जो बरसात रांची में खुशहाली लेकर आता था, वहीं बेतरतीब विकास की वजह से तबाही ले कर आने लगा है. पिछले चार पांच दिनों से होने वाली बारिश की वजह से सभी नदियां उफन रही हैं. नालों मे बदल चुकी नदियां अब शहर से बदला लेने पर उतारू हैं. सड़कों पर बह रही हैं. पार्कों को डुबो रही हैं. घर से निकलना दूभर हो गया है, क्योंकि हर तरफ जल जमाव से लोग परेशान हैं. हालत यह है कि सभी काम ठप है. जिनका परिवार दिहाड़ी मजूरी से चलता है, उनके लिए कहीं काम नहीं. घर के गाय गोरु, बकरियों को बाहर ले जाकर चराना मुश्किल हो गया है. उनको जीवित तो रखना है, इसलिए उनके लिए पत्तियां, चारों की व्यवस्था बाहर जाकर खुद करनी पड़ रही है. घर बेतरतीब चू रहे हैं. जीना मुहाल हो गया है.

पहले ऐसा नहीं था. रांची पूरे झारखंड में सबसे उंचाई पर बसा शहर है. बारिश होती थी, लेकिन जल जमाव कहीं नहीं होता था. पानी आसानी से नदी नालों से होते हुए बड़ी नदियों से जा मिलता था. लेकिन अब हालत कुछ और है. नदियों का अतिक्रमण कर घर बना दिये गये हैं. पानी के निकासी के रास्तों पर भी मकान, दुकान. सड़कों के किनारे बनायी गयी नालियां पानी कम ढ़ोती हैं, उल्टे बारिश के दिनों में उनसे ही पानी उमड़ता दिखाई देता है.

हमारी बस्ती कांके डैम साईड में बसा हुआ है. बगल से गुजरती नदी तो डैम बन जाने की वजह से कब की सूख गयी. अब आगे एक पुल बन गया है और नदी एक तरह से मर चुकी है. लेकिन लगातार बारिश से भरे डैम का पानी उल्टी तरफ पार्क तक में भर गया. रात में साईरन तीन बार बजा. हम समझ गये कि डैम का गेट खुलने वाला है. वे खोलने के पहले इसी तरह साईरन बजाते हैं.

सैलानियों को तो यह नजारा अच्छा लग रहा होगा, लेकिन डैम के पार्क के रास्ते से जिन लोगों का आना जाना था, उनके लिए मुसीबत हो गयी. हां, जगह-जगह लोग मछली पकड़ने में जुटे दिखे. मच्छरदानी को जाल की तरह इस्तेमाल कर भी मछली पकड़ा जा रहा था. एक जगह अद्भुत नजारा देखने को मिला. पानी में डूबे एक पेड़ की टहनी से एक अजगर सांप लटका मिला. लड़के उसे पेड़ से गिराने की कोशिशों में लगे रहे और अंत में वह पेड़ से नीचे पानी में गिर गया और भागने की कोशिश करने लगा. लेकिन कुछ अन्य सांपों की तरह वह तेजी से भाग नहीं पाया और कुछ लोग उसे पकड़ बोरा में डाल ले गये.

लेकिन इन तमाम मुसीबतों के बीच कुछ दिनों के लिए सही उमड़ती नदियां देखने में अच्छी लगती हैं.