करम आदिवासियों का प्रमुख त्योहार हैं. करम पूजा को झारखण्ड के सभी आदिवासी समाज के लोग हर्षोल्लास एवं धूमधाम से मनाते हैं. यह त्योहार भादों माह में मनाया जाता हैं. धान की रोनई के बाद व कटाई से पहले यह पर्व मनाया जाता हैं. सभी बहनों द्वारा भाईयों के सुख-सम्द्धि और दीर्घायु की कामना की जाती हैं और साथ ही यह कामना की जाती है कि जिन खेतों में धान का बीज लगाया गया है, वह अंकुरित हो, उसमें कीड़े न लगे, फसल अच्छी हो. हम जानते है कि आदिवासी प्रकृति पूजक हैं. जिस तरह सरहुल में सखुवा फूल की पूजा की जाती है, उसी तरह करम में करम पेड़ की डाली की पूजा किया जाता हैं. आईये जाने यह कि यह त्योहार और परंपरागत रूप में इसकी पूजा पद्धति क्या है. करम पूजा के सात, आठ, नौ दिन या तीज पूजा के बाद करम पर्व प्रारम्भ हो जाता है. ठीक उसी दिन उपवास कर सभी लड़कियां सुबह नदी जाकर बालू लाती हैं. उसके बाद जावा उठने की तैयारी करती हैं. उसमे सात प्रकार के अनाज बोती हैं, जैसे-जौ, मकई, धान, उरद, चना, कुलथी आदि. सभी को उस बालू में हल्दी मिला कर अच्छी तरह मिक्स कर उसे बाॅस की टोकरी में रख कर पेचकी का पता से ढ़क कर स्वच्छ स्थान पर रखती है. दूसरे दिन पूजा करने वाली सभी लड़कियां इस जावा का सेवा करती है. सुबह-शाम उस पर हल्दी पानी डालती हैं और करम तक वे सादा खाना खाती हैं. करम पूजा के लिए जो जावा उठाये जाते हैं, उसे रोज अखड़ा में ले जा कर सिर में ढो कर अखड़ा में तीन बार मांदर व नगड़ा के साथ झूमते हैं. यह पंरम्परा करम तक चलता रहता है.

एकादशी के आने तक ये जावा छोटे पौधे का रुप धारण कर लेते हंै. उसी दिन रात के सात-आठ बजे पूजा करते हैं. तब तक सभी लड़कियां एवं बच्चियां पूरा दिन का उपवास करती हैं. करम के दिन सभी गांव बस्ती के बड़े बुजूर्ग व लड़के अखड़ा को साफ-सफाई करते हैं और पूरा अखड़ा को सजाते हैं. जैसे- आम का पत्ता, बांस का पत्ता एवं लकड़ी, गुलाब के फूल आदि से सजाते हैं. और सभी तरफ लाईट लगा देते हैं. शाम ढलते कुछ लड़के व बड़े बुजूर्ग करम डाली लाने के लिए जाते हैं और करम डाली व कासी केे पौधे और धान का कुछ पौधा लाते हैं. लाते वक्त वे करम गीत गाते - गाते एवं झूमते-झूमते करम डाली को लाते हैं. पूरा उल्लास ओर उत्साह के साथ नदी, खेत, पहाड़ पार कर आते हैं. उल्लास इतना की गांव में करम के आने का शोर गूंज उठता है. सभी को जानकारी हो जाती है कि करम डाली आ गयी. उसके प्श्चात आधा रास्ता आ कर सभी करम करने वाली लड़कियां व बच्चियां जा कर करम डाली को अखड़ा के पास लाती हैं. व सभी कोई मिल कर अखड़ा व आंगन के बीच करम डाली को स्थापित करते हैं.

फिर सभी करम करने वाली लड़कियां व महिलाएं साड़ी पहन कर पीतल का थाली व लोटा में पूजा की सारी समाग्री ले जाती हैं और जावा को ढो कर अखड़ा व अंागन में प्रस्थान करती है. अर्थात जिस लड़की का पहला करम रहता है, वो करम तक आंख बन्द कर के उसे उसका भाई कंधा में बैठा कर अखड़ा व अंगान तक पहुंचा कर करम डाली के तीन चक्कर घुमा कर उसे नीचे उतार देता है. जावा को करम डाली के समीप रख देती हैं. उसके बाद थाली को अपने पास रख सभी कोई करम डाले के किनारे-किनारे बैठ जाती हैं और फिर गांव का पाहन पूजा करवाता है. वे आते हैं, उसके बाद पूजा शुरु हो जाती हैं. पाहन सभी को मिट्टी का दिया जलाने बोलते हैं. सभी दिया जला कर अच्छी फसल की कामना एवं भाईयो के सुख-सम़िद्ध की कामना करती हैं. इस तरह पूजा चलती हैं, उसके बाद पाहन द्वारा कर्मा और धर्मा की कहानी सुनायी जाती हैं. करम पूजा समाप्त होने के बाद करम पूजा करने वाली और वहां उपस्थित लोगों को गुड़ का पानी और चना वितरण किया जाता हैं. उसके बाद सभी मांदर, नगड़ा एवं करम गीत गाते हैं और सभी एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर झूमते हैं. इसी प्रकार नाचते, गाते, झूमते सुबह हो जाती है. एकांत सूर्य उगते ही सभी लड़कियां विसर्जन से पहले अखड़ा जा कर करम पत्ता लाती हैं एवं चना, गुड़, फूल, कुछ फल ले कर नदी के लिए प्रस्थान करती हैं. वहां जा कर दातुन व नहा कर पूर्व की ओर खड़ा हो कर पूजा करती हैं. घर आ कर प्रसाद बना कर सभी को बांटती हैं. उसके बाद ही भोजन करती हैं एवं शाम ढ़लते ही वे करम को विसर्जित करने की तैयारी करती हैं. सभी बड़े बुजूर्ग व औरतं,े बच्चियां, लड़कियां ढोल मांदर व गीत गाते-गाते, झूमते-झूमते करम को पकड़ कर सभी के घर-घर ले जाती हैं और दरवाजा पास खड़ा हो कर ढ़ोल मांदर व गीत गाती झूमती और वे घर के निकल कर करम पर बड़े प्रेम से पानी छींटती या तो अरवा चावल के आ्टा का पानी छिड़कती हैं व आरवा धागा बंाधती और हाथ जोड़ कर प्रणाम करती हैं. उसके बाद बचा हुवा पानी को घर के छप्पर में फंेक देती हैं. इसी तरह वे घर-घर घूमते-घूमते नाचते गाते नदी की ओर निकल पड़ती हैं. अंत में नदी पहुंचते वे करमा डाली को खुशी व उत्साह से पूजा कर के नदी व तालाब में विसर्जित कर देती हैं. और वहीं नदी, तालाब में नहा कर घर आती हैं. इसी तरह हमारे करम पर्व का समापन होता है.

आप सभी को करम की शुभकामनाएं.