प्रबुद्ध इतिहासवेत्ता रोमिला थापर का कहना है कि आज नेताओं में बौद्धिकता का अभाव है. आजादी की लड़ाई में शामिल नेता बौद्धिक थे. वे अनवरत अध्ययन करते थे और देश के उज्वल भविष्य निर्माण के लिए कटिबद्ध थे. ये बातें उन्होंने मुख्य वक्ता के रूप में मौलाना अबुल कलाम आजाद की आत्मकथा के विमोचन के समय कही. यह आयोजन 18 फरवरी को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हुआ था. मौलाना आजाद की आत्मकथा को लिखने वाले इरफान हबीब हैं. किताब का नाम है - ‘मौलाना आजाद ए - लाइफ’. इस आयोजन में एनएन वोरा, नीरा चंडोक तथा नाटककार सैयद आलम भी शामिल थे.

रोमिला थापर ने कहा कि आजाद भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री थे. वे मानते थे कि चैदह वर्ष तक के बच्चों की शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए. वे कहते थे कि बुनियादी शिक्षा प्रत्येक नागरिक का जन्मसिद्ध अधिकार है. शिक्षा के अभाव में देश के प्रति अपने कर्तव्यों को वे समझ नहीं सकेंगे. रोमिला जी का यह भी कहना था कि आज का सबसे बड़ा संकट शिक्षा में ज्ञान का अभाव है. शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य होता है मस्तिष्क के दरवाजे खोलना, जिससे हम सोच सके, समझ सकें. मौलाना आज जीवित होते तो हमसे पूछते कि क्या आज की हमारी शिक्षा व्यवस्था मस्तिष्क को खोल रही है या वह आधुनिक शिक्षा के कारण बहुत आसानी से अपने आप बंद हो जाता है.

बोहरा ने आजाद की शिक्षा तथा कलाओं के प्रति प्रबल आकर्षण के बारे में बताया. वे स्वयं शिक्षक नियुक्त करके अंग्रेजी, फ्रेंच और सितार सीखते थे. उन्होंनों ने ही सरकार के सामने आईआईटी तथा यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन की स्थापना की बात रखी थी. उन्होंने सरकार से आग्रह किया था कि भारत के पहले बजट का 10 फीसदी शिक्षा मद में खर्च किया जाय, लेकिन बजट में हिस्सा 1 फीसदी का मिला. जिस देश की 85 फीसदी जनता अशिक्षित थी, वहाँ के लिए यह पैसा बहुत ही कम था. लेकिन 1958 में उनकी मृत्यु के समय तक यह राशि बढकर 30 करोड की हो गई.

इस तरह वे आजाद भारत को बनाने में लगे रहे. वे उर्दू, अरबी तथा परशियन भाषाओं के विद्वान थे और अपने समय में विभिन्न विषयों पर बहस चलाते रहते थे. बोहरा ने मौलाना के धर्मनिरपेक्षता पर भी प्रकाश डाला. उनके अनुसार हिन्दु मुस्लिम की एकता के बिना भारत की बुनियाद कमजोर हो जायगी. जब तक भारत के लोग धर्म से ऊपर उठकर एक होकर अंग्रेजों से नहीं लड़ेगें भारत को आजादी नहीं मिलेगी.

चंडोक ने आजाद के उस समय के बारे में बताया जब वे एक पत्रिका के संपादक थे. उसके कारण उन्हें जेल जाना पड़ा. लिखना पीछे छूट गया. जेल से छूटने के बाद वे आजादी की लड़ाई में शामिल हो गये. खिलाफत अन्दोलन में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई थी. कार्यक्रम का अन्त आलम के द्वारा 2020 में आजाद पर लिखी गई एक नाटक के मंचन से हुआ जिसमे दूसरे नेताओं से उनके मतभेद पर प्रकाश डाला गया. साथ ही इस नाटक में चाय के प्रति उनकी रुचि का भी पता चलता है.

इस आयोजन में विभिन्न वक्ताओं के द्वारा आजाद के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है, इसके माध्यम से हम अजकल के नेताओ के चरित्र का विश्लेषण कर सकते हैं. सबसे पहले रोमिला थापर का कहना कि आधुनिक नेताओं में बौद्धिकता का अभाव है और वैसा राजनैतिक परिदृश्य आज देखने को नहीं मिलता है और उनका यह कथन आधुनिक नेताओं पर सटीक बैठता है.

राजनेता समय-समय पर अपने भाषणों में गलत चीजों को बोल जाते हैं. ऐतिहासिक तथ्य भी गलत होते हैं. यह उनकी अज्ञानता को ही दर्शाता है. सरकार के द्वारा दोहरी शिक्षण प्रणाली को लागू करना, शिक्षा नीति में बदलाव, इतिहास के पाठों में बदलाव आदि उनकी बौद्धिकता की कमी को ही बतलाते हैं. धर्म के नाम पर जो अलगाव पैदा किया जा रहा है वह देश के हित में न होकर उसको कमजोर कर रहा है. यदि आजाद की जीवनी को पढ़ कर कुछ सीख लिया जाय तो शायद देश की भलाई ही होगी.