तीन दिनों से बूढाखाप (कजू) में स्थानीय महिलायें एवं बच्चियाँ पेड़ों से लिपट कर उनको बचाने में लगी है. वहाँ स्पंज आयरन फैक्ट्री को विस्तार देने के लिए वन- भूमि के 42.92 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करने की योजना है. औरतें वृक्षों को नहीं काटने देना चाहती. गिनती करने आये वनकर्मियों को वहां से हटना पड़ा. पुलिस ने बल प्रयोग किया, तभी वृक्षों की गिनती हो पायी. पर्यावरण -दिवस के अवसर पर हमें इनसे सीख लेनी चाहिए.

‘एक वृक्ष सौ पुत्र समान’ का नारा देने वाली एवं पर्यावरण संरक्षण के नाम पर लाखों खर्च करने वाली सरकार खुद प्रदूषण बढ़ा रही है. हर वर्ष पर्यावरण दिवस के अवसर पर प्रदूषण के बढ़ते स्तर पर आकड़े प्रस्तुत किये जाते हैं और उन्हें दूर करने के लिए तरह-तरह की योजनायें बनाई जाती है. विकास की अंधी दौड़ में सबसे ज्यादा पर्यावरण का ही नुकसान हुआ है, निरंतर बढ़ रहा पर्यावरण- प्रदूषण इसका प्रमाण है. नदियों - तालाबों का पानी इतना गंदा है कि जलीय जीवों के रहने लायक नहीं रहा. पहाड़ काट कर पत्थड़ निकाले जा रहे हैं. बरगद, पीपल, नीम जैसे विशालकाय पेड़ों को काट सड़कंे चैड़ी की जा रही हैं जहाँ राहगीरों को छाया तक नसीब नहीं होगी.

पर्यावरण यानि प्रकृति को चारो ओर से घेरने वाला आवरण, पेड़ पौधे, जल, जंगल, पशु-पक्षी, पहाड़ आदि. आदमी जब सभ्य हुआ तो अपना तन ढ़कना शुरू किया, अपनी लाज ढकनी शुरू की. इसके लिए जिस धरती से सामग्री ली, सम्य होने पर उसी धरती को विकास के नाम पर नंगा करना शुरू कर दिया. लेकिन हम भल जाते हैं कि दुनिया ने विकास का जो मॉडल चलाया है, वह धरती को प्रदूषित और गर्म कर रही है.

हम अपने-अपने धर्मों में प्रकृति की पूजा करते हैं. कभी सूरज चाँद पहाड़, नदियाँ, वृक्ष, तो कभी पशु-पक्षी, इसमें हम दूब से लेकर प्रकृति से प्राप्त तमाम् चीजों का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन इनको बचाने का प्रयास नहीं करते. हमारे चारो ओर की हवा, जल- जंगल, पशु-पक्षी सभी पर्यावरण को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निमाते है. जल-जंगल- जमीन, तीनों का संतुलन हीं पर्यावरण की सुरक्षा है. इसे बचाने के लिए दुनिया भर में अलग-अलग पॉकेट में आंदोलन हुए, हो रहे हैं. चिपको आंदोलन के सुंदरलाल बहुगुणा, मेधा पाटेकर इत्यादि अपने - अपने तरीकों से इसके बचाने के उपाय कर रहे हैं.

मौसम का मिजाज बदल रहा है. दुनिया गर्म होने लगी है. ग्लोबल वार्मिंग से पूरी दुनिया निकलने की कोशिश कर रही है. पर इसके लिए जो प्रयास हो रहे हैं, वह सही दिशा में न होकर प्रकृति को नुकसान पहुँचाने वाला ही साबित हो रहा है. महात्मा गाँधी ने कहा था, ‘प्रकृति ने इतना कुछ दिया कि इस धरती में सभी जीवों की जरूरतें पूरी हो सकती है, लेकिन किसी के लालच को पूरी नहीं कर सकती यह प्रकृति’. हमें इस बात का ध्यान रखना होगा.