बच्चा चोरी के आरोप में लगातार होने वाली हिंसक घटनाएं झारखंड में चल रहे तमाम सत्ता विरोधी आंदोलनों को एक आंधी की तरह उड़ा ले जायेंगी, यदि समय रहते आंदोलनकारी जमातें इन घटनाओं के प्रति सचेत न हों और इनका पुरअसर तरीके से विरोध न करें. पिछले कुछ महीनों में सीएनटी और एसपीटी एक्ट में संशोधन के विरोध में चले आंदोलनों की वजह से सत्ता विरोधी जमातों में जो एकजुटता कायम हुई है, वह सब बेमतलब हो कर रह जायेगा, यदि इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति को आंदोलनकारी संगठन आगे बढ कर रोकने की कोशिश न करें. वैसे, समझ यह है कि आने वाले चुनावों को देखते हुए नियोजित ढंग से इस तरह की घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है. जमशेदपुर के एक सामाजिक कार्यकर्ता व विस्थापन विरोधी मार्चे के नेता कुमार चंद्र मार्डी का कहना है कि आने वाले चुनावों को देखते हुए संघ से जुड़े लोग इस तरह की घटनाओं को जन्म दे रहे हैं.
झारखंड मुक्ति वाहिनी के नेता मदन मोहन का कहना है कि घटनायें लगातार हो रही हैं और प्रशासन पुलिस मूक दर्शक बना हुआ है. यह पूरी तरह रघुवर दास सरकार की प्रशासनिक विफलता का परिणाम हैं.
प्रसेंजित माहातो कछुआर ने सभी झारखंडी से अनुरोध किया है कि अफवाहों पर ना जायें और कानून हाथ में ना लें. सदियों से चली आ रही झारखंडी एकता (मांझी-महतो-मुस्लिम-अन्य) कायम रखें. समझदारी से काम लें. झारखंड के गांवों में आजतक कभी इस तरह की कोई घटना नहीं घटी. ऐसी घटनाओं से झारखंड विरोधी ताकतों को मजबूती मिलती है. झारखंडियों के सामने अभी सीएनटी/एसपीटी, स्थानीयता, विस्थापन जैसी कई बड़ी बड़ी समस्याएं खड़ी हैं. एकजुटता बनायें रखे, तभी झारखंड को बचा सकते हैं, नहीं तो सब कुछ लुटकर खत्म हो जायेगा.
गौरतलब है तीन-चार बातेंः
एक, पिछले कुछ दिनों- महीनों से मवेशी चोरी-तस्करी व बच्चा चोरी के आरोप में सड़कों पर पिटाई और छिटपुट हत्या की घटनायें राज्य के विभिन्न जिलों में हुई हैं, लेकिन पिछले 20 दिनों में हुई 17-18 घटनाएं जमशेदपुर और उससे सटे इलाकों में हुई हैं जो राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास का अपना इलाका है,
दो, घटनाओं में तेजी सीएनटी-एसपीटी एक्ट में हुए संशोधन के विरोध में चले आंदोलनों की तीव्रता और लिट्टीपाड़ा चुनाव में भाजपा की पराजय के बाद आई है.
तीन, राज्य सरकार और उसका प्रशासन तंत्र-पुलिस इन घटनाओं को रोकने में बिल्कुल असफल रहा है.
चार, इस तरह की घटनाओं से जातीय ध्रुवीकरण तीव्र हुआ है.
समझने वाली बात यह भी है कि इस तरह की घटनाएं आदिवासीबहुल इलाकों में हो रही है, जो इस बात का संकेत है कि निहित स्वार्थी तत्व आदिवासियों को बरगलाने में धीरे-धीरे कामयाब हो रहे है. संघ की यह पुरानी मंशा रही है कि आदिवासियों का हिंदूकरण हो और उनका इस्तेमाल सांप्रदायिक हिंसा में वे कर सकें. जमशेदपुर शुरु से दंगा प्रभावित इलाका रहा है. हाल फिलहाल घटी इन घटनाओं को पूरी तरह सांप्रदायिक तो नहीं कहा जा सकता, क्योंकि भीड़ के टारगेट सिर्फ मुसलमान नहीं रहे हैं, हिंदू और एकाध जगह ईसाई भी रहे हैं, लेकिन असर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के रूप में ही हो रहा है. मुसलिम समुदाय इन हमलों को खुद पर हुआ हमला मान रहे हैं और मुसलिम इलाकों में इन घटनाओं के विरोध में बंद आदि आयोजित किये जाने लगे हैं.
विडंबना यह कि इन घटनाओं के प्रति एक अजीब सी चुप्पी राजनीतिक दलों में देखी जा रही है. कोई भी पार्टी सक्रिय रूप में इन घटनाओं का विरोध करती नजर नहीं आ रही है. यहां तक कि खुल कर वक्तव्य भी देने से परहेज कर रहे हैं. शायद सभी राजनीतिक दल इन हिंसक वारदातों की आग पर चुनावी रोटी सेंकने के फिराक में लगी हुई हैं. शहर की स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है और कई हिस्सों में कर्फ्यू लगी हुई है.