पीजी,डीएभी और हंसराज कॉलेज में नॉर्ट ईस्ट को समझने के लिए 14 दिनों का फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम की शुरुवात दो दिन पूर्व हुई. मैंने भी 1000 रुपये खर्च करके इससे कुछ सीखने का मन बनाया है. पर आज सिर्फ उद्घाटन सत्र में दो प्रबुद्धों को सुनने का अवसर मिला. पहले कविता शर्मा का, जो पीजी,डीएभी कॉलेज की प्रिंसिपल हैं. एकदम सधा हुआ वेलकम स्पीच. कुछ भी नया नहीं.

दूसरे वक्ति थे ओम जी उपाध्याय (आईसीएचआर) के मेंबर सेक्रेटरी. उन्होंने खुद के बारे में बताया- हिस्ट्री और कल्चर के अध्येता. उन्होंने मणिपुर हिंसा की बात से शुरुवात की. धीरे-धीरे उनके वक्तव्य में छद्म राष्ट्रवादियों का नजरिया खुलता गया. उन्होंने उन ‘सो कॉल्ड’ स्कॉलर्स की बात करनी शुरू की जो उनसे अलग मत रखते हैं. यानी जो ‘नारंगी’ नहीं हैं, जो देश की विविधता का सम्मान करते हैं, जो देश में डाइवर्सिटी को सेलिब्रेट करते हैं, उन्हें उन्होंने ‘समस्या उत्पन्न करने वालों’ की तरह प्रस्तुत किया. फिर वे आये नार्थ इस्ट पर ‘मूवमेंट’ चलाने वालों को घेरने की कोशिश की. फिर वे आये कुछ स्कॉलर्स की ओर जिन्होंने यह बताया कि नार्थ इस्ट में मातृसत्ता और लक्ष्मी, सरस्वती, काली, दुर्गा पूजा का अस्तित्व इसी भूमि क्षेत्र की उपज है. नाम लिया शुभजीत चैधरी और किन्हीं सिलचर के पातर का.

फिर आये मनुस्मृति पर. संस्कृत के एक दो श्लोक रखे और बताया कि कैसे नारियों की पूजा होती रही है. विष्णु पुराण में उल्लिखित भारत के भूगोल को भी श्लोक से दर्शा दिया.

फिर उन्होंने ‘दे दी हमें आजादी खड़ग बिना ढाल’ वाले गीत के हवाले से गांधी जी को भी और उनकी अहिंसा को भी थोड़ा साधा कि ऐसे नहीं मिल गयी थी आजादी, लहू बहुत बहा है. चुपके से और हौले से हिंसा को जरूरी बताने की भी योजना थी उस बात में.

फिर आये वे धर्मांतरण पर. कुकी इसलिए उत्पात मचा रहे हैं, क्योंकि 90 फीसदी पहाड़ी लैंड पर उनका कब्जा है और वे क्रिश्चियन हैं.जबकि 55 फीसदी मैतीई मात्र 10 फीसदी मैदानी भूभाग पर हैं और वे हिंदू हैं, कुछ इस्लाम हुए हैं. पर वे खड़े दिखे मैतई समूह के साथ, जो उनके लिए बहुत आसान है. ओपियम की खेती का भी जिक्र कर डाला. कहा कि इन्हीं वजहों से मणिपुर जल रहा है.

सोशल अनरेस्ट की वजह बता दी कि नेचर वरशिपर ने खुद को अनास्थावादी या नास्तिक की कैटेगिरी बना डाली है. सब बाहरी ताकतें ऐसा करवा रही हैं.

फिर वे आये उस भाषा पर, जो वहाँ के लोग प्रयोग करते हैं- कि ‘इंडिया जा रहे हैं’, ‘भारत जा रहे हैं’. इसे भी एक बड़ी साजिश बता दिया।।

कुल मिला कर मेरे को कुछ भी हासिल नहीं हुआ. सुबह का एक घंटा बर्बाद किया,

यही बात उभर कर सामने आई।। नार्थ ईस्ट को समझने के लिए नार्थ ईस्ट स्पीकर एक भी नहीं उद्घाटन सत्र में. हिंदी पट्टी ही अपनी आँखों देखी कहेगा. जो वहाँ का है, वह तो बताने में अयोग्य है ना। बहुत दुखद हो जाता है यह सब कुछ।

एक दो स्पीकर वहां के होते आज पहले दिन, तो आगे 13 दिन साथ में बने रहने की संभावना और तीव्र होती. शिक्षकों को इन तरह के समागम के माध्यम से क्या सर्व किया जा रहा, इसका एक छोटा सा नमूना मैंने आप सभी के साथ साझा किया.

सावधान देश मेरे. बनी रहने दें यह विभिन्नता, जो खूबसूरत है. मत कुचले इसे।। और हाँ अंतिम बात-

आयोजक मंडली के लोग अपने वक्ताओं को ‘भैया भैया’ कह कर भी संबोधित कर रहे थे तो लगा कि यह अकेडमिक आयोजन कम और चाय पानी के लिए हुई बैठकी ज्यादा थी.