संघ परिवार हमेशा से अपने राजनीतिक फायदे के लिए ‘सरना, सनातन एक’ का नारा देता रहा है. यह हास्यास्पद है, कि जिस आदिवासी समाज को पूरे हिंदू वांगमय में ‘दस्यु’, ‘दानव’, ‘राक्षस’, वा’नर आदि कह कर संबोधित किया गया है, उस पर आज संघ परिवार को बड़ा प्रेम उमर आया है. लेकिन यदि हम आदिवासी और हिंदू समाज की पूजा पद्धति और ईश्वर के स्वरूप के बारे में उनके विचार को देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि सरना और सनातन में कोई मेल नहीं. आईये हम इस अंतर को देखें.

जिस तरह हमारे समाज में लोग जातियों में बंटे हुए हैं, ठीक उसी प्रकार हिंदू समाज के लोग भी विभिन्न जातियों में बंटे हैं. लेकिन जातियों में बंटे होने के बावजूद आदिवासी समाज की पूजा पद्धति लगभग एक है, उसी तरह विभिन्न जातियों में बंटे हिंदू समाज की पूजा पद्धति भी लगभग एक जैसी है. और इन दोनों समुदायों की पूजा पद्धति एक दम भिन्न है जिन्हें सूत्रबद्ध करने की जरूरत है ताकि लोग आदिवासी और हिंदू समाज की पूजा पद्धति के इस अंतर को अच्छी तरह समझ सकें.

आदिवासी समाज के लोगों की पूजा पद्धति मुख्य रूप से यह प्रकृति से जुड़ा हुआ है और प्रकृति के खुले प्रांगन में होता है. आदिवासियों का मुख्य पर्व सरहुल है, जो साल के चैत्र महीने में होता है जब चांद आसमान में उतरता है. चांद का दिखाई देना मतलब सरहुल का सन्देह देना. सरहुल नाम से ही पता चलता है कि इसमें साल पेड़ की पूजा होती है. यह नये साल का पहला पर्व होता है.

सामान्य रूप से यह सभी आदिवासियों का पर्व है. सभी आदिवासी सरहुल के दिन एकजुट होकर सरना स्थल को जाते हैं और पूजा करते हैं. सरना स्थल खुले वन क्षेत्र या गांव के समीप के जंगल में हुआ करता था और उसकी घेराबंदी नहीं होती थी. अब चूंकि जमीन का अतिक्रमण होने लगा है, इसलिए सरना स्थलों की घेराबंदी भी होने लगी है. लेकिन उसके अंदर मंदिर जैसा कोई निर्माण नहीं होता. सरना स्थल पर पूजा पाहन द्वारा करवाया जाता है. और पूजा किसी देवी देवता के मूर्ति की नहीं, प्रकृति की होती है. आदिवासियों का कहना है कि जो भी नया फसल है, उसे पूजा स्थान में पहले चढ़ाते हंै. तब जा कर उस फसल का उपयोग करते है. यह एक तरह से प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञया ज्ञापित करना है.

सरहुल के दिन सभी लोटा में पानी और आम का पत्ता लेकर सरना संस्थान में एकजुट हो कर पूजा करते हैं. वहां पर जितने पेड़ पौधे होते हैं अर्थात सरना झंड़ा में लोटा से पानी को डालते हैं और आरवा चावल एवं गुलैची पुष्प को चढ़ाते हैं और प्रसाद में चिवड़ा, मिसरी एवं चना दिया जाता है. आदिवासी समाज का मानना है कि सरहुल पूजा इसलिए की जाती है ताकि नये साल में अच्छी फसल, खेती, धूप और अच्छी वर्षा हो.

अच्छी वर्षा के लिए सरना संस्थान में पाहन घड़ा में पानी भर के पेड़ के नीचे रख देता है. उससे यह अनुमान लगाया जाता है कि इस साल वर्षा होगी या नहीं. अगर पानी जैसा का तैसा रहा तो पानी की कमी नही होगी और अगर पानी घड़ा में कम हुआ, मतलब इस साल पानी की कमी होगी. और वर्ष में अच्छी खेती हो, अच्छी फसल हो, पेड़ पौधे ठीक रहंे, इसके लिए सरहुल पूजा किया जाता है. इस पूजा का एक नियम यह भी है कि सबसे पहले पूजा पाहन द्वारा सरना स्थान में होती है, तब जा कर सभी अपने-अपने घर में पूजा करते हंै और सभी के घर मे जितने नए फसल होते हैं, उसकी सब्जी बनायी जाती है

आदिवासियों की पूजा पद्धति की सामग्री है आरवा चावला और उसके रोटी, साल का पत्ता एवं फूल, आम पत्ता, दो मुर्गी, हड़िया, धुवन इत्यादि.



हिंदुओं में सामान्य रूप से यह देखा जाता है पूजा देवी-देवताओं की की जाती हैं, जो मंदिरों में विराजते हैं. इसके लिए जगह- जगह मंदिर स्थापित होती हैं, और तरह-तरह से पूजा पाठ अर्चना करते हंै. पूजा- पाठ के लिए के लिए कई प्रकार की किताबंे होती हैं. हर देवी-देवताओं की अलग-अलग किताबे. गैर-आदिवासी समाज के सभी देवी-देवताओं के अलग- अलग नाम हैं, जैसे लक्ष्मी जिसकी पूजा धन प्राप्ति के लिए किया जाता है और सरस्वती की पूजा ज्ञान प्राप्त करने के लिए. ऐसे कई देवी-देवताएँ हैं जिनकी पूजा से अलग-अलग चीजों की प्राप्ति होती है. ठीक इसी प्रकार घर की सुख शांति के लिए, स्वस्थ रहने के लिए कई भिन्न-भिन्न भजन, कीर्तन, आरती करते हैं.

सबसे बड़ा अंतर यह है कि हिंदुओं की पूजा मूल रूप से व्यक्तिगत लाभ के लिए किया जाता है. इश्वर को खुश कर उनसे संतान, संपत्ति, घर की सुख शांति की मांग की जाती है. कुछ छात्र परीक्षा में अच्छे नंबर लाने की भी भगवान से प्रार्थना करते हैं. जबकि आदिवासी समाज प्रकृति जो हमें देती है, उसके प्रति धन्यवाद ज्ञापन, अपना आभार व्यक्त करने के लिए पूजा करते हैं और प्रकृति से पूरे समाज के भले की प्रार्थना की जाती है, जैसे अच्छी बारिश, धूप, हवा, आदि की मांग ताकि फसल अच्छी हो.

इसके बावजूद यदि संघ परिवार सरना और सनातन को एक कहता है तो यह आदिवासियों को मूर्ख बनाने के लिए. यह बात सभी को समझना चाहिए.