दिल्ली के चुनाव में आप पार्टी की जबरदस्त हार हुई. आधा राज्य ही सही अपने सीमित अधिकारों को लेकर आप प्रमुख केजरीवाल ने पानी और बिजली के दामों में कमी लाकर तथा अच्छे स्कूल तथा मुहल्ला क्लिनिक आदि बनवाकर दिल्लीवासियों को प्रभावित किया, खास कर कम आय वर्ग वाली महिलाओ को. लेकिन 2025 के इस विधानसभा चुनाव में आप पार्टी को हार का सामन करना पडा. ‘आप‘ की इस हार का एक कारण महिलाओं के वोटों में कमी बताई जा रही है. यहां तक कि आप ने जिन नौ महिला उम्मीदवारों को खड़ा किया, उनमें से मात्र एक महिला चुनाव जीत पाई. अब हमें देखना है कि आप के प्रति महिलाओं की विमुखता के क्या- क्या कारण रहे होंगे.
पिछले चुनाओं में घर-घर जाकर केजरीवाल तथा उनके अन्य साथियों ने महिलाओं के सामने अपने को बेटा और भाई कहकर वोट मांगा और और उनके कष्टों को दूर करने का हर सम्भव प्रयास करने का वचन दिया. इसके कारण महिलाओं का उनमें विश्वास बना. लेकिन इस बार केजरीवाल 2100 रु० रेवडी देकर महिलाओं को वोट लेना चाहा. जो उनके हित के विरुद्ध साबित हुआ क्योंकि बीजेपी 2500 रू देने के वादा कर दिया. रेवडी लेना ही है तो 2100 रू० की जगह 2500 रु० ही महिलाओं को अच्छा लगा होगा.
जिस नेहवाल को केजरीवालने सम्मान के साथ दिल्ली महिला आयोग का प्रेसिडेंट बनाया उसे ही किन्हीं अज्ञात कारणों से उस पद पर से हटा भी दिया. इतना ही नहीं उन्होंने नेहवाल को अपने आवास पर मिलने का समय भी नहीं दिया. केजरीवाल के साथ पारिवारिक संबंध रखने वाली नेहवाल जब उनसे मिलने उनके घर पहुंची तो उसका अपमान कर घर से बाहर निकाल दिया. यह घटना कहीं न कहीं महिलाओं के प्रति केजरीवाल के असम्मान जनक व्यवहार को दिखाता है. दिल्ली की संवेदनशील महिलाएं इससे आहत नहीं हुई होंगी ऐसा नहीं कहा जा सकता है.
शराब एक ऐसी चीज है जो परिवार को सडक पर पहुंचा देती है. खास कर निम्न आय वर्ग के परिवारों के पतन का यह एक प्रमुख कारण होता है. केजरीवाल पिछले चुनाव में जीत हासिल करते ही शराब के ठेके खुलवा दिये और लोगों को आसानी से शराब उपलब्ध कराई. इससे सरकारी आमदनी भले ही बढ़ गई हो लेकिन शराब के कारण घर की बरबादी होते देख महिलाओं का विश्वास केजरीवाल के प्रति जरूर डगमगाया होगा. जब आगे चलकर इसी शराब घोटाले में भ्रष्टाचार के आरोप में केजरीवाल जेल गये तो महिलाओं का रहा सहा विश्वास भी जाता रहा. केजरीवाल के जेल जाने के बाद उनकी पत्नी सुनीता जी ने घर से बाहर निकल कर पार्टी को संभाला तथा हरियाणा के चुनाव में प्रचार का काम भी जोर शोर से शुरू किया. लोग उनकी तुलना झारखंड के मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन से करने लगे. कल्पना सोरेन भी पति के जेल जाने के बाद घर से बाहर निकली .पार्टी की ताकत बनी और गांडेय विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़कर विधायक बनीं. हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आने के बाद भी वह उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चुनाव प्रचार करती रही और इस तरह झारखंड में दुबारा जेएमएम की सरकार बनी. दूसरी ओर दिल्ली में केजरीवाल का चुनाव के पहले बेल पर छूटकर बाहर आने के बाद सुनीताजी फिर नहीं दिखी. क्या केजरीवाल की यह पुरुषश्रेष्ठता का बोध है जो अपनी पत्नी की सक्रियता सह नहीं पायी. उनको फिर से घर के अंदर पहुंचा दिया. एक पढ़े लिखे समझदार मुख्यमंत्री से शायद महिलाओं को यह आशा नहीं थी.
इस चुनाव में बेजेपी दिल्ली के विकास के मॉडल को लेकर प्रचार करती रही. साथ ही उनकी हिन्दू एजेंडा के तहत उनके द्वारा किये गये मंदिरों निर्माण, उनका जीर्णोद्धार तथा महाकुंभ के आयोजन जैसे काम निश्चित रूप से मध्यमवर्गीय महिलाओं को आकर्षित करते हैं. बीजेपी को वोट देने के लिए इन महिलाओं को ये सब कारण निश्चित ही प्रभावित करते हैं.
महिला सुरक्षाको लेकर किये गये अपने बड़े-बड़े वादों में केजरीवाल निश्चित रूप से असफल रहे. दिनदहाडे महिलाओ के साथ दुर्व्यहार की घटनायें बढ़ गयी. केजरीवाल सरकार इस मामले में भी महिलाओं के अविश्वास की पात्र बनी. अपने वादे के अनुसार केजरीवाल सरकार कई इलाकों में पानी की आपूर्ति में असफल रही. यमुना की सफाई को लेकर मी केजरीवाल की निष्क्रियता लोगों में उनके लिए अविश्वास का कारण बना.
उपरोक्त कारणों के चलते दिल्ली की महिलाओं में केजरीवाल और उनकी पार्टी की लोकप्रियता हाल के दिनों में घटती गयी और जो अंततः उनके हार के रूप में परिणत हुई.