यह नमूना मात्र है। किसी भी पत्रकारिता-प्रशिक्षण की सुचिंतित कार्य-योजना पर अमल के लिए इस तरह का पाठ्यक्रम विकसित करना जरूरी है।
पत्रकारिता सीखने-सिखाने - फंक्शनल जर्नलिज्म - के लिए कुछ ऐसे आधारपाठ या बीज पाठ तैयार किये जाने चाहिए, जो विद्यालय और विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम के अनुरूप हों।
ये आधारपाठ पत्रकारिता की ‘कला’ को बरतने की सामान्य वैज्ञानिक प्रविधि के निर्धारण-निरूपण के हिस्सा हों। कुछ पाठों के ‘शीर्षक’ यहां पेश किये जा रहे हैं। इन शीर्षकों से यह समझ में आ सकता है कि ‘पत्रकारिता’ के तहत क्या सीखना-सिखाना है, या पढ़ना-पढ़ाना चाहिए।
इन पाठों के सहारे पढ़ने-पढ़ाने में अनुमानतः 100 घंटे लगेंगे। विशेष मुद्दा या विषय के लिए ऐसे पाठ प्रिंट-ऑडियो-वीडियो रूप में तैयार हों। इन्हें “साथी जोहार.कॉम” के कॉलम में प्रस्तुत करने का प्रयास हो. इससे हर मुद्दे (विषय) को अलग-अलग ‘एंगेल’ से देखने-बरतने की समझ पैदा की जा सकेगी। इसके लिए “साथी जोहार.कॉम” के पाठक-बंधु हमारे कॉलम के सक्रिय सहयोगी-सहभागी बन सकते हैं। यानी वे पत्रकारिता के छात्र बनकर शिक्षक की भूमिका निभा सकते हैं या शिक्षक की भूमिका निभाते हुए खुद ऐसे विद्यार्थी बन सकते हैं, जिससे यह कॉलम ‘क्रिएटिव लर्निंग’ की ज़िंदा मिसाल बन सक. इसके लिए वे शोध-अध्ययन, सर्वेक्षण, भ्रमण, डाटा-संकलन और विश्लेषण आदि के लेखन-संपादन और प्रकाशन, ऑडियो-वीडियो के निर्माण आदि का काम हाथ में लें। यह उनके प्रयोग एवं अभ्यास पाठ्यक्रम का अंग हो। इसके तहत ऐसे विषय चुने जाएं, जो आम छात्रों को पढ़ाई के दौरान पत्रकारिता करने (स्पॉट रिपोर्टिंग, समाचार-विचार लेखन), सर्वे व शोध-अध्ययन करने, ऑडियो-वीडिओ-डाक्यूमेंट्री बनाने के लिए स्क्रिप्ट-लेखन के साथ अखबार-पत्रिका निकालने और फिल्म निर्माण का कौशल अर्जित करने की प्रेरणा दें। (छात्र-पाठक खुद ऐसे विषय चुन सकें, इसमें शिक्षक-पाठक गाइड के रूप में सहयोग करें। ऐसे विषयों के चयन एवं निर्धारण में छात्रों की मदद करना शिक्षण-कर्म का हिस्सा बने – यह हमारे कॉलम का लक्ष्य बने।)
शीर्षकः
1) पत्रकारिता: कुछ शर्त्तें, कुछ सूत्र
‘पत्रकारिता क्या है’ समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि पत्रकारिता क्या नहीं है।
समाचार पत्र या अखबार क्या है?
2) पत्रकारिता का सचः सवाल और संदेह
अखबार पूरा झूठ नहीं बोल सकते, पूरा सच भी नहीं बोलते।
प्रामाणिकता बनाम विश्वसनीयता. पत्रकारिता की कसौटियां। समय के साथ उद्देश्य और लक्ष्य में आये बदलाव।
सफल संपादक बनाम श्रेष्ठ संपादक
3) पत्रकारिता की सीमा और संभावना
मिशन बनाम प्रतिबद्धता, सेवा बनाम व्यवसाय। लोकहित और निजी आर्थिक लाभ के बीच का द्वंद्व।
पत्रकार के लिए पेशेवर होने का मतलब।
4) अखबार, रेडियो और टीवीः फर्क की पहचान
स्पेस आर्ट बनाम टाइम आर्ट
अखबार, रेडियो और टीवी के लिए लेखनः पाठक के लिए लिखना, श्रोता के लिए लिखना और दर्शक-श्रोता के लिए लिखने की कला में फर्क।
5) रिपोर्टिंग: ‘स्टोरी’ कहने की कला
रिपोर्टिंग के विविध प्रकार और विधि।
6) संवाददाता और उपसंपादक: स्थायी दुश्मनी, अनिवार्य दोस्ती
योग्यता और क्षमता के संदर्भ में अलग-अलग भूमिकाएं। रिपेर्टिंग और संपादन के बीच का रिश्ता।
रिपोर्टिंग में कार्य विभाजन। संपादन कक्ष में कार्य विभाजन। संवाददाता और उपसंपादकों की योग्यता
और क्षमता को नापने के पैमाने।
7) समाचार, फीचर, आलेख, निबंध में फर्क
संपादकीय और फीचर में फर्क
8) संवाद लेखन और संपादन में ‘भाषा’
हिंदी भाषाः साहित्य की भाषा और अखबारी भाषा। अखबारी हिंदी की विकास-यात्रा।
9) पत्रकारिता का विकास: इतिहास का आईना
पत्रकार बनने के लिए पत्रकारिता का इतिहास जानना क्यों जरूरी है?
हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू पत्रकारिता - इतिहास में छिपे समाज की अब तक की विकास-यात्रा के रहस्य। स्वतंत्र पत्रकारिता
नवजागरण और हिंदी पत्रकारिताः अतीत से आज तक
10) आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक विषयों की रिपोर्टिंग और लेखन के विविध आयाम, प्रक्रिया, पैमाने और अभ्यास (पढ़ना, सूत्रीकरण, संक्षिप्तीकरण, मौलिक लेखन का अभ्यास)
(11) साहित्यिक पत्रकारिता।
(12) ग्रामीण पत्रकारिता।
(13) क्राइम रिपोर्टिंगः अपराध और पुलिस सहित अदालती कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग।
(14) विधान सभा और विधान परिषद की कार्यवाही की रिपोर्टिंग।
(15) आंदोलन (सामाजिक-राजनीतिक संघर्ष) की रिपोर्टिंग।
(16) संवाददाता सम्मेलन में खबर की तलाश।
(17) चुनाव समाचारों की प्रस्तुति।
(18) विज्ञान लेखन। बजट रिपोर्टिंग। व्यापार समाचार।
(19) विज्ञापन की दुनिया।
यूं बनते हैं अखबार, रेडियो या टीवी के लिए विज्ञापन।
विज्ञापन रचने की कला, विज्ञान और तानाबाना।
(20) पटकथा लेखन, संपादन और प्रस्तुति के सामान्य नियम।
(21) प्रेस कानून: सूचना का अधिकार, अभिव्यक्ति की आजादी, मर्यादा और प्रतिबंध।