गत माह महज बीस दिनों के अंदर आदिवासीबहुल झारखंड में भीड़ की हिंसा ने जो भीषण कारनामें किये हैं, उसने भाजपा शासित इस राज्य को अचानक सुर्खियों में ला दिया है. कुल दस लोग भीड़ की हिंसा के शिकार हुए और शर्मनाक यह कि इसमें से अधिकतर घटनाएं राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास के शहर के आस पास हुए हैं. एक गजब का इत्तफाक यह रहा कि मई महीनें में ही पूरे इलाके में भाजपा और उससे जुड़े जन संगठनों की सभायें, सम्मेलन आदि लगातार होते रहे हैं. हाता के पास तेतलागांव के सामुदायिक भवन में लक्ष्मण गिलुआ और पार्टी के कई पदाधिकारियों की उपस्थिति में एक सभा मई महीने में हुई. मई महीने में ही बहड़ागोड़ा और चाकुलिया के बीच एक और जनसभा जिसमें रघुवर दास खुद उपस्थित थे. उनके विरुद्ध वहां नारे लगे, उन्हें काले झंडे दिखाये गये. उसी दिन भाजपा आदिवासी मोर्चा की तरफ से राजनगर में मिटिंग हुई. भाजपा के कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया गया कि वे गांव जाये, बूथ स्तर तक. भाजपा की उपलब्धियों का प्रचार करें. तो क्या यह महज इत्तफाक है कि भाजपा की सभायें, बच्चा चोरी की अफवाहें और हिंसक घटनायें एक साथ घटित होती हैं?
च्लिये, मान लेते हैं कि यह महज इत्तफाक है. लेकिन प्रशासन-पुलिस की घोर विफलता तो है ही. विडंबना यह कि प्रशासनिक विफलता मानने के बजाय रघुवर सरकार इस घटना को भी एक अवसर की तरह इस्तेमाल कर रही है- वोटों के राजनीतिक ध्रुवीकरण के लिए. और शांतिपूर्ण तरीके से चलने वाले जमीन बचाओ आंदोलन को बदनाम करने के लिए. इस काम में उनकी मदद कुछ चुने हुए अखबार कर रहे हैं. ये घटनाएं कुछ कट्टर जमातों और आपराधिक प्रवृत्तियों की सुनियोजित साजिश का नतीजा हैं, लेकिन अब प्रचारित यह किया जा रहा है कि कुछ ईसाई मिशनरियों से जुड़े सामाजिक संगठन, जो सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन के खिलाफ आंदोलन चला रहे हैं, उनके ही उकसावे पर भीड़ ने कुछ अल्पसंख्यकों सहित कुल दस लोगों की हत्या की.
अब भीड़ किसी के भी उकसावे पर यदि इस तरह का जघन्य काम करती है तो वह शर्मनाक है और मानवता के खिलाफ अपराध है, लेकिन उससे ज्यादा शर्मनाक है, इस तरह की घटनाओं को रोक पाने में विफल सत्ता द्वारा इस घटना का सांप्रदायिक वैमनष्य फैलाने के लिए उपयोग करना. झारखंड में भाजपा शून्य से आज की स्थिति तक सांप्रदायिक तनाव फैला कर ही पहुंची है. इसके लिए एक पुराना हथकंडा है ईसाई मिशनरियों के खिलाफ प्रचार. मुसलमान तो उनके टारगेट हैं ही.
तो, इस बार कुछ अखबारों के माध्यम से प्रचारित यह किया जा रहा है कि ईसाई मिशनरियों से जुड़े कुछ सामाजिक संगठन ग्रामीण इलाकों में सीएनटी-एसपीटी एक्ट का विरोध करते हुए आदिवासियों को इस बात के लिए उकसा रहे हैं कि यदि बाहर का कोई आदमी जमीन देखने इलाके में घुसे तो उसका ‘सेंदरा’ कर दो. और इसी प्रचार की वजह से कुछ लोग हिंसा के शिकार हो गये. यह बात खुफिया सूत्रों के हवाले से एक जून के दैनिक जागरण में लीड खबर के रूप में छपी.
जबकि इस खबर के छपने के एक दिन पूर्व पुलिस ने जादूगोड़ा के सौरभ कुमार को इस आरोप में गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस सूत्रों के अनुसार उसने अपने तीन सहयोगियों की मदद से सोसल मीडिया के जरिये यह दुष्प्रचार किया कि आदिवासी इलाकों में बच्चा चोर सक्रिय हैं. सौरभ कुमार एक छोटा मोटा व्यापारी है और उसने 10 मई को फेसबुक पर इस आशय की खबर पोस्ट की कि क्षेत्र में बच्चा चोर न सिर्फ सक्रिय है, बल्कि वे देखे गये हैं. इस काम में उसकी मदद तीन कथित पत्रकारों ने की जिनके नाम हैं- सुशील अग्रवाल, शंकर गुप्ता और विनोद केशरी. इन लोगों ने दर्जनों ग्रुपों द्वारा इस खबर को फैलाने में मदद की. यह खबर 31 मई के ही दैनिक भाष्कर में छपी. इसके बावजूद ईसाई मिशनरियों को टारगेट करने वाली खबर एक मई को दैनिक जागरण में छपती है. यही नहीं, उसी के साथ मुख्यमंत्री के बयान के साथ यह खबर भी कि उनकी सरकार को बदनाम करने के लिए कुछ विकास विरोधी लोग इस तरह की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं.
मतलब साफ है. एक तरफ तो सत्ताधारी दल से जुड़े संघी और बजरंगदल जैसे संगठन बच्चा चोरी की अफवाह फैला कर भीड़ को हिंसा करने के लिए उकसाते हैं और हिंसा को ईसाई मिशनरियों द्वारा प्रेरित बताते हैं. यानि एक तीर से कई निशान- सांप्रदायिक ध्रुवीकरण द्वारा वोटों की राजनीति करना और साथ ही लोकतांत्रिक तरीके से जमीन लूट के खिलाफ चल रहे आंदोलन को बदनाम करना.
वैसे, जमीन बचाओ आंदोलन से जुड़े संगठन इस खतरे को भांप रहे हैं. उनकी तरफ से लगातार बैठकें, छोटी-छोटी सभाएं आदि हो रही हैं. 10 जून को जमशेदपुर के निर्मल गेस्ट हाउस में एक सम्मेलन आयोजित किया गया है. इस सम्मेलन का आयेजन हूल क्रांति दल, विस्थापित विरोधी एकता मंच, भाकपा माले, सीपीआईएमएल, जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी, अखिल भारतीय झारखंड पार्टी, नव जनवादी लोकमंच आदि संगठनों ने मिल कर किया है. क्योंकि सरकार औश्र मीडिया के एक हिस्से की साजिश को नाकाम करना जरूरी है.