हमारा संविधान प्रत्येक व्यक्ति— पुरुष अथवा महिला को बिना किसी भेदभाव के सम्मानित जीवन जीने की स्वतंत्रता देता है. व्यवहारिक रूप से व्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ उसको संविधान में प्रदत्त कर्तव्य और अधिकार उस सीमा तक प्रयोग करना है ताकि उससे अन्यों के अधिकार का अतिक्रमण न हो. पुरुष प्रधान सामाजिक व्यवस्था होने के कारण महिलाओं के अधिकारों का हनन हुआ है. फलस्वरूप महिलाएँ अपने जीवन जीने हेतु,अपने से जुड़ी हर बात के लिये निर्णय लेने के सम्बन्ध में पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं हैं. स्वतंत्रता का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि वो एकदम निरंकुश या स्वार्थी हो जाये. और ऐसा प्रायः ही होता है. महिलाएँ शक्ति और स्नेह का पूर्ण उदाहरण होती हैं.तो उन्हें बिना किसी शर्त के आगे बढने दिया जाये फिर हम एक प्रगतिशील समाज की कल्पना कर सकते है. हम अभी अपने आसपास इतने सारे उदाहरण देखते हैं जिसमें महिलाओं की परवरिश बिना लड़के लड़की के भेद किए की गई, बिना रोक टोक और वे सफल हुई अपने कैरियर में. लेकिन हर जगह ऐसा नहीं है. गांव मे या कुछ विशेष वर्ग से जुड़ी महिलाएँ अभी भी इस भेदभाव का शिकार है. अभी भी उनको अपना निर्णय खुद लेने की आजादी नहीं और ना ही वो खुद में इतनी सक्षम हैं. तो इसके लिये हमें पहले उन जैसी महिलाओं को सक्षम बनाना होगा. उनको शिक्षा, उनके लिये रोजगार उपलब्ध कराने होंगे. क्योंकि बिना आर्थिक रूप से सबल बने उनके लिये ये सम्भव नहीं. जब तक वो पैसे के लिये किसी और पर निर्भर रहेगी, तब तक आजाद कैसे ? आर्थिक निर्भरता सबसे बड़ी बाधा है उनकी आजादी में. इसलिए हमें अपने आस पास ऐसी महिलाओं की मदद करनी होगी जिससे कि वो एक सम्मानित जीवन जी सकें, निर्भय हो कर. फिर चाहे आप पुरुष हो या महिला, यह आपका कर्तव्य है, अगर आप एक अच्छे समाज की चाह रखते हैं तो.