मुझे ऐसा लगता है कि वाहिनी मित्र मिलन के बारे में, उसके उद्देश्य के बारे में, उसके स्वरूप के बारे में हमारे, यानी साथियों के बीच कुछ मतभेद है। या कहें कि सभी एक तरह से नहीं सोचते। चूंकि कभी खुल कर बात नहीं हुई, तो स्पष्टता नहीं है।
कुछ साथी इसे संघर्ष वाहिनी के अधूरे रह गये काम और लक्ष्य के लिए नये सिरे से तैयारी का मंच मानते हैं। लेकिन बहुतेरे साथी इसे पुराने मित्रों से मिलने-जुलने का मौका मानते हैं। साथ ही इसी बहाने घूमने-फिरने का भी। हम अपेक्षा करते हैं कि साथी अपने परिवार बच्चों के साथ आयें। फिर यह भी के हमारी गंभीर चर्चा में शामिल भी रहें। कम से कम सत्र के समय कहीं न जायें। मंच से बार बार यह शिकायत भी की जाती है कि लोग बैठते नहीं। घूमने में लगे रहते हैं। मित्रों से यह अपेक्षा गलत भी नहीं है। मगर उनके साथ आये बच्चों से, ऐसी चर्चा में उनकी रुचि हो या न हो, तब भी वहां बैठे रहें, ऐसी अपेक्षा करना बेमानी है। ऊपर से यह आयोजन अक्सर बड़े शहरों, पर्यटन की दृष्टि से खास जगहों पर होता है। इस कारण भी संख्या कुछ बढ़ जाती है।
ऐसे में मित्र मिलन के शिड्यूल और स्वरूप पर नये सिरे से विचार करना चाहिए। कम उम्र के बच्चों, उनकी मांओं को चर्चा सत्र में बैठने का कितना दबाव डालना चाहिए, इस पर सोचना चाहिए। और बार बार कहने पर भी वे कितनी देर शामिल होते हैं, इसका आकलन करें। स्वस्थ मनोरंजन के तरीके खोजें, ताकि बच्चे इन्ज्वाय कर सकें। जो गंभीर चर्चा करने में रुचि रखते हैं, उनको चर्चा करने का पूरा अवसर मिले, लेकिन उसमें सभी शामिल हों, इसे जरूरी नहीं माना जाये।
इस बात को समझें कि यह कार्यकर्ताओं का सम्मेलन नहीं है। न ही हम अब एक ‘समूह’ हैं। जो अब भी सामाजिक रूप में सक्रिय हैं, वे तो अपने ढंग से कुछ कर ही रहे हैं। उनका परस्पर तालमेल बन सके, इस पर जरूर विचार होना चाहिए। अगले मित्र मिलन तक के लिए कुछ प्रतीकात्मक कार्यक्रम भी तय हो सकते हैं।
घूमने फिरने के बहाने भी वाहिनी के साथी समय और पैसा खर्च करके जुटते हैं, यह बड़ी बात है। हां, जो मुख्यतया पर्यटन के लिए ही आते हैं, वे अतिरिक्त आर्थिक सहयोग करें, यह कैसे सुनिश्चित हो, इस पर सोचना चाहिए।