एमजी रामचंद्रन की मृत्यु के बाद जयललिता को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करने में तमिलनाडु की जनता को दिक्कत नहीं हुई, क्योंकि खुद रामचंद्रन यह चाहते थे. उनके साथ रहते हुए जयललिता तमिलनाडु की राजनीति को अच्छी तरह समझ रही थी और उनके साथ फिल्मों में नायिका के रूप में काम कर लोगों के बीच वह अपनी पहचान बना चुकी थी. लेकिन जयललिता की मृत्यु के बाद उनके स्थान को ग्रहण करने वाला कोई परिचित चेहरा सामने नहीं था. पनेरसेलवम, जिनको जयललिता ने खुद मुख्यमंत्री बनाया था, मुखर राजनीतिज्ञ नहीं थे. जयललिता के लंबे राजनीतिक जीवन में उनके सारे उतार चढाव में उनका साथ देने वाली उनकी मुंहबोली बहन या सखी शशिकला कभी खुल कर राजनीति में सामने नहीं आई. हो सकता है, जयललिता के साथ रह कर उन्होंने राजनीतिक महत्वाकांक्षा पाली हो और सारे राजनीतिक दांव पेंच में दक्षता भी हासिल की हो. लेकिन जयललिता के जीवन काल में उन्होंने कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई. समय समय पर जयललिता के साथ हुए मनमुटावों को भी उन्होंने अनदेखा कर उनके साथ अपने संबंध को बनाये रखा. इसके चलते जयललिता के निकट संबंधी भी उससे दूर होते चले गये. जयललिता की मृत्यु के बाद शशिकला ने तत्परता दिखाई. पार्टी के कमान को अपने हाथों में ले लिया. वर्तमान मुख्यमंत्री से इस्तीफा लेकर स्वयं मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने में लग गई. लेकिन उनकी इच्छा पूरी नहीं हो पाई. ठीक उसी समय आय से अधिक संपत्ति वाले मामले में उनके खिलाफ फैसला आ गया. उन्हें चार वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया. साथ ही दस वर्षो के लिए चुनाव लड़ने पर रोक भी लग गई. लगता है, यही पर शशिकला तमिलनाडु के राजनीति को समझने में अक्षम रहीं. देखा जाये तो तमिलनाडु की राजनीति में उस समय से बदलाव आने लगा जब पिछड़ों की राजनीति चल निकली. इनका संबंध फिल्मी नायकों से अधिक रहा है. राष्ट्रीय पार्टियों को हटा कर क्षेत्रीय पार्टियां शासन में आई. ब्राह्मणवाद से त्रस्त पिछड़ी जातियां अपने लिए एक ऐसे नायक का खोज कर रही थी जो उनके सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक पिछड़ापन को दूर कर समाज में उन्हें सम्मान दिलाये. उस समय बनने वाली फिल्में भी उसी तरह की होती थी जिनमें एमजी रामचंद्रण एक सूरवीर नायक की तरह लोगों के लिए मरने कटने को तैयार होता था. लोग उसमें अपने राजनीतिक नायक को खोजने लगे. तमिलनाडु या यो कहें दक्षिण भारतीय लोगों में पार्टी की छवि से अधिक व्यक्ति की छवि महत्वपूर्ण होती है. पार्टी का नेता यदि फिल्मों में सूरवीर नायक हो और लोगों का तारणहार बने, तो निजी जीवन में भी लोग उसे अपना भगवान मानने लगते हैं, उसकी पूजा करने लगते हैं. उसकी मृत्यु पर छाती पीट-पीट कर रोते हैं और उसके लिए अपने प्राणों को त्यागने के लिए भी तैयार रहते हैं. जयललिता अपने लंबे राजनीतिक जीवन में आम लोगों के साथ खड़ी दिखीं. उन पर लगने वाले सारे आरोपों के बावजूद लोगों ने उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकारा. अब उनकी मृत्यु के बाद लगता है कि सचमुच में तमिलनाडु की राजनीति में बदलाव आ रहा है. एक तिहाई विधायकों को अपना समर्थक बताने वाली शशिकला को बहुतत सिद्ध करने के पहले ही जेल जाना पड़ा. राजनीतिक विशेषज्ञ इसको उसकी विरोधियों की चाल बताते हैं. यह भी हो सकता है कि शशिकला अपनी कोई विशेष राजनीतिक छवि नहीं बना पाई हों जिससे व्यक्तिपूजक तमिलनाडु के लोग आश्वस्त होकर उसे राज्य की बागडोर सौंप दें. शशिकला एक सुघढ राजनीतिज्ञ की तरह एक समर्थक को मुख्यमंत्री बना कर चुपचाप जेल चली गई. हो सकता है कि उन्हें यह उम्मीद हो कि चार साल बाद वह तमिलनाडु की राजनीति में लौटे और मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हो. लेकिन यह जरूरी नहीं. शशिकला जयललिता नहीं. और तमिलनाडु से बदलाव के संकेत आ रहे हैं.