विनोद कुमार ने फेसबुक पर कन्हैया को लेकर एक छोटी सी टिप्पणी की. इसके जवाब में तरह—तरह की प्रतिक्रियायें आयी. हम उन्हें बहस कालम में रख रहे हैं. इस बहस को आप चाहें तो और आगे बढ़ा सकते हैं. कुल मिला कर नतीजा यह कि कन्हैया को भाजपा विरोधी गठबंधन में शामिल होना चाहिए और यह जिम्मेदारी गठबंधन के नेताओं की है.

विनोद कुमार का फेसबुक पोस्ट

'’कन्हैया को यह तो स्पष्ट करना ही होगा कि वे भाजपा विरोधी गढबंधन में रहने वाले हैं या संघर्ष को तिकोना बना भाजपा को चुनाव में मदद करने वाले हैं!’’

प्रतिक्रियायें

संजीत किशोर : आप सर इतना नहीं समझ रहे हैं! बिहार में तीसरा मोर्चा बनेगा और इसी की सरकार बनेगी!

कलानंद मणि : माफ़ करेंगे । तीसरा मोर्चा तीन नंबर ही रहेगा और भाजपा सबसे उपर ।

दिनेश राय : आप अब भी दक्षिणपंथी पार्टियों से आशा लिये बैठे हैं, कि ये लोकतंत्र बचाएंगे. एक तरफ संसद मे ये NRC तीन तलाक बिल के समर्थन मे वोट देते हैं दूसरी ओर नागरिक मंच मे आकर नकली बिरोधी ता करते हैं. दोहरे चरित्र. हमे इसकी ज़रूरत नहीं की कितने हमारे एमपी एमएलए है बल्कि हमारे साथ कितने मेहनतकश लोग हैं कितने शाहीन बाग बना सकते हैं.

विनोद कुमार : शहीनबाग आपके साथ नहीं..

मसउद अख्तर : यह सवाल कन्हैया से नहीं बल्कि विपक्ष से पूछना चाहिए कि भाजपा को हराना है तो वे कन्हैया के साथ सड़कों पर क्यों नहीं दिखते…

चेरुबिन तिर्की : लोकसभा चुनाव में गठबंधन वालों ने कन्हैया को हराया.

बिनोद कुमार : यह भी कह सकते हैं, कन्हैया ने गिरिराज किशोर को जिताया.

चेरुबिन तिर्की : वामपंथी बेगुसराय में भारी थे और अभी भी हैं. लेकिन गठबंधन ने वहां उम्मीदवार दिया. कन्हैया राहुल गांधी और तेजस्वी से थोड़ा बीस पड़ते हैं. कन्हैया डाक्टर हैं और मोदी जी को भाषणों में भी चुनौती देते हैं.

विनोद कुमार : साथी, पूरा बंगाल दाव पर रखा हुआ है इस बहस में.. यह आम दिनों की राजनीति नहीं, एमरजंसी के दौर से भी खराब स्थिति है.. भाजपा को किसी भी तरह से सत्ता से हटाना है..

महेश जायसवाल : लालू यादव के सपूत को अपनी नेतागिरी के खो जाने का खतरा दिखने लगा है । शायद इसीलिए, उनका दल इस यात्रा को समर्थन नहीं दे रहा है ! कन्हैयाकुमार निसंदेह एक राष्ट्रीय नेता के रूप में उभर रहे हैं !

जितेशकांत शरण : तीसरा मोर्चा बनता हुए दिखाई कंहा दे रहा है, कोई उम्मीद भी नहीं है इन सत्ता हथियाने वाले नेताओं से. मुझे लगता है कि कन्हैया को bjp के खिलाफ बरगुना(बहुपयोगी बर्तन) भाव में सिर्फ हवा बनाने का काम करना चाहिए. दो संभावनाएं है, एक ये कि तीसरा मोर्चा बने तब भी और नहीं बने तब भी कन्हैया अपनी पार्टी से खड़ा हों और जीत जायें या हार जायें.. दूसरी संभावना ये है कि स्वयं चुनाव में उम्मीदवारी न स्वीकार कर सरकार के खिलाफ मैराथन प्रचार अभियान से दस बीस चुनाव क्षेत्र में bjp के उम्मीदवारों को नाकों चना चबवा दें. लेकिन दूसरा विकल्प त्याग और नैतिकता का है जो आज की राजनीत में स्वीकार नहीं. और तीसरा मोर्चा तो बनने से रहा.. और अगर बन गया तो बने रहने (स्टेबिलिटी) से रहा.. जब जे पी की लाज इन नेताओं से नहीं रखी जा सकी, तो अब कौन है..!

जितेंद्र कुमार : कौन है कन्हैया क्या है कन्हैया ? सत्ता की ताकत से सिर्फ और सिर्फ जनता ही टकरा सकती है । जनता की एकजुटता ही बीजेपी को हरा सकती है बाकी विपक्ष के नेतृत्वकारी पार्टी का दायित्व है कि सभी बिरोधी धरों को साथ लेकर मैदान में आए.

विनोद कुमार : सत्ता निरपेक्ष राजनीति, बिहार की भूमि से लोकशवित को जगाने की बात यदि कन्हैया कर रहे हैं तो हम उनके साथ हैं, लेकिन यदि वे भाजपा की जीत का रास्ता प्रशस्त कर २हे हैं तो हम उनके खिलाफ हैं, क्योंकि आज की स्थिति विषम है..

जितेंद्र कुमार : विनोद जी हम कन्हैया के साथ नहीं बिभाजक शक्ति के विरोधी हैं । कन्हैया समग्रता में बिहार का अकेला राजनीतिक ताकत नहीं है । यदि आपकी मंशा किसी दल के अस्तित्व समर्पण का है तो बात अलग है अन्यथा बड़ी ताकत ही छोटे धडों को साथ कर सकती है निःसंदेह कन्हैया का ताल्लुक जिस दल से है आज उसकी ताकत कई बार अन्य विपक्षी धडों से छोटी है.

राजेश सिंह : जहाँ तक ख़बर है “CPI” जोर लगाकर अपने आप को स्थापित करना चाह रही है.

विनोद कुमार : सीपीआई पर से जब तक सवर्णों का वर्चस्व खत्म नहीं होगा, तब तक वाम दल् आगे नहीं बढ़ सकते..

राजेश सिंह : जी सर । जो जनेऊ से करे प्यार वो जनता से कैसे जोड़े अपने तार ।

आशुतोष : कन्हैया को क्या विरोध करने का हक भी नहीं मिलेगा? यदि उसमें योग्यता और जूझने की शक्ति है तो उसके इर्द-गिर्द विकल्प गढ़ने की कोशिश क्यों न हो? भाजपा इसी तरह के समीकरणों का लाभ लेती है।दिल्ली में तो आप के खिलाफ कांग्रेस भी रही।लेकिन आप के वोट पर कोई असर नहीं पड़ा।जो विरोधी दल अभी चादर ओढ़ कर सो रहे हैं, उनके लिए चिंता करने की जरूरत ही क्यों हो?

विनोद कुमार : कौन कहता है कि हक नहीं.. लेकिन स्थितियों का विश्लेषण करने का हक भी तो दूसरों को दें.. भाजपा की सत्ता रहे न रहे, इससे बहुतों को फर्क नहीं पड़ता, लेकिन हमे पड़ता है. 74 में हम इंदिरा गांधी के खिलाफ गोलबंद हुए थे, वर्तमान में संघ मे नाजीवाद के खिलाफ..इतिहास में व्यक्ति की भूमिका बहुत कम होती है..बिरसा, गांधी, जेपी, अंबेदकर जैसे इतिहास पुरुष अपवाद..

साईमन कुजूर : वैसे सबकी मजबूरियां रहती हैं, पोलिटिक्स समझते….उन्हें सुना जा रहा है और सुनाने और बोलने के लिए बुलाया जा रहा है…यह भी कम उपलब्धि नहीं है।

डेवोनिस जयेस : तेजस्वी यादव का स्टैंड क्या है ?लोक सभा में अपना उम्मीदवार उतार दिहिस था!

रमेंद्र पी सिंह : कन्हैया भाजपा विरोधी गठबंधन के साथ रहेगें कि वाम गठबंधन अलग बनेगा यह भविष्य के गर्भ में है। भाजपा को सत्ता से हटाने की जिम्मेवारी अकेले कन्हैया या वामपंथी दलों की नहीं है हांलाकि कमजोर होते जाने के बावजूद भी वामपंथी अपनी जिम्मेवारियां अपनी सैद्धान्तिक प्रतिबद्धताओं के कारण पूरी करने में लगे हैं । जहां तक संसदीय राजनीति का सवाल है यह बात अन्य भाजपा विरोधी पार्टियों को भी समझनी होगी कि जनता को जगाने का काम केवल चुनावपूर्व भाषणों से नहीं किया जा सकता । धनधान्य से भरपूर भाजपा जैसे ताकतवर और साधनसम्पन्न दल जिसने घृणा की राजनीति पर आधारित बहुसंख्यक साम्प्रदायिकता का हथियार थाम रखा हो और जिसका एक फासीवादी वैचारिक आधार भी हो और जो हमेशा चुनावी मोड रहती हो, को केवल पारंपरिक तरीके से नहीं हराया जा सकता। भाजपा को हराना अकेले वामपंथियों की जिम्मेवारी नहीं है,अगर यही बात पिछले चुनाव में राजद ने समझी होती तो आज गिरिराज सांसद बनकर घृणा की राजनीति के भोंपू नही बने होते । संसदीय राजनीति में वोट को पक्ष में करने की राजनीति और जनांदोलन दो अलग चीजें हैं। मतों को भाजपा के खिलाफ करने के लिए भाजपा का वास्तविक चेहरा जनता में उजागर करने का काम बहुत महत्व रखता है , जो आजकल कन्हैया कर रहे हैं । यह जरूरी नहीं कि भाजपा या किसी भी राजनैतिक दल के असली चेहरे को सामने लाने वाले को ही इसका फायदा मिल जाय या यूं कहिए कि जरूरी नहीं कि चुनाव पूर्व जो समीकरण बनें इसमें पर्दाफाश करने में लगे रहनेवाला इस स्थिति में हो कि उसे कोई लाभ मिल पाए । लेकिन यही सोचकर एक प्रगतिशील विचारधारा की राजनीति करने वाला चुपचाप घर बैठकर आनेवाले संसदीय चुनाव का इंतजार नहीं कर सकता । हांलाकि यह पोल खोल चुनावों में प्रभाव तो डालता ही है । भारत की राजनीति का माहौल और मुद्दे बदल रहे हैं । सामाजिक न्याय की राजनीति का अगला चरण है यह जिसमे सामाजिक न्याय के वास्तविक हकदार जागरूक हो रहे हैं । शायद वे अपने वास्तविक दोस्तो और दुश्मनों में भेद कर पाने की चेतना हासिल कर पाएं । यह याद रहे कि सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष और जाति आधारित राजनीति में बहुत ही बारीक अंतर है । मुझे लगता है सामाजिक न्याय के आज के योद्धा इसे समझ रहे हैं । भारतीय राजनीति जिस दिन यह करवट ले पाएगी भाजपा तिनके की तरह उड़ जाएगी ।

विनोद कुमार : वाम दल स्थिति में कहां कि वे भाजपा को हटा पायें. झाररवंड, इसके पूर्व छत्तीसगढ़ में, दिल्ली में..कहां? पीश्चम बंगाल में तो वे भाजपा के निमित्त बन गये..

रमेंद्र पी सिंह : विनोद कुमार जी, मैं ने तो कभी नहीं कहा कि वामपंथी दल भाजप को हटा पाने में सक्षम हैं । मैंने केवल यह कहा है कमजोर होते जाने के बावजूद अपनी सैद्धान्तिक प्रतिबद्धताओं के कारण अपनी लगातार अभियान में लगे हुए हैं । मैने एक नई राजनीति के करवट लेने की उम्मीद जताई है । आप फिर से पढ़िए मेरा कमेंट । Parliamentary Politics कुछ स्थितियां पैदा करती है जहां अस्तित्व का सवाल भी खड़ा हो जाता है । बंगाल में अगर भाजपा को आज मौका मिल रहा है तो ममता के कारण जो वाम को परास्त करने के का काम कल तक भाजपा की गोद में बैठकर किया था ।

विनोद कुमार : भाई, मुझे भी कन्हैया से कोई शिकायत नहीं..वे एक हीरो बन गये हैं, सवाल संसदीय राजनीति के चुनावी गणित और सीमाओं का है. जो हीरो अपने घर में पिट जाता है बुरी तरह, वह बिहार में एनडीए को रोक पायेगा, यह दूर की कौड़ी है.. वैसे, अभिजात तबके को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि भाजपा सत्ता में रहे या न रहे.. लेकिन वंचित तबके को फर्क पड़ता है, अल्पसख्यकों को पड़ता ह्रै.

पंकज कुमार : यह सियार बजपी को जिताने के लिए ही है

शंभू महतो : मैं कन्हया के राजनीति से सहमत नहीं हूँ, लेकिन भाजपा विरोधी गठबंधन को भी यह ख्याल रखना चाहिए की वामपंथी दलों को भी शामिल करें।