भेड़ों के बीच भेड़िया आया
मुंह में घास डाली
आंखों में मासूमियत लिए उसने
भेड़ों के हक की बात बोली
उनकी ही भाषा में
और
आ गई भेड़ें झांसा में,
भेड़ों की मासूम आंखों ने
नहीं देखा उसकी दो आंखें
कुछ और कहती थी
छुप-छुपकर जो
दिन-रात जलती रहती थी,
भेड़िया को कांधे पर उठाए
उधर रंगे सियारों के झुंड का
प्रचार-प्रसार था बड़े जोर में
रह-रहकर बीच में उठती
भेड़िया की गुर्राहट
छुप जाती थी
हुंआ-हुंआ के शोर में,
ताजी भेड़ें देख
मुंह के कोने से
रूक-रूक कर
भेड़िया की टपकती थी लार
छिपाने को उसका सच
झट चाट लेते थे सारे सियार,
आखिर भेड़ों ने चुन लिया
भेड़िया को अपना राजा
और दे दिया सिंहासन
भेड़िया ने कहा अब दूर होगा
भेड़ों पर भेड़ियों का शोषण
चिल्लाकर किया सब ने समर्थन
तब बनकर आया
भेड़ों के हक में एक नया नियम
सुबह आधा भेड़ नाश्ते में,
दोपहर पूरा भेड़ लंच में
और रात अपने हिसाब से
हर भेड़िया करेगा
भेड़ों का हल्का भोजन ।।