धर्म की परिभाषा शायद ही किसी को मालूम है, पर वह खुद को धार्मिक कहलाने से पीछे नहीं हटता..धर्म की परिभाषा क्या है?

धर्म का मतलब जो स्थापित हो, यानि धर्म, रीति, रिवाज विधि या कर्तव्य है. नैतिक मूल्यों का आचरण है. धर्म मानव में मानवीय गुणों के विकास की प्रभावना है. जो धर्म मानव में पाशविक गुणों की वृद्धि करता हो, उसे धर्म की परिभाषा में नहीं रखा जाएगा.

संप्रदाय किसे कहते हैं?

किसी विशेष धर्म पर आस्था रखने वाले लोगों के वर्ग को संप्रदाय कहते हैं. वर्तमान में सांप्रदायिकता के नाम पर जिस पाशविकता का प्रयोग किया जा रहा है, उससे लगभग हर धर्म के लोग प्रभावित हो रहे हैं. सांप्रदायिकता का उदाहरण ऐसा कि धर्म के प्रतीक चिन्ह की रक्षा के लिए मानवीय गुणों की अवहेलना करते हुए हम जानवरों की तरह मार—काट पर उतर आते हैं. उस पर नीम चढा करैला तब हुआ जब वर्तमान मोदी सरकार के द्वारा राष्ट्रवाद के नाम पर सांप्रदायिकता और भगवाकरण का झूठ फैलाया जाने लगा.

प्राचीन भारत में शैव,वैष्णव,जैन,बौद्ध आदि संप्रदायों का अस्तित्व था. पर उस समय लोग अपने विचारों और आग्रहों को वाद—विवाद तक ही सीमित रखते थे और अपने धर्म पर गर्व महसूस किया करते थे. धार्मिक कट्टरपंथी तत्वों का अभाव था.

भारत में रहना है तो हिंदू धर्म अपनाना पड़ेगा, यह कथनी किसी धार्मिक कट्टरपंथी संप्रदाय का नहीं, बल्कि वर्तमान कथित लोकतांत्रिक सरकार का है.

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है?

पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर राधाकृष्णन के अनुसार ‘भारतीय राज्य किसी विशेष धर्म से पहचाना नहीं जाएगा या धर्म के द्वारा नियंत्रित नहीं होगा. हम यह मानते हैं कि धर्म को अधिमानीय स्तर और अनन्य श्रेष्ठता नहीं दिया जाना चाहिए. किसी धर्म को राष्ट्रीय जीवन में या अंतरराष्ट्रीय संबंध में विशेषाधिकार नहीं दिया जाना चाहिए. क्योंकि यह लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन होगा और धर्म पर सरकार के सर्वोत्तम हितों के विरुद्ध होगा. धार्मिक पक्षपात के इस दृष्टिबोध और सहनशीलता की निष्पक्षता उत्तर्राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जीवन में भविष्यवक्ता की भूमिका निभाएगा.’

सीएम एलेक्जेंड्रोविच जो भारत की स्थिति की प्रशंसा उचित रुप से करते हैं, स्वयं उनके शब्दों में ‘धर्मनिरपेक्ष राज्य के रूप में भारत संवैधानिक रूप से प्रत्याभूति देता है, सभी व्यक्तियों को धर्म और स्वतंत्रता और किसी विशेष धर्म की विशेष स्थिति को निर्देशित नहीं करता है.’

हमारे संविधानज्ञाता, निर्माता संविधान का वर्तमान तो बखूबी देख रहे थे और शायद उन्हें संविधान का भविष्य नजर नहीं आया, जहाँ संविधान का, भारत के धर्मनिरपेक्षता पर अब उँगलियाँ उठने लगी है.

राष्ट्रवाद अब बस हिंदुत्व की रक्षा, हिंदू राष्ट्र, गौ माता, कश्मीर विवाद के नाम पर संप्रदाय विशेष को परेशान करना और अयोध्या के राम मंदिर प्रकरण पर केन्द्रित नजर आता है.

वहीं सोशल मीडिया पर राष्ट्रवाद का बुद्धिजीवी और विनोदप्रिय लोग हँसी उड़ाने से बाज नहीं आ रहे हैं.

उदाहरण

आम जनता— ‘मोदी सरकार हमारे हित में काम नहीं कर रही है’.

अंधभक्त— ‘तू पाकिस्तानी है, देशद्रोही है, आतंकवादी है, नक्सली है’

जब भारत का एक भाग जो पाकिस्तान में संगठित है, धर्म शासित राज्य के आदर्श को ग्रहण किया और असंख्य लोग जो मुस्लिम नहीं थे, उन्हें वहां इस्लाम धर्म को स्वीकार करना पड़ा था, जो उनके संविधान में राज्य धर्म था. तब भारत धर्मनिरपेक्षता के अपने विश्वास में खरा उतरा था और इस आधार को संविधान के अनेक उपबंधों में अभिव्यक्त किया गया है.

अनुच्छेद — 25—28

ऐसे में सांप्रदायिकता के नाम पे अन्य धर्म के लोगों को हिंदू बनने पे मजबूर करना और इसे घर वापसी का नाम देना, भारतीय संविधान की हँसी उड़ाने जैसा प्रतीत होता है. घर वापसी भी ऐसी कि हिंदूत्व स्वीकार करने पर भी पूरी तरह से हिंदू समाज में स्वीकारे ना जाएँ. ऐसे में कौन सी घर वापसी.

संविधान का अनुच्छेद 15 क एक धार्मिक समानता के लिए उपबंध करता है और धार्मिक आधार पर भेदभाव ना करने का आश्वासन देता है. आज्ञा जो यह वर्णित करता है कि राज्य केवल धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान या उनमें से किसी के आधार पर किसी नागरिक के विरुद्ध भेदभाव नहीं करेगा.

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता का विनाश करता है

अनुच्छेद 25 का खंड 1 लोक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य तथा इस भाग के अन्य प्रावधानों के अधीन सभी व्यक्ति धर्म को सफलतापूर्वक मानने, व्यवहार में लाने, प्रचार करने का अधिकार और अंतकरण की स्वतंत्रता का समान रूप से अधिकार है.

इस्लाम के बाद ईसाई धर्म को निशाने पर रखा गया है.

लव जेहाद, धर्मांतरण के मुद्दे को वोट बैंक का आधार माना गया है.

उच्चतम न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट के द्वारा निर्धारित किया गया है कि धर्म को मानने का अर्थ किसी की निष्ठा को स्वतंत्र रूप से और खुले तौर पर घोषित करना है. पुनः वह दूसरों के नैतिक विकास के लिए अपने धार्मिक विचारों को सफलतापूर्वक प्रचार कर सकता है. यह बात महत्वपूर्ण नहीं है कि प्रचार किसी व्यक्ति द्वारा अपनी व्यक्तिगत क्षमता में या कुछ चर्च या संस्था की ओर से किया जाता है. किंतु संविधान द्वारा इस संबंध में रखा गया निबंधन केवल यह है कि आचार और प्रचार लोक व्यवस्था स्वास्थ्य और नैतिकता के अधीन होगा.

सारांश यही कि सरकार संविधान का उल्लंघन कर सांप्रदायिकता का जहर फैला रही है तो यह सरकार के वोट बैंक का जरिया है.

जिम्मेदार तो हम हैं जो सांप्रदायिकता को बढ़ावा दे कर देशद्रोही बन रहे हैं.

क्यूँकि संविधान को ना मानने वाले को देशद्रोही, आतंकवादी की ही संज्ञा दी जाती है.