आम जुमला है कि ‘ इस्लाम ख़तरे में है’ बताकर मुसलमानों की भीड़ किसी भी जलसे-जुलूस के लिए सड़कों पर निकाली जा सकती है। हालाँकि इस्लाम कभी ख़तरे में रहा ही नहीं। बावजूद इसके शिकायत तो है ही क़ायम कि जज़्बाती मुद्दों को छोड़ कभी मुस्लिम जमात अपनी तालीम, रोज़ी-रोटी जैसे मौलिक सवालों पर धरना-प्रदर्शन, रैली-मार्च नहीं करती। लेकिन 26 मार्च यानी इसी इतवार को सुबह 10: 30 बजे यह मिथ टूटने जा रहा है। हमें भी चाहिए रोज़गार और विकास के नारे बुलंद करने नौजवान कडरू मैदान रांची में होने जा रही मुस्लिम यूथ कांफ्रेंस में बड़ी तादाद में जुट रहे हैं। अगर आप रांची के आसपास रहते हैं, तो ज़रूर आएं। जो दूर हैं। वे साथियों को बताएं। मेरी दुआ भाई एस अली के साथ है। पिछले 6 सालों से मैं उन्हें संघर्षरत देख रहा हूँ। उनके और उनके साथियों के लिये इक़बाल का शेर है: नशेमन दर नशेमन इस क़दर तामीर करता जा कि बिजली गिरते-गिरते खुद बखुद बेज़ार हो जाए !