टैबू (निषेध), जिसका अर्थ होता है किसी खास काम के लिए व्यक्ति को मना करना या खास काम को अलग तरीके से करने की हिदायत देना! इन निषेधों का पालन आदिवासी समाज में सख्ती से किया जाता है, खासकर महिलाओं से संबंधित निषेध. इन निषेधों का पालन अगर कोई नहीं करता है तो परंपरागत पंच उस व्यक्ति को साधारण से लेकर गंभीर दंड देते हैं.

माना जाता है कि एक मनुष्य के गरिमामय जीवन जीने के लिए भोजन, वस्त्र,आवास (जमीन) सबसे जरूरी है. संताल समाज में प्रचलित निषेध इन जरूरी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए औरतों को पूरी तरह से पुरुषों पर निर्भर कर देता है, जिस कारण से उनकी स्थिति समाज में दूसरे दर्जे की होकर रह जाती है. हम यहां ऐसे कुछ निषेधों को रख रहे हैं:

हल छूने या चलाने का निषेध

संताल महिलाओं को हल चलाना तो दूर छूने भी नहीं दिया जाता है. वैसी महिला जो मजबूरी में हल चला लेती है, समाज उसे बहिष्कृत कर देता है या उसे बैल की तरह खूंटे से बांधकर घास खाने के लिए मजबूर कर देता है. विधवा, तलाकशुदा, परित्यक्ता या आजीवन अविवाहित रहने वाली महिला खेती के लिए दूसरे पुरुषों पर निर्भर रहती है. आरंभिक आदिवासी समाज पूर्णत: खेती पर ही निर्भर था और खेती सौ फीसदी केवल और केवल हल द्वारा होती थी.

हल आदिवासियों का एक प्रकार से आर्थिक शक्ति प्राप्त करने का मजबूत साधन था और इस मजबूत साधन को छूने से ही आदिवासी औरतें वंचित थी. उस वक्त खेती भगवान के ऊपर निर्भर बारिश पर थी इस वजह से सब लोग सबसे पहले पानी पड़ते ही अपने-अपने खेतों में लग जाते थे. इस हालत में अकेली महिला को उन पुरुषों का इंतजार करना होता था जब तक वह अपना खेती नहीं कर लेते. नतीजा विलंब से फसल लगने के कारण फसल होती नहीं थी या जब तक लोगों को फुर्सत मिलती, तब तक पानी खेत से सूख चुका होता था और अकेली औरतों की खेत सुनी ही रह जाती. अभी भी बहुसंख्यक आदिवासी गांव में ही निवास करते हैं तथा खेती भी मानसून पर ही निर्भर है. तो, आप अनुमान लगा सकते हैं कि किस प्रकार ये निषेध अकेली असहाय महिलाओं के आर्थिक जीवन को प्रभावित करता है. ऊपर से यदि पति बीमार,अपंग या गंभीर रूप से शराबी हो और पूरा घर संभालने की जिम्मेदारी औरत पर हो, तो उस परिवार की हालत भी एक ताकतवर महिला रहने के बावजूद डावांडोल रहती है. परिणाम यह होता है कि घर के जो छोटे लड़के होते हैं, उन पर अनावश्यक दबाव पड़ता है खेती संभालने का और बच्चे की पढ़ाई छूट जाती है.

एक प्रकार से यह टैबू केवल महिलाओं की स्थिति खराब नहीं करता है, बल्कि पूरे समाज को ही कमजोर करने में बड़ी भूमिका निभाता है.

छप्पर छारने का निषेध

संथाल महिला घर बनाने के लिए दीवार तो अकेले खड़ा कर सकती है, पर उसके ऊपर छत पर नहीं जा सकती है. इसके लिए भी उसे दूसरे का इंतजार करना पड़ता है. परिणाम यह होता है कि यदि छारने के लिए समय पर पुरुष ना मिले तो बारिश होने के कारण मेहनत से खड़ी की गई दीवार भी ढह जाती है.

जेठ और छोटी बहन के पति के सामने खटिया पर ना बैठना और उनके सामने हमेशा बाल बांधे रखना

इसका नतीजा यह होता है कि हमेशा ही बाल बांधे रखने की हड़बड़ी में औरतें बाल धोते ही आधे अधूरे सूखे बाल बांध लेती है, जिस कारण से वह अक्सर बीमार हो जाती है या फिर बाल सुखाने के लिए उसे एकांत या गुप्त जगह में रहना होता है. इस बकवास टैबू की वजह से औरतों को पुरुषों से छुपकर रहने की जरूरत पड़ जाती है. इस प्रकार उनका इस धरती पर स्वाभाविक विचरण रोक दिया जाता है. यह रिवाज एक मनुष्य की मनुष्यता का घोर उल्लंघन करता है. इस कारण से औरतों को घर के एक कोने में दुबक कर रहना होता है. वह आंगन में सबके साथ नहीं बैठ सकती. कुल्ही पिंडा (गली),चबूतरे में नहीं बैठ सकती. सबसे जरूरी दुपुडुप (बैठकी या पंचायती) में नहीं बैठ सकती. इस प्रकार महिलाओं का सार्वजनिक जीवन खत्म हो जाता है.