1) पुराना सरना धर्म जिसमें पाहन के द्वारा पूजा पाठ होता है जिसमें जनवारों को बलि चढ़ाने का प्रथा है और प्रकृतिक सरना में ही पूजा होती है।

2) दूसरा सरना धर्म जो सरना झंडा गाड़ कर तुलसी के पौधे लगाए जाते हैं और हर सप्ताह तुलसी पेड़ के नीचे महिलाओं के द्वारा पानी डाल कर पूजा करने का प्रथा है ये प्रथा कुछ दिनों से ही शुरू हुआ है इसमें प्रथा में किसी जनवार की भी बलि चढ़ाने का नहीं और पाहन से नहीं बल्कि कोई भी पूजा पाठ की रीति विधि पूरा कर सकता है।

3) तीसरा सरना धर्म, जो बिल्कुल ही नया आया हुआ है इस धर्म के लोग सरना में नहीं बल्कि अपने घरों में ही पूजा करते हैं और किसी तरह की बलि नहीं चढ़ाते हैं और मांसाहारी से परहेज रखते हैं। इस धर्म के लोगों में हमेशा सफेद कपड़ा पहिनना अनिवार्य है और आदिवासियों के द्वारा मनाया जाने वाला कोई भी पर्व त्योहारों को नहीं मनाना है और किसी भी तरह के सरकारी योजना भी नहीं लेना है।

अब ये तीन तरह के सरना धर्म मानने वाले लोग आपस में ही एक दूसरे का दूश्मन बन गये हैं। दुख तकलीफ में शादी विवाह में काम धंधा में एक दूसरे को सहायता करना भी प्रतिबंधित है।

आदिवासी आदिवासी के मध्य में ही अजब का माहौल बन गया है।