एरिक लॉरेंस कुल्लू: जहा तक संकृति और सभ्यता के बदलने की बात है, ये निरंतर बदलती रहती है समय के साथ, पर कुछ लोग इसका हवाला देके आदिवासियों में अलगवाबद ही फैलाते है। वो किसी भी आदिवासी को उसकी आस्था या धर्म से नापते है, तथा उसकी निजी आस्था और धर्म के आधार पर उसके साथ व्यवहार करते है। अगर किसी भी धर्म को अपनाएंगे चाहे , हिन्दू हो या christian उसके कुछ apne set of rules regulations होते ही है, जैसे शादी व्याह, जन्म और मरण वगेरा वेगरा, और उनको उसको मानने वाला अपनाता ही है। पर उस से उसकी जन्म, जात, या सभ्यता, संस्कृति बदल तो नही जाती है। court ने भी अपने फैसले में, माना है कि क्रिस्चियन आदिवासी और सरना आदिवासियों के custom और traditions में कोई फर्क नही है। court के फैसले का link है, https://indiankanoon.org/doc/204475/

फिर कुछ लोग सभ्यता, संस्कृति के नाम पर आदिवासी लोगो मे भेदभाव क्यू करते है? बहुत ही सरल सी बात है, जैसे RSS या BHP जैसे कट्टर सोचवाले कहते है कि सिर्फ हिन्दू धर्म को मानने वाला ही हिंदुस्तानी है, ठीक वैसे ही इनलोगो की सोच होती है, जो सरना धर्म को मानते है सिर्फ वही आदिवासी है। तो ऐसा तो है नही ना, बदलाव के इस जमाने मे आजकल कौन आदिवासी होने का सारा का सारा नियम कानून, संस्कृति और सभ्यता को निभापता हे, पर यही कुछ कट्टर लोग, इन्ही संकृति, और tradition के हवाला देके दुसरो को नीचा दिखाने की कोशिश करते रहते है, बोलते है तुम आदिवासी नही हो, या तुम सारे customs और traditions को follow नही करते हो और ऊपर से इसका सर्टिफिकेट भी देते है? पर ये लोग खुद कितना follow करते है, वो अपने गिरेवान में कभी झक के नही देख पाते है। सच बात तो ये है कि, बदलाव के जमाने मे अगर आप जारवा आदिवासी की तरह जंगल मे, बाहरी समाज से अलग थलग, बिना कपड़ों के रहोगे, तभी आप खुद को खांटी आदिवासी कह सकते हो, बाकी तो जैसे जैसे आप शहर में बसोगे, पढोगे, लिखोगे, नौकरी, चकिरी, करोगे, आपके रेहेन, शहन, खान पान, पहनवा, सब कुछ तो बदलेगा ही बदलेगा। पर इसी बदलवा को आधार बनाके, आप क्रिस्चियन आदिवासियों की तरफ कबतक उंगली उठाते रहोगे? सच बात तो आप भी जानते है, की झारखंड में सबसे ज्यादा आदिवासी , हिन्दू धर्म ग्रहण किये, है, पर जैसा कि अपने आपके post में लिखा है, की कट्टर सरना समुदाय वाले, हिन्दू धर्म वालो से ज्यादा आक्रांत होने की वजह ईसाई समुदाय से क्यों आक्रांत रहते है। इसकी वजह बहुत है, पहले तो लोग ईसाई धर्म को बाहरी धर्म या विदेशी धर्म या अंग्रेज़ी धर्म मानते है, तो कोई भी आदिवासी का क्रिस्चियन में convert होना उन कट्टर लोगो को ज्यादा अखड़ता है, as compared to, अगर कोई आदिवासी हिन्दू बनता है। गनी मांझी जैसे कुछ लोग ये भी बोलते है कि आदिवासियों के तौर, तरीके, संस्कृति, नीति नियम, हिन्दू धर्म वालो से (सनातनी) धर्म वालो से ज्यादा नजदीक है, अतः कोई आदिवासी सरना से धीरे धीरे अगर सनातन (हिन्दू) बन जाये तो , ये स्वाभाविक है, natural है।

…तो आपके post पे वापस आते है, की क्या कारण है, कट्टर सरना वाले, ज्यादातर christian आदिवासियों के ऊपर आक्रान्त रहते है, क्योंकि अगर सिर्फ धर्म परिवर्तन ही वजह रहता तो, आप भी जानते है कि, झारखंड में आदिवासियों ने सबसे ज्यादा हिन्दू धर्म ही अपनाया है। फिर क्या वजह है कि, ये धर्म बदलने की ठीकरा, ये आदिवासी समाज के संकृति, सभ्यता बदलने की ठीकरा क्रिस्चियन आदिवासियों पे ही कुछ लोग गिराते है, जबकि, क्रिस्चियन आदिवासी की संख्या बहुत कम है, बनाम हिन्दू बने आदिवासियों के मुकाबले। वजह सिर्फ इतना है, की क्रिस्चियन आदिवासियों की head count बहुत कम है, आपके post के मुताबिक अगर देखे तो कुछ 4%, और हिन्दू आदिवासियों की संख्या 68%, ऐसे में क्रिस्चियन आदिवासी लोग Easy Target बन जाते है। अपने सही कहा है , बिडम्बना यही है कि, कमजोर देख के कोई छोड़ता नही, और ताकतवर से कोई लड़ता नही। आज झारखंड के दूर गांव गांव में RSS और BHP के लोग, अपना काम कर रहे है और आदिवासियों को हिन्दू बनने में लगे है, यह किसी से छुपा नही है। पद्मश्री अशोक भगत जी जैसे लोग हो जो गुमला में,रहके आदिवासियों को अपने surname के आगे देवी देवता लिखने का पाठ पढ़ा रहे है, क्या ये RSS के लोग आदिवासी संस्कृति और सभ्यता के बचाव का काम कर रहे है? फिर इनके खिलाफ अपने कट्टर सरना आदिवासियों का बिरोध कभी देखा है?? ये कट्टर सरना आदिवासी वो लोग है , जो social मीडिया के संघी लोग Ganga Mahto जैसे लोगो को हमदर्द मानते है, और RSS और BJP लोगो के इशारे पे बार बार 4% क्रिस्चियन आदिवासियों के ऊपर, संस्कृति और culture में बदलाव का ठीकरा बड़ी आसानी से फोड़ देते है। ये वो लोग है जो ये नही देख पाते है कि पीछे से 68% हिन्दू बन गए है। ये में किसी पे उंगली नही उठा रहा हु, क्योंकि धर्म बदलने की आज़ादी है तो अपनी अपनी इच्छा है कुछ भी धर्म ग्रहण करे, पर सारे ठीकरा सिर्फ 4 क्रिस्चियन आदिवासी ही क्यू? ये वो कट्टर लोग है, जो लाल पाद साड़ी पे बिवाद खड़ा करने, चर्च में RSS के लोगो के साथ पोहोंचते है, पर खूब कभी RSS की चाल समझ नही पाते है, उन्हें 68% हिन्दू बनने को आँख बंद करके नज़र अंदाज़ कर देते है और 4% के पीछे पड़े रहते है, इसमे फायदा किसको हो रहा है, वो आपके आकड़ो से पता चल ही रहा है, 68% VS 4%? इस article को पढ़ेंगे सायद तो कुछ लोगो के आंख और खुलेंगे।

https://scroll.in/…/in-jharkhands-singhbhum-religion...

चेरुबीम तिर्की: Kuchch log 4 percent Christians ko koste hue lambi lambi likh rahe hain. Aiasa likh rahe hain ki Missnarion ne adivasion ko barbadi ki raste le gaye. Chhattisgarh ke Baster aur Dantewada adi me Christian nahi hain unka halat keya hai usper chinta nahi hai. Bahut se adivasi christian nahi hain unka halat keya hai - apni bhasha Sanskriti kitna jante hain? 96 percent adivasi christian nahi hain. Fir bhi adivasi Samaj thik nahi chal raha hai aur sab Kuchch khote ja raha hai uske liye Christian missionary ko dosh dena, christiano ke parti durbhawna ko dikhata hai.

महादेव टोप्पो: बहस जारी रहे। धन्यवाद ।

वाल्टर कंडुलना: ऐसी ही बहस की मैं कल्पना करता हूँ…

अभय केरकेट्टा: BHARAT me shresthta vadi vichar ko logon ko ke dimag me ropa gaya hai , har jati ( bharat me kai jatiyan) apne aapko tulna karta hai colour ke adhar per , bhasha ke , area ke khan-pan ke desh bhusa ke aur isi tarah se kai adharon per aur ye sab chaal ek Sochi samjhi ranniti ke tahat ho raha hai iska , isko so called upper cast ke dwara ropa gaya hai taki wo ginti me kam hokar bhi apni community ke bhavisya ke aaccha kar paye aur dusre log apne aapko dusre se shresth sabit karne me vayast rahe yahi sarna aur isai aadivasion ke sath bhi hai gaur karne wale baat hai phoot daalo shashan karo.

वाल्टर कंडुलना: मेरा मानना है कि कोई भी विचारधारा , और यहाँ सिर्फ अपने धर्म की बात नहीं है ,बल्कि कोई भी वाद (school of thought, या ism), जैसे नास्तिकता, राष्ट्रीयता, आदि यदि वह कट्टरता (fundamentalism) का पोषक है तो वह विचारधारा गलत है.

कट्टरता = मैं ही सही हूँ, आप गलत हो.

राजराजेश तिग्गा: हमारे आदिवासियों को हिन्दू धर्म अपनाने से रोकना है तो हम आदिवासियों को पूरी तरह से शक्रिय होना चाहिए

विनोद कुमार: मनोविज्ञान का तीसरा एंगल, यानी, हिंदू समाज

इस तस्वीर को देख कर सभी मुग्ध होंगे. मां की पीठ पर बंधा हुआ एक नन्हा शिशु, मां के चेहरे की विश्रांति और एक सलज्ज मुस्कान. घर-बाहर के छोटे बड़े कामों को निबटाते दो मुक्त हाथ. मुझे बिंब सूझता है तो धरती की जो हम सब को धारण किये चांद तारों के बीच चक्कर लगाती रहती है. और यह दृश्य केवल आदिवासी गांव टोला और हाट बाजार में नहीं दिख जाता, बल्कि वर्षों पहले रांची स्थित संवाद के दफ्तर में जब मैं देशज स्वर पत्रिका निकालने के लिए बैठा करता था तो कई बार जेरोम की पत्नी रोज को अपनी पीठ पर इसी तरह अपनी नन्ही सी बच्ची को बांधे देखा था. मैंने उनकी एक तस्वीर भी ली थी.

इतने विस्तार से इस बात कि चर्चा इसलिए, क्योंकि आदिवासी समाज में सहज रूप से दिखने वाला यह दृश्य गैर आदिवासी समाज में सहज नहीं दिखता. इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि वृहद हिंदू समाज में स्त्रियां अपने बच्चे को ममता से नहीं पालती. या उनकी गोद में बच्चा नहीं होता, लेकिन नौ महीने बच्चे को उदर में रखना और नौ महीने अपनी पीठ पर बच्चे को बांध कर रखने का काम आदिवासी औरत ही करती है और वह भी एकदम सहज भाव से. और यह अकेली तस्वीर एक पूरी संस्कृति को रेखांकित करती है.

मैंने यह तस्वीर अपनी बेटी गुड़िया को भेजी और उससे कहा कि वह जरूरत पड़े तो अनाहत को इसी तरह पीठ पर बांध कर कालेज चली जाया करे. वह खुश हुई. लेकिन उदेश का जवाब था - ‘वह दुनिया ही अलग है..’

दरअसल, पूरे भारतीय समाज के लिए, वृहद गैर आदिवासी समाज के लिए, आदिवासी दुनिया एक भिन्न दुनिया है. उस पर मुग्ध हुआ जा सकता है, उनके आनंमय जीवन पर से रश्क किया जा सकता है, उनकी गरीबी और विपन्नता पर तरस भी खाया जा सकता है, लेकिन उस तरह जिया नहीं जा सकता.

क्योंकि वह एकदम भिन्न समाज है. उनका जीवन दर्शन, प्रकृति से उनका रिश्ता, वहां के स्त्री-पुरुष संबंध, वहां की सामूहिकता, वहां के नृत्य-गीत, वहां की कविता सब कुछ गैर आदिवासी समाज से, वृहद हिंदू समाज से भिन्न है. और इसे मैं लगातार लिखता रहा हूं.

मौजू सवाल यह है कि संपूर्ण हिंदू वांगमय में जिन्हें दस्यू, दास, असुर, राक्षस, वा‘नर’ जैसे शब्दों से विभूषित किया गया, जिनके साथ सतत युद्ध की कहानियां ही पौराणिक गाथाओं का मूलाधार है, उन्हीं आदिवासियों पर आरएसएस और संपूर्ण संघ परिवार आज इतना मेहरबान क्यों है. जिन्हें हिंदू वर्ण व्यवस्था के निम्न पायदान पर भी उन्होंने जगह नहीं दी, उन्हें आज हिंदू बताता क्यों घूम रहा है?

क्योंकि वोट की राजनीति में मध्य भारत में सघन रूप से बसी इस आबादी की निर्णायक भूमिका हो सकती है. पहले कांग्रेस उनका उपयोग करती थी और अब भाजपा करती है. पहली बार वाजपेयी की स्थिर सरकार बनाने में झारखंड के 14 में से 13 सीटों की अहम भूमिका रही.

क्योंकि आधुनिक उद्योग जगत के लिए आदिवासीबहुल इलाको की खनिज संपदा महत्व रखता है. यहां के जल, जंगल, जमीन पर काबिज होने के लिए वे बेकरार हैं. और यह आदिवासियों से लड़ कर हासिल नहीं किया जा सकता. अंग्रेज यह कोशिश कर हार चुके थे. बाद में उन्होंने मध्यम मार्ग बनाया. विलकिंसन रूल, विशेष भूमि कानून, रिजर्व फारेस्ट के भीतर भी उनके लिए गुंजाईश. देशी हुक्मरानों, कारपोरेट की चाकर सरकारों को भी हर जगह भारी प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है. सिंगूर, नंदीग्राम, तपकारा, ईचा, नेतरहाट, मंडल बांध, कलिंगनगर, पोस्को, नियमगिरि, यानी हर जगह आदिवासी समाज उनके दमन का सामना करते हुए उनके मुकाबले खड़ा है.

तो, लड़ने के बजाय उन्हें बरगलाना ज्यादा आसान ‘सरना-सनातन एक है का नारा देकर’, उपभोक्तावाद की घुट्टी पिला कर. सत्ता में थोड़ी सी हिस्सेदारी देकर. यह भाजपा और संघ परिवार बखूबी कर रहा है.

और इस काम में मददगार बन रही हैं ईसाई मिशनरियां, जो उनमें हीनता की नये किस्म की ग्रंथि पैदा कर रही हैं. तुम्हारा धर्म दोयम दर्जे का. तुम्हारा रहन-सहन हीन. तुम हड़िया पी कर टुन्न रहने वाले. तुम अपना जीवन सुधारना ही नहीं चाहते. तुम निकम्मे और निट्ठल्ले हो. कई मित्रों के फेसबुक पोस्टों पर ही वृहद आदिवासी समाज के लिए यह घृणा बीच-बीच में झलक जाती है. आदिवासीयत अच्छी, लेकिन आदिवासी जीवन शैली खराब. यह विरोधाभासी नहीं लगता?

गौर से देखिये, आदिवासी समाज में हिंदूकरण की प्रक्रिया उन इलाकों में ज्यादा सफल रही हैं, जहां ईसाई मिशनरियां प्रभावी हैं. यह आरएसएस की साजिश तो है ही, ईसाई मिशनरियों के खिलाफ एक प्रतिक्रिया भी है. कितने नंगे रूप में यह भेदभाव दृष्टिगत होता है. चर्च रोड स्थित शिक्षा केंद्रों में गैर ईसाई आदिवासी छात्रों से भेदभाव किया जाता है. यहां का एक कालेज उर्सलाईन है. वहां बस्ती की कई लड़किया पढ़ती हैं. बताती है कि ईसाई आदिवासी लड़कियों और उनके फीस में अंतर है. उनके हास्टलों में उन्हें जगह नहीं मिलती.

जवाब में आरएसएस उन्हें बताती है कि देखो, तुम्हारी ही जमीन पर चर्च ने अपना साम्राज्य खड़ा किया है. क्यों उनकी तरफ जाते हो, तुम तो सनातन हिंदू धर्म के ही हिस्सा हो. और आदिवासी समाज उनकी इस साजिश का तेजी से शिकार हो रहा है.

हम जल,जंगल,जमीन को बचाने के संघर्ष के साथ आदिवासी समाज को सांस्कृतिक रूप से खोखला बनाने वाले इस संकटों के खिलाफ मुश्तैदी और पूरी संवेदनशीलता के साथ खड़े नहीं होंगे तो यह प्रक्रिया और तेज होगी.

चंद्र भगत: Very nice article sir

विद्याभूषण: आपके सबसे असरदार पोस्टों में से एक। सहमति के साथ आभार।

महादेव टोप्पो: थोड़ा उदार , विवेकपूर्ण, समझदार दिखता पोस्ट। धन्यवाद।

प्रमोद लकड़ा: Very very nice article. Sir. JOHAR.

कांता सोरेंग: Fees difference ka to pata nahi lekin missionaries k bare kahi gai supremacy wali baat ekdum sach hai….hostels me gair Isai adiwasi ki Sankhya na k Barabar hai

निरुपमा लियांगी: Christians should take care of this issue. There should not be any drawbacks.

अंकुमार एक्काए सजे: lovely. hamare ghar me bhi ek bhai ke santhan school nahi gaye aur nahi pad likh paye lekin gaon ke koi bhi mama, kaka, dada, didi,etc unhe nahi paraya. kyon?

निरुपमा लियांगी: Isaiyon ne hamesha daya prem aur sahyog ki baat ki hai. Agar samaj me failte khaai ko patne ke liye kuch aur kadam aage badhen to kripa hogi.

.. Koi misunderstanding ho toa hum Mil baant kar door karen.

..Sawal ye ki adivasi education ko priority de. Agar education ke liye ghr me sacrifice karna pade to karen.

..Mai ne kai baar ye likha hai ki KALINGA INSTITUTE OF SOCIAL SERVICES ke trj par jharkhnd me bhi school khula chahiye. Taki garib bachhon ko muft ya concession me sikcha Mil sake. Adivasi Mil kar har district me ye kare. Sarkaar ka fund aur adivasi logon ke contribution se ye kaam ho sakta hai.