एक था रोमियो. शेक्सपीयर रचित एक काल्पनिक पात्र. मगर किसी भी ऐतिहासिक पात्र से अधिक वास्तविक-सा. पूरी दुनिया में एक पागल प्रेमी जैसी छवि, जिसने अपनी प्रेमिका जूलियट के लिए अपने आपको मिटा डाला. आज भी हम उसे और उसके प्यार को याद करते हैं.

लैला-मजनूं की कहानी कौन नहीं जानता. भारत भूमि पर भी शीरीं-फरहाद, सोहिनी-महीवाल हुए, जिनकी कहानियां हमारे दिलों में है. ये सभी प्रेम कहानियां हैं. राघा-कृष्ण का प्रेम तो हमारी धार्मिक कथाओं में छाया हुआ है. प्रेम हमारी संस्कृति में कभी अपराध नहीं रहा है. बल्कि प्रेम तो पूजा है. यहां सारे धार्मिक कानून धरे रह जाते हैं. सोहिनी का विवाह हो चुका था, राघा भी शादीशुदा होते हुए कृष्ण के प्रेम में दिवानी थी. और इन सबों ने अपने प्यार की खातिर ढेरों तकलीफ उठाईं. यहां तक कि मौत को हंसते हंसते गले लगाया. इनके अलावा भी अलग अलग इलाकों में ढेरों ऐसी कहानियां प्रचलित हैं, जो प्रेम की महत्ता को स्थापित करती हैं. हम सबके जीवन में प्रेम आता है, पर प्रेम से जुड़े खतरों से हम डर जाते हैं और प्रेम के बगैर जीवन स्वीकार कर लेते हैं. इसीलिए तो जो प्रेम के साथ जीते हैं, उसके लिए खतरे उठाते हैं, उनके प्रति हमारे मन में एक विशेष भाव बनता है, आदर का. सच्चाई यह है कि हमारी संस्कृति में भी प्रेम के प्रति न केवल स्वीकार, बल्कि कहीं न कहीं सम्मान है. तभी तो विवाहित राधा के कृष्ण के साथ प्रेम (प्रणय) संबंध को स्वीकार किया गया; और राघा-कृष्ण की पूजा होती है.

खैर रोमियो ने अपने परिवार और समाज के विरोध के बावजूद जूलियट से प्यार किया. और जब जूलियट का विवाह उसकी मरजी के खिलाफ किसी और के साथ तय कर दिया गया, तब जूलियट ने जहर खाने का नाटक (उस जहर का असर दो दिन ही रहना था) किया. दो दिन वह ‘बेहोश’ पडी रही. हालाँकि उसने रोमियो को यह सूचना भिजवाने का प्रयास किया था, मगर इससे बेखबर रोमियो ने जूलियट को मृत मान कर खुद जहर खाकर अपनी जान दे दी. उधर होश में आने पर, रोमियो की मौत देख कर जूलियट ने उसी स्थान पर आत्महत्या कर ली. और यह एक अमर प्रेम कथा बन गयी.

चार सौ साल पहले की इस त्रासद कथा का नायक आज अचानक फिर से चर्चित हो गया है. इसलिए कि उत्तर प्रदेश के नये मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने सत्ता सँभालते ही छेड़खानी करने वाले लम्पटों के खिलाफ सख्ती बरतने की जो सराहनीय पहल की, उसके लिए इस काम के लिए बने पुलिस बल का नाम ‘एंटी रोमियो स्क्वैड’ रख दिया गया! योगी से प्रेरित/अनुप्राणित होकर झारखण्ड के मुख्यमंत्री ने भी राज्य में ‘एंटी रोमियो स्क्वैड’ के गठन की घोषणा कर दी है. जाहिर है कि अन्य राज्य में भी इसकी मांग उठेगी.

इस पहल के उद्देश्य से किसी को असहमति नहीं हो सकती. पर ‘एंटी रोमियो स्क्वैड’ नाम कुछ ठीक नहीं लगता. ‘एंटी लफंगा’ या ‘एंटी लंपट’ स्क्वैड क्यों नहीं? इसीलिए प्रारंभ में रोमियो- जूलियट की कहानी बताना जरूरी लगा, ताकि नयी पीढी के जो युवा नहीं जानते, उन्हें पता हो कि रोमियो कोई लंपट नहीं था. इसी तरह मजनूं, राँझा या महीवाल भी लफंगे नहीं थे. हालाँकि, खास कर रोमियो और मजनूं हमारे देश में बदनाम नाम हैं, पर इन्हें राह चलती लड़कियों से छेड़खानी करनेवालों के समतुल्य बताना सही नहीं, जो इस ‘एंटी रोमियो स्क्वैड’ के कारण लगता है. कहीं ऐसा तो नहीं कि हम युवक-युवती के बीच सहज आकर्षण और ‘प्रेम’ को ही अपराध मानने लगे हैं.

किसे अच्छा नहीं लगेगा कि ऐसे शोहदों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो, कि लड़कियां सड़कों पर बेखौफ चल सकें, कि ऐसे शैतानों को उनके किये की सजा मिले. लेकिन पुलिस के चरित्र को देखते हुए कुछ शंका भी होती है. और यूपी से आ रही ख़बरों से उस आशंका को बल भी मिलता है. आशंका यह भी है कि कुछ स्वयंभू संस्कृति-प्रहरी भी इस भूमिका में न उतर जाएँ. खास कर 14 फरवरी वेलेंटाइन डे को लेकर कुछ वर्षों से जिस तरह का तूफ़ान खड़ा किया जाता रहा है, सड़क पर साथ चल रहे किसी युवा जोड़े को जिस तरह परेशान और अपमानित किया जाता रहा है, उसे देखते हुए भी संदेह होता है कि देश की वर्तमान सत्तारूढ़ जमात कहीं ‘प्रेम’ को ही ‘पाप’ तो नहीं मानती. स्त्री/युवती के साथ छेड़खानी और बेजा हरकत को तो बर्दाश्त किया जा सकता है, पर वह अपनी इच्छा से, अपनी मर्जी से किसी से प्रेम का रिश्ता जोड़े, यह कतई बर्दाश्त नहीं है. वर्ना ‘ओनर किलिंग’ शब्द कहाँ से आता.

स्त्रियाँ सुरक्षित तब होंगी, जब समाज की उनके प्रति धारणा बदलेगी, उन्हें कमतर और हेय मानने का नजरिया बदलेगा, जब परिवार में उसे सही मायनों में बराबर का अधिकार और सम्मान मिलेगा. सड़कछाप लम्पटों पर कार्रवाई जरूरी है, पर कहीं ऐसा न हो कि लड़का लडकी के साथ चलने-घूमने और उनकी सहज दोस्ती को भी अपराध बना दिया जाये.

अब भी समय है. यूपी सरकार इसके नाम पर पुनर्विचार करे. एक सार्थक और जरूरी पहल को रोमियो से जोड़ कर अनजाने में एक निष्कपट और भावुक प्रेम के प्रतीक पात्र को लंपट का दर्जा देने का काम न करे.