अपनी खूबसूरत वादियों और खुशनुमा मौसम की वजह से जिस रांची को बिहार की ग्रीष्मकालीन राजधानी 1912 में अंग्रेजों ने बनायी, उस रांची और पूरे झारखंड का मौसम तेजी से बदल रहा है. ठंढ़ के मौसम के खत्म होते ही मार्च अप्रैल के महीनों में मौसम सुहाना हो जाता था. महुआ पक कर टपकने लगता था और कपास व पलाश के लाल दहकते फूलों से आकाश भर जाता था. सही मायने में वसंत की छटा रांची और उसके आस पास के इलाकों में देखने को मिलता था.

लेकिन इस वर्ष वसंत के इस मौसम में इतनी तेज गर्मी पड़ रही है कि लोगों को रहना मुश्किल हो जा रहा है. तापमान दिनों दिन बढ़ता जा रहा है. वसंत के इन महीनों में तापमान औसतन 32-35 डिग्री सेल्सियस रहता था. लेकिन इस वर्ष अप्रैल महीनें में औसत से करीब 5 डिग्री तापमान बढ़ गया है. रांची का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस को छू रहा है. समीपवर्ती अन्य जिलों- बोकारो, धनबाद, जमशेदपुर आदि शहरों का तापमान तो 40 डिग्री को पार कर चुका है और निकट भविष्य में उसमें सुधार के भी आसार नजर नहीं आ रहे. गर्मी बढ़ने का एक प्रत्यक्ष कारण लगातार वृक्षों की कटाई हो सकती है. रांची झारखंड के शीर्ष पर बसा है और चारो तरफ ढ़लवा सड़के उसे अन्य शहरों कस्बों से जोड़ती है. हर दिशा में सड़कों का चैड़ीकरण हो रहा है ताकि गाड़ियां उन पर दौड़ सकें. लेकिन इसके लिए बड़े पैमाने पर पहाड़ों और पेड़ों को काटा जा रहा है, जिसके कारण हरियाली में भारी कमी आ गई है. जिधर देखिये उधर, कंकरीट के जंगल खड़े हो रहे हैं. बेशुमार इमरातें बन रही हैं और इनकी वजह से गर्मी भी. और इस गर्मी का मुकाबला लोग एयर कंडीशनर-कूलर जला कर करते हैं जो घर के भीतर को तो ठंढ़ा करता है, लेकिन बाहर के वातावरण को और ज्यादा गर्म.

गौरतलब यह भी है कि नेहरुयुगीन जो कल कारखाने, थर्मल पावर प्लांट लगे थे, वे जर्जर हो चुके हैं. वे जितना उत्पादन नहीं करते, उससे कहीं ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं. योजना तो यह बनती है कि जितना पेड़ कटेगा, उससे ज्यादा पेड़ लगाये जायेंगे. लेकिन ऐसा होता नहीं. सामान्य लोगों में भी पेड़ पौधे लगाने जगह अपने घर के आस पास के पेड़ों को काट कर इमारत बना लेने की प्रवृत्ति बढ़ी है. पेअ्रोल की कीमत बढ़ने के बावजूद सड़कों पर वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है. और इन वाहनों से निकला जहरीला घुआं ग्लोबल वार्मिग को बढ़ाने में अपना योगदान भरपूर दे रहा है.

कुल मिला कर स्थिति दिनों दिन गंभीर होती जा रही है. जानकारों के मुताबिक 1950 के बाद से तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है और अपने पर्यावरण को लेकर हम गंभीर नहीं हुए तो रांची उत्तर भारत के अन्य शहरों से किसी भी तरह भिन्न नहीं रह जायेगा.