झारखण्ड में मानसून की कमी के कारण किसान दिनों दिन निराश होते जा रहे हैं. रथ यात्रा के बाद से ही किसान अपनी जमा पूंजी व कड़ी मेहनत से धान के उत्पादन के सभी औजार से ले कर धान का बीज व खाद आदि की खरीद कर रहे हैं. भीषण महंगाई में अपनी जमा पूंजी खर्च कर रहे हैं. पर अफसोस की मानसून की रफ्तार धीमी है. आकाश में बादल तैरते रहते हैं लेकिन बारिश नहीं हो रही. मौसम विभाग की जानकारी के अनुसार अब तक 48 फीसदी बारिश कम हुई है झारखं डमें और इसका प्रभाव खेती-बाडी पर पर रहा है. हम सभी जानते हैं कि झारखंड में मानसून पर निर्भर एक ही खेती धान की होती है.

ग्लोबल वार्मिंग कहें या पर्यावरण का विनाश, मानसून का ये बदलता स्वरूप पता नही कितने किसान को बर्बाद करेगी. कुछ किसान धान का बीज को गोबर में मिला कर बोरा में रखे हैं, तो कुछ किसान खेत तैयार कर बीज को बो भी दिये हंै जो 15 से 20 दिन मे तैयार हो जाता है. लेकिन बीज तैयार हो कर भी कोई फायदा नहीं, क्योंकि जिन खेतों में बीज बोना है वह खेत अभी तक सूखा पड़़ा है. किसान बढ़ी मुद्दत से बारिश की प्रतिक्षा कर रहे है ताकि सूखे पड़े खेतों को ट्रेक्टर व बैल के माध्यम से खेती के लिए तैयार किया जाये, पर बारिश बहुत कम हो रही है ओर कहीं कहीं तो हो ही नही रही है. और बारिश का पानी खेत में जमा नही होगा तो रोपनी कैसे होगी? इसी तरह चलता रहा तो इस बार धान की फसल हो ही नहीं पायेगी.

हर रोज किसान खेतों में जाते हैं, खेत में लगाए बीड़े को देखते हैं ओर सोचते हद इस बार पता नहीं क्या होगा? सामान्यतः जुलाई के मध्य से रोपनी का काम शुरु हो जाता है. लेकिन इस बार एक तो मानसून बिलंब से आया और आया भी तो उसकी रफ्तार धीमी है. एक छलावे की तरह आकाश में बादल तैरते रहते हैं. बूंदाबांदी भी हो रही है, लेकिन खेती के लिए जैसी जमक र बारिश होनी चाहिए, वह अभी तक नहीं हुई है. यही आलम रहा तो खेतों में लगाये जा चुके बीहन सूख जायेंगे.

झारखंड में खेती लायक जमीन कम है. साल में मुख्य रूप से धान की एक खेती अधिकतर किसान करते हैं. उसी से उनके साल भर की खोराकी चलती है. खेती का बहुत नुकसान हो चुका है और अब भी जम कर बारिश नहीं होती दो चार दिनों के अंदर, तो इस बार अकाल का खतरा पैदा हो जायेगा.

यह अजीब विडंबना है कि देश के आसाम, गुजरात जैसे कुछ राज्य भीषण बाढ़ की चपेट में हैं और कुछ राज्य सूखे की गिरफ्त में. हमने विकास के नाम पर पर्यावरण को जो क्षति पहुंचाई है, शायद यह उसी का परिणाम है.