क्या यह हमारे लिए अबूझ पहेली है। समझ में यही आता है, कि आप कनक जी से अपवाद में भी मिल नही पाएंगे।)

वर्षो पहले सन् 1978 में कनक जी पटना साइंस कॉलेज, पटना में पीजी की छात्र थी. मै अभी पटना कॉलेज में बीए में गया था. उज्ज्वल धवल वस्त्र में वो और मणिमाला, साथ में कंचन. ये तीन हमसे ठीक बड़ी.

1978 से पटना विवि के विद्यार्थी अक्सर बोधगया आंदोलन के दो सौ गांवों में जाने लगे. उनमें कनक जी नियमित रहतीं. अनेक युवतियों ने अनुसरण किया. हम यहीं उन्हें, हमारे अन्य नेताओं से अलग कर के देखते. कार्यकर्ता गाँव में घरों में रोटेट कर खाना खाते. एक बात होती, थाली धोने से रोकते समय गांव वालों से बहस होती. तब घर वाले कहते कि घर की स्त्रियां हैं ना इस काम के लिए.

यही चर्चा का विषय बन जाता- अपनी स्त्रियों को अपना बराहिल समझोगे? हां, तो तुम भी सामंत के अधीन रहोगे.

इस तरह भुइयां समाज और अन्य वंचित वर्गों में नारीवाद की बुनियाद पड़ी. इसी का विस्तार हुआ.

आगे सभी के बीच मसला यह था कि मुक्त की गई जमीन के वितरण में सरकार कागज/ दस्तावेज में स्त्री को मालिक माने. सरकार को मानना पड़ा और विश्व में पहली दफा स्त्रियों को संपत्ति में बराबर का स्थान मिला.

इंदुलता जी ने टेक्सास यूनिवर्सिटी से इसकी समीक्षा अपने पीएचडी शोध में की है.

फिर, सात साल के अंतराल के बाद मैं 1994 से फिर बोधगया आंदोलन में लौटा. इस दफा 25 वर्षों से जब भी उन्हें जहाँ भी बुलाता, गाँव आतीं, रुकतीं. मैंने 2014 से जब बिहार के आदिवासी बहुल क्षेत्र बांका जिले के गाँव के लिए काम को जोड़ लिया, कनक जी आने लगीं. आप बड़ी बहन से संबल चाहते ही हैं.

(बांका में आदिवासी मजदूर किसान संघर्ष वाहिनी की बुनियाद पड़ रही थी. स्थापना सम्मेलन के समय मेरा पैर टूट गया था. उन्होंने मुझे काम पूरा करने का भरोसा दिया. पूरा किया.)

एक महिला की सलाह को हमेशा आगे रखना. यह आपके पूरे मूव को काफी डेफ्थ/गहराई देता है. नारीवादी आंदोलन ने, यदि सही रूप में लें, मजदूर आंदोलन और सभी सामाजिक अभियानों मे नारीवादी ने गहराई प्रदान की है.

डायनोमिकस ऑफ डेमोक्रेसी (डीडी) नामक वाट्सएप समूह की बहसों में कनक जी कभी कभी ही शामिल होतीं. पर जब नाबालिग लड़के-लड़की के साथ रेप जैसे मसले पर इस समूह में विमर्श हुआ तो नियमित लिखती रहीं.

जब भी उन्होंने लिखा, बेकार की बातें समाप्त हो जातीं. प्रायः हर बार. सबसे पहले पूनम गुडगांव से उनकी टिप्पणी पर अंगूठे का निशान चस्पा कर देती।

मैं हर पोटेंशियल स्त्री-पुरुष से कनक जी की बात कराने की कोशिश करता।