भाजपा नेता तरुण विजय ने एक शानदार बयान दिया कि कैसे लोग बीजेपी को नस्लवादी कह सकते हैं, जबकि वे दक्षिण भारत के काले लोगों के साथ मिल जुल कर रहते आये हैं. तरुण विजय भाजपा के नेता होने के साथ साथ आरएसएस के मुख्यपत्र पंचजन्य के संपादक भी रह चुके हैं. अलजजीरा के एक बहस में उन्होंने यह वाक्य बीजेपी के बचाव में कहा. हाल के दिनों में अफ्रीकी विद्यार्थियों पर दिल्ली में हुए हमलों को लेकर बीजेपी पर नस्लवाद का आरोप लगा. गोरक्षा के नाम पर गोरक्षकों द्वारा निर्दोष अल्पसंख्यकों को मारने की घटनाओं के कारण भी बीजेपी आलोचना की शिकार रही है. तरुण बिजय के इस बयान से बीजेपी का बचाव तो क्या होगा, अपमान ही ज्यादा हुआ. बाद में अपनी गलती का एहसास होते ही तरुण विजय अपनी सफाई देते फिर रहे हैं. उन्होंने ट्वीटर आदि पर अपने इस कथन के लिए माफी तक मांगी औश्र कहा कि उनके परिवार में तामिल, बंगाली, तेलुगु, सभी तरह के लोग हैं. उन्होंने बिना किसी राजनीति के पूरी निष्ठा से तमिल संस्कृति की उन्नति के लिए काम किया है. खराब वाक्य विन्यास के कारण उनके कथन का अनर्थ निकल गया.

तरुण विजय की मंशा चाहे जो हो, लेकिन सार्वजनिक जीवन में कोई भी बयान बिना सोचे समझे तो नहीं दिया जा सकता. वाक्य निपुण बीजेपी नेताओं के कथन के अर्थ पर तो ध्यान जायेगा ही, उनके वाक्य विन्यास या व्याकरण कर कोई ध्यान नहीं देगा.

ये महाशय यह कैसे भूल जाते हैं कि ये लोग जिस रामचंद्र के उपासक हैं, उनका मंदिर बनाने के लिए कृतसंकल्प हैं, वे काले ही थे. मथुरा, वृंदावन के देवता कृष्ण भी काले ही हैं. काला रंग हीनता का सूचक नहीं बल्कि श्रेष्ठता का सूचक है. फिर कैसे काले रंग के साथ मिल जुल कर रह कर अपनी सहनशीलता या उदारता का वे प्रदर्शन् कर रहे हैं. दक्षिण भारत की काली महिलाएं ही अपकी पार्टी की शोभा हैं औश्र चेहरा भी हैं. इसलिए दक्षिण भारत के लोगों के साथ आपने कोई उदारतापूर्ण सामंजस्य स्थापित कर मेहरबानी नहीं की है.

बिध्याचल के उस पार बसा पूरा का पूरा दक्षिण भारत द्रविड़ों की भूमि है जो भारत के मूल निवासी भी हैं. उनकी अपनी एक उन्नत सभ्यता—संस्कृति औश्र साहित्य है. आर्यों के आक्रमण से पीछे की ओर सिमटते हुए उन्होंने दक्षिण भारत को अपना निवास स्थान बना कर अपनी सभ्यता और भाषा की उन्नति की. आज के आईटी युग में भी वे ही राज्य सबसे आगे हैं. नौकरियों व्यापार आदि के लिए वहां जाकर बसे उत्तर भारत के लोगों का उन्होंने दिल खोल कर स्वागत किया. भले ही उनकी चमड़ी काली हो, उनका हृदय विशाल है. उन्होंने कभी दावा नहीं किया कि अपने से भिन्न संस्कृति, आचार विचार या भाषा के लोगों को अपना कर उन्होंने अपनी उदारता का परिचय दिया है.

तरुण विजय का यह बयान निश्चिय ही निंदनीय है औश्र यह दक्षिण भारत में बीजेपी के बिस्तार में अवश्य ही बाधक होगा.