‘सभ्यता का युग तब ही आएगा जब औरत की मर्जी
के बगैर कोई उसके जिस्म को हाथ नहीं लगा सकेगा’

अमृता प्रीतम की ये पंक्तियाँ पता नहीं किस समाज की महिलाओं के लिए है। हमारे देश में तो यह पंक्तियाँ नहीं चलती। हमारी सांस्कृतिक विरासत में तो गालियाँ महिलाओं के अपमान के बगैर अधूरी है। कोई भी बदला लेना हो स्त्रियां हैं न! तुम उस जाती धर्म, देश की महिलाओं के साथ जितना बदला लेना चाहते हो तुम लो, हम दूसरे धर्म जाति की महिलाओं के साथ वही करेंगे। बदला पूरा। हैं न यह एक मजेदार बात। हर बदला महिलाओं के साथ बदला, से ही सम्पूर्ण होता है, वरना यह बदला अधूरा है। स्त्रियाँ कोई इंसान तो हैं नहीं। वो तो मर्दों के हाथ का खिलौना हैं। जो चाहो करो, जैसे चाहे करो। यह कोई नई बात तो है नहीं। हजारों साल से यही तो होता चला आ रहा है। महाभारत का काल हो, उसकी कहानियाँ हो या रामायण में सीता का अपमान। ये सभी हमारे धर्म ग्रंथ है। आदर्श है। यही जीवन पद्धति है।

1972 में पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त मणिपुर को संविधान प्रदत्त प्रावधानों के तहत एक विशेष स्थिति प्राप्त है। कुकी और नागा सहित यहाँ के आदिवासी पहाड़ों पर रहते हैं और ये एसटी के श्रेणी में आते हैं। मैतेई जो बहुसंख्यक है को एसटी में शामिल करने की सरकारी प्रपंच के कारण, सुप्रीम कोर्ट की अनुशंसा के बाद से ही मणिपुर में हिंसा का दौर शुरू हो गया।

पिछले तीन महीनों से हमारे देश का एक राज्य मणिपुर जल रहा है। लेकिन अभी तीन दिन पहले से एक वीडियो सोशल मीडिया पर हम सभी देख रहे हैं। मणिपुर में दो-तीन कुकी लड़कियों को निर्वस्त्र करके उसके शरीर के अंगों के साथ खिलवाड़ करती हजारों की भीड़ उसे घसीट कर ले जा रही है। जो शर्मनाक होने के साथ-साथ दर्दनाक है। ये शब्द काफी नहीं है। उस वीडियो को देख कर अपना शरीर इतना घृणित लग रहा है कि काश धरती दो टुकड़े में फट जाती और हम सभी महिलाएं सीता की तरह इसके अंदर समा जातीं। महिलाओं के ऊपर अत्याचार की, बलात्कार की, अपमान की, कहानी ही खत्म हो जाती। लेकिन यह संभव नहीं है।

तभी महाभारत की घटना याद आ जाती है। विद्वानों से भरी सभा थी। युधिष्ठिर द्यूत में सब कुछ हार चुके थे, अपना देश, देश की सारी संपत्ति, और तब दुर्योधन ध्यान दिलाते हैं कि आपकी एक संपत्ति आपकी पत्नी द्रोपदी तो अभी भी आपके पास है। धर्मराज युधिष्ठिर धर्म का पालन करते हुए द्रोपदी को भी द्यूत के दांव पर लगा देते हैं और हार जाते हैं।

और तब शुरू होती है दूसरे पक्ष दुर्योधन के बदला लेने के लिए हिंसक प्रवृतियों की। भरी सभा में दुर्योधन, दःुशासन को आदेश देता है कि युधिष्ठिर द्यूत में अपनी पत्नी द्रोपदी को हार चुके हैं और वह अब मेरी संपत्ति है। बालों से खींच कर द्रोपड़ी को विद्वानों से भरी सभा में लाया जाता है, और उनके शरीर से वस्त्र हटा कर उन्हें नग्न करने की कोशिश होती है। घर की बहू भरी सभा में नग्न की जा रही है और उपस्थित विद्वान जन खामोश तमाशबीन बने हैं।

यह कैसी हिंसा है जो महिलाओं को नग्न कर पूरी होती है। तब भी इस दिल दहला देने वाली इस घटना को पढ़ कर मन सिहर जाता था और आज मणिपुर की घटना उससे कहीं आगे जा कर भयावह हो रही है। औरतों पर होने वाली हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही, और भी ज्यादा भयानक रूप में सामने आती है। यह अहसास करा जाती है कि हम किस समाज में रह रहे हैं।

मणिपुर की घटना के कई आयाम हैं। सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक और अन्य कई। महान देश की महान परंपरा है यह। सनातन धर्म की स्थापना, विश्व गुरु बनने का दंभ इन्हीं बदला लेने वाले कारनामों के बल पर किया जा रहा है। लेकिन यह तय बात है कि इस हिन्दुत्व में मानवता के लिए कोई स्थान नहीं बचा है।