देश और दुनिया ने बहुत विकास किया. विकास की चमक से किसी भी शहर का चकाचैंध रात को भी दिन में तब्दील कर रहा है. आदमी चांद से अब मंगल पर जाने की तैयारी में जुटा है. चांद तो पर्यटक स्थल बन चुका है, लेकिन! नदियां विलुप्त होती जा रही हैं. जहां सभ्यताओं, संस्कृतियों, संस्कारों का जन्म हुआ था. वह दिन दूर नहीं जब समुद्र का खाड़ा पानी ही एकमात्र विकल्प रह जायेगा.

भारत में दुनिया की विभिन्न सरकारों की तरह अलग-अलग जो भी राजनीतिक दल आए, नदियों को उन्होंने अपने दृष्टिकोण से देखा. अपने चश्मे से देखा. मां तो कहा, मां को आरती भी दिखाई, उनकी बीमारी के इलाज के लिए बड़े-बड़े डॉक्टरों (इंजीनियरों) की फौज भी बनाई. अरबों रुपए दिए. नदियों में सामंती युग की तरह मजा लेने के लिए लग्जरी शिप भी चलाया गए. लोग जो समर्थ हैं, मजा ले भी रहे हैं, लेकिन जो और जिनका जीवन पूरी तरह नदियों पर आश्रित रहा है, वे मर रहे हैं. विलुप्त हो रहे हैं. उनके गांव में (नदियों के किनारे, कछार पर बसे) शादियां रुक गई है. लाइलाज चर्म रोग से जूझ रहे हैं.

दूसरी तरफ देश के हर घर को नल से जल पिलाया जाने वाला है, पिलाया भी जा रहा है. जहां नदियां बची हुई है, उनसे, जहां नहीं हैं, वहां भूगर्भ जल से. भूगर्भ जल भंडार खाली हो रहा है लेकिन और और और डीप बोरिंग से पानी खींचा जा रहा है. किंतु उनमे पानी तो नदियां ही भरती हैं. थोड़ा बहुत वर्षा से पानी आता है. नदियां जल जंगल जमीन से अटूट रिश्ता रखती हं,ै क्योंकि उनके बगैर या इनमें से किसी एक के बगैर पृथ्वी और पृथ्वी के जीव वनस्पति जिंदा रह ही नहीं सकते. नदी है, तो जल है, जल है तो जंगल है और यह सब है तो जमीन है और यह तीनों है तो सृष्टि है.

इसलिए हमारे यहां गीत है हे गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ाइबो. गंगा तेरा पानी अमृत झर झर बहता जाए, युग युग से इस देश की धरती तुझसे जीवन पाए.

भारत में जब भी पूजा होती है तो आरंभ होती है नदियों की पूजा से. नदिया नहीं होंगी तो आत्मा की मुक्ति कैसे होगी? नदिया क्या मेधा पाटकर, राजेंद्र सिंह, अरुण तिवारी, संदीप सिंह, अश्विनी महापात्रा, बीबी साहा की जिम्मेदारी है? नदियों को नाला बनाकर हम किस सभ्यता संस्कृति को आगे बढ़ा रहे हैं?

नदियों के उद्गम पर मोहल्ले बसाकर, नदियों में सीधे सीवरेज और कारखाने का पानी डालकर विकास का कौन सा नया कीर्तिमान बनाना चाहते हैं? झारखंड में माननीय हाईकोर्ट नदियों को खोज रहा है. सरकार झूठी दलील दे रही है. हरमू नदी पर पूरा हरमू मोहल्ला बन गया. नदी की जो धारा थी, नदी का जो रास्ता था, उसमें मोहल्ले के सीवरेज का पानी डाल दिया गया. सरकार ने नदी को जिंदा करने की बात तो कही लेकिन सरकार ने करोड़ों खर्च कर उसे पक्का नाला बना दिया.

रांची में एक नदी थी पोटपोट्टो. साठ के दशक में कांके डैम बना. एक-तिहाई आबादी को इससे पानी मिलता है. इस नदी के उद्गम पर इंदरपुरी मोहल्ला बस गया. डैम के बाद आगे जाने वाली पोटपोट्टो नदी में शहर के सिवरेज और नाले डाल दी सरकार ने, सरकारों ने. पहले नदियों पर मोहल्ले बनाने, शहरों को बसाने के लिए पहाड़ तोड़.े नतीजतन झरने धीरे-धीरे गायब होने लगे. फिर चापानल की फैक्ट्री चलाने, चलवाने के लिए कुंए के पानी को दूषित बताया गया. कुएं भर दिए गए. अब हर घर नल जल योजना के लिए डीप, डीप और डीप पता नहीं कितनी गहरी बोरिंग कराया जा रहा है. कहीं पानी नहीं मिल रहा. कहीं मिल रहा है तो आर्सेनिक और फ्लोराइड युक्त.

कुएं भर दिए गए. झरने गायब हो गए. पहाड़ों को तोड़ने से तो पानी कहां से आएगा? कैसे आएगा? सबको कहा कि घबराओ नहीं नल जल योजना ला रहे हैं ना पानी घर-घर भेजेंगे. भूगर्भ जल का स्तर खत्म होता जा रहा है. नदिया जंगलों के काटने से तथा माइनिंग और विकास से मर रही हैं.

बिहार का भी हाल बेहाल. 19वीं सदी तक बिहार में करीब 6000 नदियां हिमालय से उतर कर आती थी. आज इनमें से 400 का अस्तित्व बचा है. अंधाधुंध रेत खनन, नदी की जमीन पर कब्जा कर घर, खेत, मोहल्ला, नगर बसाना, इन नदियों का काल बना. झारखंड, बिहार में तो पिछले 40 वर्षों में हजारों से ज्यादा छोटी नदियां जो पहाड़ों से बहती थीं, लगभग गायब हैं.कई नदियां तो सड़कें बन चुकी हैं.

नतीजा यहां के मछुआरों का जीवन तबाह हो गया. अब मनरेगा में मजदूरी कर बड़े शहरों में छोटे-मोटे रोजगार से अपने को जिंदा रखने की जद्दोजहद कर रहे हैं. पहले नदियों, तालाबों, खेतों से मछलियां आती थी. अब सरकार खेती कर आ रही है मछलियों की. किसी सरकार के पास नदियों की बाबत कोई सही आंकड़ा नहीं है. शायद सरकारें और राजनीतिक दलों को इसके लिए फुर्सत नहीं है, क्योंकि उनके घरों में नल जल बोरिंग सप्लाई की कई वैकल्पिक व्यवस्था की आती है जनता के टैक्स से.

यह तो सभी को पता है कि छोटी नदियों से ही बड़ी नदियां बनी है उनका अस्तित्व है. छोटी नदियां विलुप्त हो रही हंै, भर गई है, मर रही हं,ै तो कैसे बड़ी नदियां जिंदा बचेंगी? तो क्या आने वाले दस बीस साल के बाद समुद्र का पानी नल से लोगों को घर तक पहुंचाया जाएगा?