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मणिपुर को 1972 ई. में पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ। अलग राज्य के गठन की प्रक्रिया के दौरान मणिपुर के पहाड़ी अंचल के आदिवासी समुदायों के लिए मणिपुर (पहाड़ी क्षेत्र) जिला परिषद अधिनियम 1971 लागू किया गया। इसमें एडीसी यानी ‘स्वायत्तशाषी जिला परिषद’ के गठन का प्रावधान किया गया। इसमें आदिवासी समुदायों के लिए स्वायत्तता की बात कही गयी। लेकिन आदिवासी समुदाय इससे संतुष्ट नहीं हुए। वे एडीसी के अधिकार क्षेत्र की मांग करते रहे और उसे अनुच्छेद 244 (2) छठी अनुसूची की तहत सक्षम बनाने की मांग करते रहे। उनका मानना है कि वर्तमान एडीसी राज्य विधानमंडल की दया पर काम करता है।
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मणिपुर पहाड़ी क्षेत्र समिति एक पूर्ण स्वायत्त शासकीय इकाई नहीं है बल्कि वह राज्य विधानमंडल की इकाई की तरह है। इससे वहाँ के समुदायों की असहमति है। यहां के आदिवासी समुदाय अधिनियम 1971 और अधिनियम 1972 के तहत अलग बजट की भी मांग करते रहे हैं।
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एडीसी को सशक्त बनाने की मांग करते हुए आदिवासी समुदायों ने लगभग 21 वर्षों तक एडीसी के चुनाव का बहिष्कार किया।
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पूर्वोत्तर के राज्यों में नागालैंड और मणिपुर में छठी अनुसूची लागू नहीं है। मणिपुर के आदिवासी संगठनों ने अनुच्छेद 244(2) की मांग भी की है जिसे स्वीकार नहीं किया गया।
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मणिपुर के अनुसूचित क्षेत्रों में पाँचवीं अनुसूची (अनुच्छेद 244(1) के ) की तरह की संवैधानिक व्यवस्था है। इसमें स्थानीय शासन यानी ग्राम निकायों को महत्त्व दिया जाता है, जिससे कि आदिवासी समाज अपनी परंपरागत स्थिति को जारी रख सकें।
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लेकिन उक्त संवैधानिक स्थिति को नजरअंदाज करते हए मणिपुर सरकार ने मणिपुर फॉरेस्ट रूल 2021 के हवाले से उनकी जमीन पर हस्तक्षेप किया।
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मणिपुर फारेस्ट रूल 2021 के तहत सरकार ने फारेस्ट लैंड पर किसी की तरह के कब्जे विरुद्ध अभियान चलाया। सरकार का मानना है कि आदिवासी संरक्षित जंगल और वन अभ्यारण्य में गैरकानूनी कब्जा करके अफीम की खेती कर रहे हैं, जबकि आदिवासी समुदाय का कहना है कि जंगल और जमीन पर अपना पुश्तैनी अधिकार है।
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सरकार द्वारा फारेस्ट लैंड रूल के द्वारा किये गये अभियान को आदिवासी समुदायों ने अपने पुश्तैनी अधिकार पर अतिक्रमण समझा और इसके विवाद शुरू हुआ। आदिवासी समुदायों के कहना है कि उन्होंने जमीन का अतिक्रमण नहीं किया है बल्कि वे सदियों से वहाँ रहते आये हैं।
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गवर्नमेंट लैंड सर्वे के विरोध में चुराचंदपुर में ही 28 अप्रैल को इंडिजन्स ट्राइबल्स लीडर्स फोरम ने आठ घंटे का बन्द का आयोजन किया था । इस विरोध प्रदर्शन में पुलिस और आदिवासी समुदायों के बीच हिंसक झड़प हो गई।
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इसी दौरान मणिपुर हाई कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने की सिफारिश प्रस्तुत करे. कोर्ट ने मैतेई समुदाय को आदिवासी का दर्जा देने का आदेश दिया।
इस घटना ने आग में घी का काम किया। मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने के विरोध में आल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला। इस प्रदर्शन के विरोध में मैतेई समुदाय खड़े हो गए और हिंसा भड़क उठी।
इन वस्तुस्थितियों के बीच से उठते हुए कुछ सवाल हैं:
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आदिवासी समुदायों के एडीसी को प्रभावी बनाने की मांग को नजरअंदाज क्यों किया जाता रहा है? एडीसी का लगभग 21 वर्षों तक आदिवासी समुदायों ने बहिष्कार किया, बावजूद इसके इसे गंभीरता से क्यों नहीं लिया जा रहा है। क्यों नहीं उसे संविधान के अनुच्छेद 244(2) यानी छठी अनुसूची के अनुकूल बनाया जा रहा है?
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गवर्नमेंट लैंड सर्वे पहाड़ी क्षेत्रों के मौजूदा संवैधानिक प्रावधनों के अनुकूल नहीं है, तो फिर इसका औचित्य क्या है? क्यों आदिवासी समुदायों के परंपरागत वन अधिकार पर हस्तक्षेप किया गया? चुराचंदपुर में इसी कारण से सबसे पहले हिंसा भड़की थी।
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मणिपुर विधानसभा में कुल 60 सीट हैं जिसमें से 40 सीटों पर मैतेई विधायक हैं। स्वाभाविक रूप से मैतेई बहुलता शासन पर हावी है ऐसे में आदिवासी समुदायों का एडीसी को ज्यादा स्वायत्तता देने की मांग उचित है। इसे लागू नहीं किया जाना क्या उनके ऊपर बहुसंख्यकवाद को थोपना नहीं है?
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कई प्रशासनिक अधिकारी और मैतेई विधायक एडीसी की स्वायत्तता के विस्तार को अलगावादी भावना से जोड़ते हैं। क्या संविधान के अधीन स्वायत्तता की मांग और अलगाववादी विचार को एक ही तरह से देखा जाना चाहिए?
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क्या सीमा पार के विद्रोहियों का भय दिखाकर किसी आदिवासी समुदाय की संवैधानिक माँग को नजरअंदाज करना उचित है?
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2008 में कुकी विद्रोही संगठन और केंद्र सरकार के बीच समझौता हुआ था। उस समझौते की टूटने की वजह क्या है? क्या केन्द्र इस समझौते को आगे बढ़ाने में अक्षम साबित हुआ है?
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पहाड़ी क्षेत्र के आदिवासी समुदाय नगा और कुकी अमूमन ईसाई धर्मावलम्बी हैं और मैतेई हिन्दू। क्या मणिपुर में उत्तर भारत की तरह की हिंदुत्ववादी राजनीति का प्रयोग नहीं किया जा रहा है?
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अगर मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा दे दिया जाता है तो वहाँ की संवैधानिक स्थिति क्या होगी? क्या वहां अनुच्छेद 244(2) छठी अनुसूची लागू किया जाएगा? और क्या पहाड़ी क्षेत्र के आदिवासी समुदायों के लिए गठित एडीसी यानी स्वायत्तशासी जिला परिषदों के अधिकार का विस्तार किया जाएगा?
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दो आदिवासी महिलाओं का गैंगरेप और उन्हें नंगा करके घुमाने की ताकत एक समुदाय की भीड़ को कहाँ से मिली? क्या यह बहुसंख्यकवाद होने की वजह से है?
हम सब चाहते हैं मणिपुर में जल्दी शान्ति कायम हो। हिंसा का समाज में कोई स्थान नहीं है। यह संविधान के रास्ते ही संभव है। मणिपुर में संवैधानिक प्रावधानों को नजरअंदाज करके स्थायी समाधान निकालना संभव नहीं है।