कल दस बजे ही दिल्ली चुनाव के परिणामों को देख कर अनुमान क्या, निश्चित हो रहा था कि इस बार दिल्ली में भाजपा की सरकार बन रही है, इसका मतलब साफ था कि दिल्ली पर पिछले दस वर्षों से राज कर रही आम आदमी पार्टी का खात्मा हो रहा है। मन बहुत उदास हो गया था। मैं कोई आप की समर्थक नहीं हूँ, लेकिन यह कतई नहीं चाहती थी कि भाजपा दिल्ली में जीते। उनकी सरकार बने। कल का दिन दुख, उदासी और गुस्से में बीता। लेकिन आज जब तार्किक मन, आप की हार के लिए जिम्मेवार कारकों को ढूँढना शुरू किया तो कई कारण स्पष्ट हुए।

सबसे पहले तो भाजपा ने जिस तरह से देश की सारी प्रहरी संस्थाओं का इस्तेमाल न केवल अपनी पार्टी के हित में किया वरन, उससे ज्यादा दूसरी पार्टियों को हानि पहुंचाने के लिए किया। चाहे वह देश की मीडिया हो, ईडी हो, सीबीआई हो या दिल्ली की पुलिस प्रशासन व्यवस्था। लंबे समय तक आप के वरिष्ठ नेताओं को जेल के अंदर रखने के कारण, वे अपनी पार्टी या चुनाव के लिए जनता के मनोविज्ञान को साधने, चुनाव के लिए फंड व आर्थिक संसाधन की व्यवस्था करने का काम नहीं कर पाये। उनकी सारी शक्ति, ऊर्जा जेल से बाहर निकलने के प्रयासों में लगी रह गई।

दूसरा आप ने जिस तरह गुजरात, राजस्थान, गोवा और हरियाणा के चुनाव में अपने उम्मीदवारों को खड़ा कर कांग्रेस को कमजोर करने, उसको हराने की कोशिश की, उसके वोट काटे, उसका परिणाम दिल्ली के चुनाव में उनके लिए ही खतरा बना।

कांग्रेस के साथ समन्वय बना कर न चलना भी एक प्रमुख कारण है। कांग्रेस ने केवल 15 सीट मांगे थे लेकिन अभिमान और घमंड से पीड़ित केजरीवाल ने उसे भी देने से इनकार कर दिया। कोई समझोता नहीं किया और परिणाम सामने है कि जहां 70 सीटों पर आप हारी है वहाँ भी कांग्रेस का वोट प्रतिशत आप से ज्यादा है। अगर आप और कांग्रेस दोनों मिल कर चुनाव लड़ते तो वहाँ उनकी जीत निश्चित थी। दिल्ली के इस चुनाव में आप और कांग्रेस दोनों को मिला कर 50 प्रतिशत वोट मिले हैं, और भाजपा को मात्र 36 प्रतिशत वोट। लेकिन इतने कम प्रतिशत वोट के साथ भी भाजपा चुनाव जीत कर सरकार बना रही है।

पहले से ही दिख रहा था कि अपनी प्रवृति के अनुकूल भाजपा पार्टियों की तोड़-फोड़ में लगी थी और चुनाव के कुछ दिन पहले ही उसने आप के 14 सदस्यों को तोड़ कर भाजपा में शामिल कर लिया था।

आरएसएस के मोहन भागवत को, केजरीवाल ने जो प्रेम पत्र लिखा उसका भी प्रभाव इस चुनाव में आप को भुगतना पड़ा। उसके हारने का वह भी एक बड़ा कारण बना। मुस्लिमों का वोट जो आमतौर पर कांग्रेस को जाता है, उसे भी भ्रमित कर केजरीवाल ने तोड़ दिया और वे वोट भाजपा को प्राप्त हो गए। आम आदमी पार्टी ने स्विंग वोटरों को भ्रम में डालने उन्हें कनफ्यूज करने का काम भी किया, जिसका फायदा भाजपा को मिला।

सबसे बड़ा कारण केजरीवाल की तानाशाही प्रवृति और उनका अपनी पार्टी में भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था का न होना है। अनुमान से कह सकती हूँ कि अगले दो महीने में भाजपा पंजाब में आम आदमी पार्टी को तोड़ेगी और इस तरह भ्रष्टाचार के खिलाफ, आरएसएस के सहयोग से बनी आप आदमी पार्टी का भारत से नामों निशान मिट जाएगा।

इन पार्टियों का क्या होगा, खुदा जाने, लेकिन सीधी साधी जनता के साथ तो यह एक खिलवाड़ हुआ, एक बड़ा भद्दा मजाक।