‘घुरती मेला’ के साथ जगन्नाथ मेला रविवार को समाप्त हो गया. 2 साल बाद मेला का उत्साह और उमंग देखने को मिला. कोरोना काल की विभीषिका की वजह से मेला ठीक से लगा नहीं, दो साल बाद इस वर्ष 1 जुलाई से 10 जुलाई तक इस वर्ष मेला पूरी रौनक के साथ लगा और लोगों ने इसका आनंद उठाया. रांची में भगवान जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा जी की रथ यात्रा फिर से निकली. यह त्योहार हिंदुओं का पर्व हैं जो आषाढ़ शुक्ल द्वितीय में होता है, लेकिन खास बात यह है कि हर साल इस पर्व-त्योहार की प्रतीक्षा बड़े ही उत्साह के साथ सभी लोग करते हैं. हर साल की तरह में भी इस रथयात्रा में सपरिवार मेला घूमने गयी, और उस के दौरान मैंने जो भी अनुभव किया देखा उसको मैं आप सभी को बताना चाहती हूं.











यह मेला देशज संस्कृति का प्रतीक हैं. भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा जी की रथ यात्रा के साथ रथ मेला की शुरुआत हाती है. मेले में तरह-तरह के झूले लगाए गए थे, वहीं खाने-पीने और रोजमर्रा के समान की दुकानंे सजी थी. दुकानो में ग्रामीण जीवन की सभी तरह की चीजें मिल रही थी. मछली मारने की बंसी, कुमनी व जाल के अलावा लकड़ी व पत्थर के समान, और बच्चों के खिलौने, साड़ी, छाता, आदि उपलब्ध थे. इनके अलावा स्थानीय वाद्ययंत्र - नगडा, मांदर ढोल बांसुरी आदि की भी बिक्री हो रही थी.

मेले में कृषि से जुड़े सभी तरह के औजार उपलब्ध रहते हैं. अधिकांश लोग इस मेला का इंतजार इसीलिए करते हैं ताकि वे अपनी जरूरत के सामान खरीद सके. अभी खेती बारी समय आ रहा है, उसका सारा सामान जगरनाथ मेला में उपलब्ध था. यही सोच कर लोग जाते हैं और अपनी जरूरत की चीज खरीद कर लाते हैं. मेले में बड़े बुजुर्ग व महिला, पुरुष बच्चियां सभी आनंद लेते हैं. बच्चों के लिए तरह-तरह के झूले, जिसमें मैने देखा कि सभी उम्र के महिला व पुरुष उसका आनंद ले रहे थे. इस बार की रथ यात्रा में बहुत ही भीड़ थी. दो साल बाद लोगों के चेहरे में उमंग और खुशी देखने को मिला इस बार रात वाला नजारा भी बहुत खूबसूरत था. पूरा मेला क्षेत्र रंग बिरंगी रौशनी से जगमग कर रहा था. काफी अच्छा लगा मेला घूम कर.

रांची में धीरे- धीरे माॅल कल्चर का विस्तार हो रहा है. हर प्रमुख सड़क पर नित नये मॉल खुल रहे हैं, फिर भी साल में एक बार लगने वाला जगन्नाथपुर मेला का महत्व बना हुआ है. लोग हर साल मेला लगने की प्रतीक्षा करते हैं.