मैंने तुम्हें बचपन में देखा था
तुम सुकान पहाड़ की तरह उंची हो गई
मैंने तुम्हें छुटपन में देखा था
तुम बुंडू बांध की तरह गहरी हो गई
कान के पीछे मुट्ठी भर जूड़ा
केले की खांदी सा बड़ा हो गया
घुटने पर का गज्जी कपड़ा
लाल पाड़िया में बदल गया
हटिया की धूल में खेलना बंद हो गया
धूल धूसरित तुम खाद लिये जा रही हो
गोदी में खेलना समाप्त हो गया
तुम छिप रही हो, दुबक रही हो
लोग बोलते थे, वह भूतवाली जगह है
तुम उसी भूतवाली जगह पत्ती तोड़ती हो
लोग बोलते थे वह चंडी की जगह है
तुम चंडी की जगह तिल्ली चीरती हो..
— सेलेद से साभार