कहा जाता है विचार कभी मरता नहीं है. संघर्ष के नये रास्ते ने मानव जीवन को हमेशा एक दिशा ही दिया. कनक उन दिशा देने वाली नारीवादी आंदोलन की एक अगुआ थी. वह युवावस्था से औरतों के हक में भी सड़क पर आवाज को बुलंदी तक पहुंचने के महिलाओं को संगठित किया और एक नारा लगाती रही- औरत भी जिंदा इंसान, नहीं भोग की वह सामान. इंसानियत के पैगाम के साथ आजादी की नींव रखे इस नारे ने घर के आंगन से लेकर औरतों के दिल में दस्तक कर गयीं.

एक समय था जब समाज में औरतों के शोषण के विरुद्ध संघर्ष का रास्ता गढ़ा. आजादी के लम्बे रास्ते को मजबूती से पकड़ कर आवाज लगाती थी कि बदलों इस शोषण वाली व्यवस्था को. घर से निकल कर बहनापा को अपनाओ.

बहनापा के लिए खुलकर मंच और सभाओं में बुलंद आवाज लगाती थी. हर पल नारी स्वतंत्रता के लिए उठ खड़ी होने वाली कनक, जीवन में जाति, धर्म, अमीरी, गरीबी, छुआ-छूत जैसी कोई भी चीज, जो इंसान को इंसान से अलग करता हो, को नकारते हुए समाज में औरतो की पहचान के लिए संघर्षरत रही.

‘संभवा’ नामक मैगजीन में औरतो की सोच और आजाद ख्याल वाली औरतो की कलम से औरतों की बात को बहस के मंच तक पहुंचाने वाली कनक नारी सवाल को को दिशा देने वाली फेमनिस्ट औरतों में से एक थी.

उत्पीड़न को समझने और समझाने का औरत का नजरिया, औरतों के उपर हो रहे उत्पीड़न को सझम कर समाधान के रास्ते की तलाश की सिपाही थी कनक, जिन्होंने खुलकर नारीवादी सोच को जीवन ही नही, परिवार और समाज- संगठनों के बीच रखने का काम किया. उत्पीड़न के कारणों को समझ कर सुलझाने का रास्ता खोजना उसके जीवन का एक लक्ष्य था.

अपने जीवन में 8 मार्च महिला दिवस पर औरतों पर बढते हमले के लिए युवाओं को रास्ता दिखाने के लिए हर सभा में होती थी. सहज और सरल भाषाओ में समाज को जागरूक करती हमेशा सहज उपल्बध होती थी. उनकी असमय मृत्यु से नारीवादी आंदोलन की बड़ी क्षति हुई है, जिसकी भरपाई हम नहीं कर सकते हैं.

हम भूल ना पायेंगे आपको.