माँ और पहाड़
मैं देख रहा हूँ:
संतान हित हेतु हरदम
इरादों में अटल
माँ को एक पहाड़!
मैं देख रहा हूँ:
अपने सीने से
निकालते नदी-नाले
पहाड़ को
बच्चे को दूध पिलाती एक माँ!
मैं देख रहा हूँ:
पहाड़ के गात पर
हो मौजूद उसका परिवेश
या फिर
परिवेश की हत्या की
गवाही देते
टाँगी चोख करने के निशान
हथौड़ों के घाव से निकले
सूखे मवाद
हर स्थिति में
पहाड़ का मौन
जैसे कुछ हुआ हीं न हो
ठीक माँ की तरह!
मैं देख रहा हूँ:
माँ का हक़ पाती
या फिर
अपमान ,अलगाव की
अंतहीन वेदना सहती
हर स्थिति में
संतान के भलाई की कामना करती
माँ को
ठीक पहाड़ की तरह!
हाँ!मैं देख रहा हूँ:
माँ में एक पहाड़
पहाड़ में एक माँ!